डॉ. मनमोहन सिंह : प्रधान मंत्री का हक़ अदा करने वाले डॉ. मनमोहन सिंह जी लंबे समय तक अपने देश भारत की अच्छी प्रतिष्ठा के साथ सेवा करते करते चले गए वो बहुत ही पढ़ें लिखे और अर्थशास्त्र के जानकार थे। वे भारत की आज़ादी में सबसे ज्यादा काम आने वाली भाषा उर्दू भाषा भी जानते थे। एक बार वे मुझसे कहने लगे कि में रोज़ाना उर्दू अखबार “अखबार-ए-मशरिक” देखता हूं। वो जमीयत उलमा-ए-हिंद और कांग्रेस की आजादी में एक-दूसरे के सहयोग और कुर्बानियों को भी जानते थे। मुझे लगता है कि उनके प्रधानमंत्री काल में जमीयत उलमा-ए-हिंद और कांग्रेस के बलिदानों का इतिहास कांग्रेस में जितना वो जानते थे किसी और को नहीं पता था। इसलिए जब भी मैंने उनसे किसी जरूरत के लिए मिलने का समय मांगा वैसे ही एक दो दिन में बाद ही समय मिल जाता था जाहिर है कि मेरा राजनीति से कोई संबंध नहीं है, फिर भी जमीयत उलमा-ए-हिंद के साथ मेरे जुड़ाव के आधार पर ही मेरे साथ ऐसा होता था।
एक बार जामिया मिल्लिया इस्लामिया से जुड़े एक व्यक्ति ने जिनसे मैं पहले से परिचित था और रिश्तेदारी में उनसे करीबी रिश्ता था। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक दर्जे के संबंध बात की,वो जमाना था जब मोहतरम नजीब जंग जामिया के उप कुलपति थे। मेरा ऐसी बातों से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन क्योंकि अलीगढ़ में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना में हजरत शेख उल हिंद की मुख्य भूमिका थी और भारत की आज़ादी के लिए का उनका मुख्य उद्देश्य आजादी के सपूत बनाना था। जो मेरे पिता हज़रत मौलाना हुसैन अहमद मदनी रहमतुल्लाह के अध्यक्षीय भाषण से भी स्पष्ट होता है और जमीयत उलमा-ए-हिंद की स्थापना भी हज़रत शेख उल हिंद के शिष्यों प्रेमियों और मिलने वालों द्वारा रखी गई है। हजरत शेख उल हिंद जमीयत उलमा-ए-हिंद के पहले स्थायी अध्यक्ष भी थे। इसलिए मेरे मन में यह बात आई कि मुझे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक दर्जे को हासिल करने के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद के मंच से प्रयास करना चाहिए।
इसलिए मैंने पूर्व प्रधान मंत्री जनाब डॉ. मनमोहन सिंह जी से मिलने के लिए समय मांगा पूर्व की भांति ही मुझे एक दिन बाद ही समय मिल गया। जब मैंने बात शुरू की और कहा कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जमीयत उलमा-ए-हिंद दोनों हजरत शेख उल हिंद से जुड़े हुए हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना भी हजरत शेख उल हिंद ने ही की थी तो फ़ौरन बोले और कहा कि मैं जानता हूं तो मैंने कहा कि “जामिया मिल्लिया इस्लामिया” पंजीकृत नाम है। और इसका संबंध स्वतंत्रता सेनानियों से है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए पूरे चार साल माल्टा ब्रिटिश जेल में बिताए थे और इसकी स्थापना भी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को तैयार करने के लिए की गई थी। लेकिन ऐसी ऐतिहासिक संस्था को आज तक अल्पसंख्यक दर्जा हासिल नहीं हो सका ओर कांग्रेस सरकार में हासिल नहीं सका।
बहुत अफसोस कि बात है बहुत देर तक बात होती रही में उनकी बात से मुझे समझ आया कि वह इस बात को लेकर चिंतित हैं जब सरकार जामिया मिल्लिया इस्लामिया को हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये देती है तो जामिया को अल्पसंख्यक दर्जा कैसे दीया जा सकता है? लंबी वार्ता के बाद में में आ गया। लेकिन मुझको इस बात की खोज रही की के मसला का हल कैसे निकले। एक सप्ताह बाद मुझे दिल्ली में एक सिंधीयो के कॉलेज के बारे में पता चला कि उन्होंने अपने कॉलेज को अल्पसंख्यक दर्जा दिलाने के लिए आवेदन किया था, जिसका अन्य लोगों ने विरोध किया और मामला कोर्ट चला गया कोर्ट का फैसला सिंधियों के पक्ष में आया और फैसले में कहा गया कि सरकारी सहायता किसी शैक्षणिक संस्थान की अल्पसंख्यक भूमिका को प्रभावित नहीं कर सकती है। मैंने इस फैसले को हासिल किया ओर फैसले में जहां भी अल्पसंख्यक भूमिका से संबंधित शब्द थे। उसे चिह्नित किया और इसे डॉ. मनमोहन सिंह जी के कार्यालय में बैंगलोर के रहने वाले एक अधिकारी को दिया और कहा कि उनकी मेज पर रख दे।
अदालत के कागजात के साथ मैंने एक पत्र भी रख दिया, फिर कुछ दिनों के बाद मैंने समय मांगा और डॉक्टर के पास चला मुझे देखकर मुस्कुराने लगे और हालचाल जानने के बाद बाद मैंने विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक दर्जे की बहाली समस्या पर अपना लेखन डॉ. मनमोहन सिंह जी के सामने रखा। जिसे देखने के बाद उन्होंने कहा कि मैं इस पर कार्रवाई करता हूँ। कुछ दिनों बाद संबंधित मंत्रालय से होते हुये वो आदेश जस्टिस जनाब सुहैल सिद्दीकी साहब चेयरमैन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग तक पहुंच गया। वहां से वो आदेश जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उस वक्त के उप कुलपति जनाब नजीब जंग के पास पहुंच गया या पहुंचने वाला था उसी समय उसके खिलाफ अदालत में स्टे प्राप्त करने के लिए याचिकाएं भी पहुंचने लगी। जब यह बात पता चली तो मैंने संबंधित मंत्री से मिलने का भी समय लिया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद मैंने प्रधानमंत्री जी से मुलाकात की और पूरी स्थिति उनके सामने रख दी तो वो सुनकर हंसने लगे और कहा कि में इसको देखता हूँ।
मुझे मालूम नहीं था यह बात मुझे राहुल गांधी जी ने एक मुलाकात के दौरान बताई कि रात में डॉक्टर साहब मेरी माता सोनिया गांधी जी के पास गए। उन्हें इस बारे में बताया और उन्होंने संबंधित मंत्री को लिखा फिर यह बात आगे बढ़ी और मंत्री साहब ने जामिया के बारे में एक रिपोर्ट लिखने के लिए इसे मोहतरम सलमान खुर्शीद साहब को भेजी। मैं रमज़ान के महीने में देवबंद की मस्जिद में था, चूँकि मेरे सलमान खुर्शीद साहब से अच्छे संबंध थे। इसलिए मैंने उन्हें मस्जिद से फोन किया और उनसे पूछा कि क्या आपके पास रिपोर्ट देने के लिए कोई जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक दर्जे के संबंध में दस्तावेज आये है। उन्होंने हामी भर ली तो मैंने तब उन्हें स्पष्ट रूप से कहा कि सही रिपोर्ट नहीं दी गई, तो मुसलमान कयामत तक नहीं छोड़ेगा।
मैं सराहना करता हूं कि उनकी रिपोर्ट के परिणामस्वरूप अल्हम्दुलिल्लाह, जामिया का अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल हो गया। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से यह हकीकत सामने आई कि हजरत शेख उल-हिंद और डॉ. जाकिर हुसैन आदि मरहूमीन की अमानत का पूरा लाभ अगर मुसलमान को आज मिल रहा है तो वह पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के समर्थन ओर सहयोग से मिल रहा है। उन्होंने ऐसे कई काम किए हैं जिससे अल्पसंख्यकों और विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को फायदा पहुंचाने और मेरे खयाल में चूंकि वह भारत के अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य थे, इसलिए उन्हें अल्पसंख्यकों के हित में काम करना चाहिए था, लेकिन यह काम हमारे पूर्वजों अकाबिरीन से संबंधित था। डॉ. मनमोहन सिंह जैसे विद्वान व्यक्ति इससे परिचित थे और यह काम जमीयत उलमा-ए-हिंद के मंच पर हुआ था, इसलिए मेरी राय में यह काम सभी लोगों के सामने आना चाहिए था।
डॉ. मनमोहन सिंह जैसे शिक्षित व्यक्ति जो आज़ादी वतन में जमीयत उलमा-ए-हिंद के कार्यों एवं देश के प्रति सेवाओं एवं जीवन से से परिचित थे, इसी से मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए इस तरह के काम की उम्मीद थी,मुझे अफसोस है कि हम सब को ओर कांग्रेस ही को नहीं पूरे देश को छोड़ गए । मुझे तो अब कोई इस रुतबे का आदमी नजर नहीं आता है। दिल से दुआ निकलती है अल्लाह करे कांग्रेस और हमारे देश को डॉ. मनमोहन सिंह जैसे लोग मिलें और इसी प्रेम और स्नेह से देश फल-फूलता रहे,आमीन।
(लेखक जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और दारुल उलूम देवबंद के प्रधानाध्यापक मौलाना अरशद मदनी हैं।)
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