जहरीले खाद्यान : एक समय था जब भारत के किसान प्राकृतिक और जैविक खेती करते थे और उनके द्वारा उगाई गई हर फसल, चाहे वह अनाज हो, तिलहन हो, दलहन हो, फल और सब्जियाँ हों, गन्ने की फसल में एक ऐसा स्वाद होता था जो जीवन में कुछ मीठा लाता था। स्वाद ही नहीं, उसमें खुशबू भी होती थी।

लेकिन जब से कृषि क्षेत्र को एक बड़े बाजार और खेती के लिए जरूरी चीजों जैसे महंगी खाद, नए बीज, कीटनाशक और अन्य खाद बेचने के लालच में भारी मुनाफे का सौदा मानने वालों ने किसानों को खाद, अन्य खाद, बीज और जहरीली दवाइयों का आदी बना दिया है जो किसान के मित्र कीटों और खरपतवारों को भी नष्ट कर देती हैं, तब से किसान भी अपनी हर फसल से अधिकतम उपज पाने के लिए इन खाद, खाद बीज और कीटनाशकों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं।
आज के आधुनिक युग में खेती के लिए मशीनों के प्रयोग और रासायनिक खादों व कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से किसान जाने-अनजाने में न केवल बीमारियों को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि खाद्यान्नों की पौष्टिकता और स्वाद को नष्ट करने के साथ-साथ खेत की जमीन को जहरीला और बंजर बना रहे हैं। इसके कारण वे दूध और खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले पशुओं को भी कम पाल रहे हैं और जैविक खाद बनाना तो वे भूल ही गए हैं, जो जमीन की असली जान है और फसलों के लिए अमृत के समान है।
वैसे भी अगर बात करें मेरे गृह क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश की, जिसे चीनी का कटोरा कहा जाता है, तो गन्ना किसान गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए रसायनों यानी जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं, जो न केवल हैरान करता है, बल्कि स्वास्थ्य को लेकर नई चिंता भी पैदा करता है।
हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले मुजफ्फरनगर क्षेत्र के गन्ना किसानों ने गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए एक साल में यानी वर्ष 2024-25 में 1.77 लाख हेक्टेयर गन्ने में करीब 160 करोड़ रुपये के रसायन डाले हैं। मुझे लगता है कि गन्ने का सही दाम न मिलने के कारण किसान अधिक से अधिक उत्पादन करके अपनी मेहनत का मुनाफा वसूलना चाहते हैं। लेकिन यहां मैं किसानों से यह भी कहना चाहता हूं कि एक तरफ उन्हें गन्ने का सही दाम नहीं मिल रहा है और दूसरी तरफ वे गन्ने व अन्य फसलों में महंगी रासायनिक दवाइयां व तमाम तरह के कीटनाशक डालकर अपनी लागत बढ़ा रहे हैं, इसके साथ ही वे अपने परिवार व अन्य लोगों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं।