UP Loksabha Chunav : बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आंनद को दोनों पदों से उनमें परिपक्वता आने तक पदों से हटाने की बात कहकर कहा है कि आनंद कुमार (यानि आकाश के पिता और मायावती के भाई) को पार्टी और मूवमेंट के हित में पहले की तरह अपनी जिम्मेदारी निभाते रहेंगे। आकाश आनंद को दोनों महत्वपूर्ण पदों पर से हटाने के लिए लिखे अपने पत्र में मायावती ने कहा है कि बसपा का नेतृत्व पार्टी व मूवमेंट के हित में एवं डॉ. आंबेडकर के कारवां को आगे बढ़ाने में हर प्रकार का त्याग व कुर्बानी देने से पीछे हटने वाला नहीं है।
बसपा सुप्रीमो के इस फैसले को राजनीतिक दलों से लेकर राजनीति के जानकारों ने अपने-अपने चश्मे से जरूर देखा है, लेकिन पक्के तौर पर सही अनुमान किसी को नहीं है कि इसके पीछे की हकीकत क्या है? हालांकि इसके पीछे यही माना जा रहा है कि आकाश आनंद ने अपने तीखे चुनावी भाषणों में भाजपा की तुलना आतंकवाद से कर दी, जिसके चलते उन पर न सिर्फ एफआईआर हुई, बल्कि मायावती ने अपनी सॉफ्ट छवि को बचाने के लिए उन्हें पार्टी से लीगल तौर पर दूर कर दिया।
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हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने अचानक अपनी पॉवर का उपयोग करते हुए किसी पदाधिकारी पर गुस्सा निकाला है, इससे पहले भी वो कई पदाधिकारियों के साथ ऐसा कर चुकी हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जब मायावती पर पार्टी में भाई-भतीजावाद का आरोप लगा था तब उन्होंने अपने भाई आनंद कुमार को भी पद से हटा दिया था। इसके अलावा उन्होंने कई प्रमुख पदाधिकारियों को भी गलतियां करने और गलतियों करने का आरोप लगने पर हटाया है।
दरअसल, बसपा सुप्रीमो मायावती एक सख्त प्रशासक मानी जाती रही हैं। इसके विपरीत वो किसी भी पार्टी के खिलाफ अपशब्द करने या फिर उल्टे-सीधे आरोप लगाने से भी बचती रही हैं। वह हमेशा लिखा हुआ भाषण ही पढ़ती रही हैं, और शायद इसीलिए कि वो कहीं कोई ऐसा कुछ न बोल दें, जिससे उन पर या उनकी पार्टी पर कोई धब्बा लगे। वह उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और हर बार उनके सख्त तेवरों के चलते लोग उन्हें काफी पसंद भी करते हैं। उनका वोट बैंक भी इतना मजबूत है कि उसे किसी दूसरे के द्वारा तोड़ना आसान नहीं है।
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साल 2014 में मोदी लहर में उन्हें भले ही एक भी लोकसभा सीट नहीं मिल सकी, लेकिन बसपा को 19.6 फीसदी वोट मिले थे। जबकि साल 2019 में बसपा को 10 सीटें मिलीं, वो भी तब जब मायावती ने अखिलेश से गठबंधन करके 38 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे थे। आज भी उनका वोट बैंक बरकरार है और उनके स्वभाव में भी एक सुलझे हुए शासक की तरह दोनों ही चीजें बरकरार हैं। हालांकि बसपा सुप्रीमो के अपने ही युवा भतीजे आकाश आनंद को पार्टी पद और उत्तराधिकार से हटाने के फैसले ने सबको चौंका दिया है और लोकसभा चुनाव के सारे समीकरण भी बदल दिए हैं।
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हालांकि आकाश आनंद काफी समय से राजनीति में आ चुके हैं और जाहिर है कि अपनी बुआ और अपने पिता से भी राजनीति के गुर भी काफी सीखे होंगे। रही योग्यता और परिपक्वता की बात, तो आकाश उच्च शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं और विदेश में उनकी शिक्षा हुई है। अगर उनकी भाषा और उनके उग्र बयानों की बात करें, तो उत्तर प्रदेश में नेताओं की बयानबाजी इससे ऊपर के दर्जे की कम ही नेताओं में मिलेगी।
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बहरहाल, आकाश आनंद को बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर और मायावती के उत्तराधिकार से हटाने जाने के पीछे ये भी वजह हो सकती है कि वो उत्तर प्रदेश की राजनीति में गर्माहट ला रहे थे और उनके बयान भड़काऊ थे, जिसके चलते भाजपा को कहीं न कहीं ये खतरा महसूस हो रहा था कि अगर बसपा का काडर चोट उस पर पूरी तरह चला गया, तो भाजपा को जीतना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन अब आकाश आनंद के हटने से बसपा का काडर चोट भाजपा को ट्रांसफर हो सकता है। और देश में अकेली मायावती ऐसी नेता हैं, जो अपने बेस वोटर को ट्रांसफर कर सकती हैं।
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इस संदेह को इस बात से भी बल मिलता है कि बसपा ने लोकसभा चुनाव के चलते अचानक कई सीटों पर अपने कई उम्मीदवार बदलने शुरू कर दिए हैं, जिससे साफ तौर पर भाजपा को फायदा होता नजर आ रहा है। मसलन, जौनपुर सीट पर भाजपा के जीतने को उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी, जब वहां बसपा पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी को चुनाव लड़ाती, लेकिन उसने भाजपा से हल्के उम्मीदवार को मैदान में उतारकर भाजपा के जीतने की संभावना बढ़ा दी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)