Farmers Announcement No MSP No Vote : अबकी बार आर पार के मूड में आये किसान, ‘एमएसपी’ लागू नहीं तो वोट नहीं देने का लिया संकल्प
Published By Roshan Lal Saini
Farmers Announcement No MSP No Vote : पिछले दिनों नई दिल्ली के अंबेडकर भवन में किसान महापंचायत और दक्षिण भारत की गन्ना उत्पादक एसोसिएशन की साझा बैठक में परिचर्चा हुई, जिसमें सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ है कि अगर किसानों की फसलों को जायज एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जाएगा, तो किसान सत्ताधारी राजनीतिक दल को वोट नहीं देंने पर विचार करेंगे। इस बैठक में शामिल हुए कई राज्यों के किसानों ने साफ संकल्प लिया है कि जो राजनीतिक दल किसानों के हित में काम करेगा और उनकी फसलों को एमएसपी पर खरीदने की गारंटी लेगा, उसी
पार्टी के पक्ष में किसान वोट डालेंगे। ज़ाहिर है कि किसान हर चुनाव से पहले इस प्रकार के फैसलें और निर्णय लेते हैं लेकिन चुनाव से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों के द्वारा दिए गए तमाम प्रलोभन में कहीं ना कहीं फस जाते हैं और उसके बाद अपनी फसलों के दामों और दूसरी समस्याओं को भूल जाते हैं। सरकार बनने के बाद फिर जब इस प्रकार की परेशानी आती है तो फिर इकठ्ठे होकर इस प्रकार का निर्णय करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसानों के लिए यह बहुत गंभीर विषय है और इस विषय पर किसानों को गंभीरता से ही लेना होगा उनको यह फैसला बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था। अगर देरी से ही सही, अगर किसानों ने यह फैसला लिया है, तो उन्हें अब अपने इस फैसले पर अडिग रहते हुए इस फैसले पर जात-पात, क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि को छोड़कर देश के सभी किसानों को अमल करना होगा, जिससे किसानों को सही मायने में उनका हक मिल सके और उनकी मेहनत का पैसा उनकी जेब के बजाय दलालों और नेताओं की जेबों में न जा सके। Farmers Announcement No MSP No Vote
मुझे तो हैरानी होती है कि किसान जो पूरी जिंदगी अपनी देश का पेट भरने में लगा देता है और अपने बच्चों को न ठीक से खिला पाता है, न ठीक से पढ़ा पाता है और न ही ठीक से उनका भविष्य तय कर पाता है, बहुत होता है, तो अपने बच्चों को देश की सेवा के लिए सेना और पुलिस में भेजने की सोचता है, और इस प्रकार से किसान पूरे परिवार के साथ देश सेवा में लगा रहता है, तो उस किसान के हाथ आता क्या है? या तो दुख-दर्द और जिल्लत भरी जिंदगी या फिर हजारों किसानों के हिस्से में फांसी का फंदा। और जो लोग कोई मेहनत नहीं करते, देश के लोगों को गुमराह करते हैं, लोगों की दिन-रात जेबें काटते हैं, वो ऐशो-आराम की जिंदगी जीते हैं, उनके बच्चे उन विदेशी यूनिवर्सिटियों में पढ़ते हैं, जहां एडमीशिन लेने के लिए करोड़ों रुपए सालाना का खर्चा आता है? इतने पर भी किसान किसी से कोई जलन नहीं रखता, किसी से नफरत नहीं करता और सिर्फ अपनी मेहनत का हक मांग रहा है, तो यह बात सरकारों को नागवार क्यों गुजरती है? सर्दी, बारिश, गर्मी में बिना किसी आधुनिक सुविधा के और सारी इच्छाओं और सुविधाओं को त्यागकर, बिना किसी स्वार्थ के देश के किसान अपने देश के लोगों का पेट भराने के लिए और कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं और सरकारों को उनकी मेहनत का पैसा देना अखरता है, क्यों? Farmers Announcement No MSP No Vote
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किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने इस बार सभी किसानों से एकजुट होकर इस व्यवस्था को बदलने की अपील करते हुए कहा है कि भले ही अपने न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए बलिदान देना पड़े, लेकिन पीछे नहीं हटना है। उन्होंने कहा कि यह समय बलिदान करने का है। सुख, सुविधा, प्रतिष्ठा, पद प्राप्त करने का नहीं है। उन्होंने किसानों से कहा कि फिर से स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं के उस उद्घोष को अपने आचरण में उतारने का समय है। उन्होंने कहा कि खींच लाई थी हमें आजाद होने की उम्मीद, मुल्क पे कुर्बान हो यह आरजू मेरे दिल में है। इसी तरह अन्य किसानों ने भी अंबेडकर भवन में एमएसपी की मांग को लेकर हुंकार भरी और सरकारों, खास तौर पर केंद्र सरकार को साफ-साफ लफ्जों में कहा है कि किसानों को हर फसल के एमएसपी के भाव चाहिए। वर्ना किसानों का वोट नहीं मिलेगा। Farmers Announcement No MSP No Vote
गौरतलब है कि इससे पहले राजस्थान के किसानों की ओर से इसी साल 11 जुलाई को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने वाले दल के पक्ष में मतदान करने एवं उसकी सरकार बनाने में सहयोग करने के संबंध में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव की एक प्रति राजस्थान सरकार को और एक प्रति केंद्र सरकार के सर्वोच्च मंत्रालयों के मंत्रियों को भी भेजी थी। इसी प्रकार से बीती 29 और 30 जुलाई को भी 11 राज्यों के किसान प्रतिनिधियों ने महाराष्ट्र के नागपुर में किसान महापंचायत की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें यही बात तय हुई कि किसानों को एमएसपी मिलनी ही चाहिए। इस प्रस्ताव की प्रतियां भी केंद्र सरकार के अलावा सभी राज्य सरकारों को भेजी गईं। इसके अलावा 24 अगस्त से 2 सितंबर तक राजस्थान के किसानों ने पांच रथों से 10 दिवसीय एमएसपी अधिकार यात्रा निकाली, जिसमें एमएसपी की मांग की गई और किसानों की फसलों का नुकसान होने पर उनको समय पर उचित बीमा राशि का भुगतान करने की मांग की गई। Farmers Announcement No MSP No Vote
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इस अधिकार यात्रा में राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र के अनेक जिलों में जन जागरण किया गया। इस यात्रा में किसानों ने केवल सत्ताधारी राजनीतिक दलों से ही नहीं अपितु विपक्षी गठबंधन इंडिया (I.N.D.I.A.) गठबंधन के सभी सदस्यों को अपनी मांगों वाले प्रस्ताव की प्रतियां सौंपीं। किसान संगठनों का कहना है कि महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में 31 अगस्त को विपक्षी गठबंधन के बैठक स्थल सांताक्रुज स्थित ग्रैंड हयात होटल आयोजित की गई थी वहीं पर किसानों ने विपक्षी दलों के मुखियाओं से अपनी बातें रखने की कोशिश की थी लेकिन उनकी इस किसान यात्रा को पुलिस प्रशासन ने आधा किलोमीटर दूर रोक दिया, जिसके चलते किसान नेताओं के सामने अपनी बात नहीं रख सके। Farmers Announcement No MSP No Vote
हालांकि इसके बाद किसानों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कांग्रेस की संसदीय दल की चेयरपर्सन
सोनिया गांधी ने विशेष सत्र में मुद्दों पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री को 6 सितंबर को पत्र लिखा है। इस पत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य का उल्लेख उन्होंने किया है। लेकिन अभी तक भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानि एनडीए की मोदी सरकार और विपक्षी गठबंधन इंडिया की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने के संबंध में किसी भी प्रकार की चर्चा सुनाई नहीं दे रही है। Farmers Announcement No MSP No Vote
हैरानी की बात यह है कि केंद्र और राज्यों में सत्ताधारी राजनीतिक दलों के अलावा विपक्षी पार्टियों के नेता भी किसानों की इस एसपी की मांग को लेकर गंभीर दिखाई नहीं दे रहे हैं। वर्तमान में इंडिया गठबंधन की अभी भी क़रीब एक दर्जन राज्यों में सरकार है। यह स्थिति तो तब है, जब भारतीय संविधान ने इस प्रकार के कृषि एवं किसान कल्याण से संबंधित कानून निर्माण की अधिकारिता राज्यों को ही सौंप रखी है। लोक हित के लिए राज्यसभा या कम से कम दो विधान मंडलों में संकल्प पारित होने के उपरांत संसद को भी इस प्रकार के कानून बनाने की अधिकारिता प्राप्त हो जाती है। अभी तक के परिदृश्य से यह तो स्पष्ट है कि वर्तमान में शासन करने वाला कोई भी दल मुद्दे के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य कोई भी दल विरोधी सरकार को घेरते हुए तो दिखाई देता है, लेकिन उसके लिए खुद के द्वारा शासित राज्यों में इस प्रकार का कानून बनाने के लिए उनकी इच्छाशक्ति नहीं दिखाता। अगर इंडिया गठबंधन में शामिल वो दल, जिनकी राज्यों में सत्ता है, एमएसपी का गारंटी कानून ले आएं, तो केंद्र की मोदी सरकार और राज्यों में एनडीए और अकेले भाजपा की सरकारों को एमएसपी कानून बनाने को मजबूर होना पड़ेगा। एमएसपी तो किसानों और कृषि में व्यवस्था परिवर्तन का आरंभिक चरण है,
इसके आगे भी किसानों की दर्जनों समस्याएं हैं। Farmers Announcement No MSP No Vote
बहरहाल, राजनीतिक दलों में व्यवस्था परिवर्तन की मन:स्थिति हो तो,
जनता को संघर्ष की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसके अभाव में जनता के पास संघर्ष ही एक विकल्प होता है, और किसान उसी संघर्ष से गुजर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि साल 2000 में तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने जब मोर्चा खोला, तो सरकार ने उनका आंदोलन धोखे से स्थगित करा दिया, जिसका पछतावा किसानों को आज भी है। सवाल यह है कि कृषि प्रधान देश में किसानों के जीवन में खुशहाली क्यों नहीं है? क्यों देश के सबसे बड़े उद्योग- कृषि उद्योग को सरकारें बर्बाद करने पर तुली हुई हैं? सिर्फ इसीलिए न कि दलालों और पूंजीपतियों की जेबें किसानों से इस उद्योग को छीनकर भर सकें? लेकिन सरकार क्या समझती है कि क्या इस देश के किसान को आजादी की कीमत नहीं मालूम है? इस देश के किसान, जो खुद आजादी की लड़ाई के सिपाही थे और आजादी के बाद भी देश की हर तरह से जो सेवा कर रहे हैं, वो और अन्याय क्यों सहें? जो किसान देश को हर हाल में खुशहाल और देश के हर आदमी का पेट भरा देखना चाहते हैं, उनसे ही दुश्मनी निभाकर उनका नुकसान करके आखिर नेता उनके ही वोट बैंक से सत्ता की मलाई खाने की चालाकी कब तक करते रहेंगे? Farmers Announcement No MSP No Vote
सत्ताधारी नेताओं को समझना चाहिए कि किसानों की खुशहाली और कृषि की समृद्धि ही सही मायने में देश की समृद्धि का रास्ता तैयार करेगी, न कि बैंकों से लाखों-करोड़ का कर्जा लेकर देश छोड़कर भागने वाले और डिफाल्टर होकर कर्जा माफ कराने वाले उन पूंजीपतियों से देश समृद्ध होगा, जो अपने ही देश के लोगों की मेहनत का पैसा दिन-रात तरह-तरह के हथकंडों से हड़प रहे हैं। लेकिन शासन करने वालों ने किसानों के साथ- साथ देश की चिंता को राम भरोसे छोड़ दिया है और विकास के नाम पर उस अंतहीन अंधेरी गली की ओर मोड़ दिया है, जहां चंद लोगों की तिजौरी भरने के अलावा पूरे देश की बर्बादी, भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी के सिवाय कुछ नहीं हैं। हमें यानि देश के उन लोगों को जो किसान नहीं है, सभी किसानों के साथ खड़ा होना चाहिए। पिछले दिनों नई दिल्ली के अंबेडकर भवन में इकठ्ठा हुए किसान प्रतिनिधियों ने कहा कि हम सभी प्रतिनिधि एमएसपी पर फसलों की खरीद की गारंटी के कानून के लिए सरकारों पर दबाव बनाने के लिए कृत संकल्प है। उस दिशा में अपने स्वप्नों और अरमानों की बलि चढ़ाकर व्यवस्था परिवर्तन की दिशा में वोट की चोट को माध्यम बनाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य की शक्ति के प्रदर्शन के लिए चुनाव में भागीदारी करेंगे। इस हेतु से चुनाव जीतना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना न्यूनतम समर्थन मूल्य की उत्कंठा लिए मतदाताओं को तैयार करना है। देश के किसान इस दिशा में पहल करें। इस आवश्यकता की पूर्ति में पूरे प्राणपण से जुटना समय की मांग है।
Farmers Announcement No MSP No Voteकिसान महापंचायत के गोपाल सैनी ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि दिल्ली के अंबेडकर भवन में जुटे सैकड़ों किसानों ने संकल्प लिया कि अगर एमएसपी का गारंटी कानून बनाकर उनकी फसलों को उसके आधार पर नहीं खरीदा जाएगा, तो वो वोट नहीं देंगे और जो पार्टी यह कानून बनाएगी, उसे देश के सभी किसानों के वोट मिलेंगे। देश के कई किसान संगठनों के बैनर तले इसी उद्देश्य से परिचर्चा की गई जिसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र इसके अतिरिक्त तेलंगाना, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश के किसानों ने हिस्सा लिया और इन राज्यों के अलावा अन्य कई राज्यों के किसानों ने ऑनलाइन इस प्रस्ताव का समर्थन दिया। मेरे विचार से केंद्र और राज्यों की सरकारों को किसानों की इस महत्वपूर्ण मांग को अनदेखा नहीं करना चाहिए। क्योंकि देश में खेती किसानी से जुड़े हुए लोगों का प्रतिशत करीब 70 फ़ीसदी है, जो किसी भी राजनीतिक दल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्या किसानों का समर्थन न मिलने पर कोई भी सियासी दल केंद्र में तो क्या, किसी भी राज्य में सरकार बना नही सकेगा?
Farmers Announcement No MSP No Vote(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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