उन्होंने सवाल उठाया कि जब एक जिला मजिस्ट्रेट को वक्फ मामलों की गहन जानकारी नहीं होगी तो वह इसके उद्देश्यों को कैसे समझ पाएगा? उन्होंने उत्तर प्रदेश का विशेष रूप से जिक्र करते हुए कहा कि यहां बड़ी संख्या में वक्फ संपत्तियां हैं और इस विधेयक के पारित होने के बाद सबसे ज्यादा असर प्रदेश, खासकर लखनऊ पर पड़ेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि जब पूरा मुस्लिम समुदाय ईद मना रहा था, तब सरकार ने यह विधेयक संसद में पेश किया। उन्होंने इसे गंभीर चिंता का विषय बताया और कहा कि सरकार ने जेपीसी की सिफारिशों और मुस्लिम संगठनों की राय को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है।

मौलाना फिरंगी महली ने कहा कि वक्फ संपत्तियां सिर्फ मुस्लिम समुदाय की हैं, जिसमें धार्मिक स्थल, मस्जिद और दरगाह शामिल हैं, जिनकी पवित्रता को किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता। उन्होंने उम्मीद जताई कि संसद में सभी सांसद मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान करेंगे और विधेयक को कानूनी रूप नहीं दिया जाएगा। मुस्लिम समुदाय के कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के खिलाफ है। अगर यह विधेयक पारित होता है तो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा कि किसी भी तरह के विरोध की रणनीति अभी तय नहीं हुई है, लेकिन भविष्य में सामूहिक बैठक के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा।
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मुस्लिम संगठनों ने कहा कि वक्फ की संपत्तियों को रेलवे और रक्षा मंत्रालय की संपत्तियों से भी ज्यादा बताया जा रहा है, जो पूरी तरह से गलत है। उनका कहना है कि मस्जिद, खानकाह और दरगाहों को बेचा नहीं जा सकता। न ही इनकी कोई कीमत तय की जा सकती है। यह बिल सिर्फ मुस्लिम समुदाय को कमजोर करने के लिए लाया गया है। इसे किसी भी हालत में कानूनी रूप नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने सरकार से मुस्लिम समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस बिल को वापस लेने की अपील की। मुस्लिम संगठनों ने इस मुद्दे पर किसी आधिकारिक आंदोलन की घोषणा नहीं की है, लेकिन संकेत दिए हैं कि जरूरत पड़ने पर वे सुप्रीम कोर्ट का सहारा जरूर लेंगे। आने वाले दिनों में मुस्लिम नेताओं और संगठनों की बैठक के बाद इस पर आगे की रणनीति तय की जाएगी। Waqf Amendment Bill
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