सहारनपुर : एक ओर जहां आधुनिकता के दौर में युवक युवतियां फेसबुक-इंस्टाग्राम पर रील बनाने में व्यस्त हैं वहीं सहारनपुर की 23 वर्षीय अंशुल आधुनिक खेती कर मशरूम गर्ल के नाम से पहचान बना चुकी है। जी हां गांव मदनूकी की रहने वाली अंशुल पंवार अपनी पढ़ाई के साथ साथ न सिर्फ मशरूम की खेती कर रही हैं बल्कि दूसरी फसलों की खेती में अपने पिता का हाथ भी बंटा रही हैं। अंशुल द्वारा उगाई जा रही मशरूम सहारनपुर में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों भी भेजी जा रही है। जिससे अंशुल लाखो रुपए की कमाई कर रही हैं।

आपको बता दें कि करीब 20 साल पहले सहारनपुर जिला मशरूम उत्पादन में सबसे पिछड़ा क्षेत्र था। सहारनपुर में पहले दूसरे राज्यों से मशरूम आयत किया जाता था। लेकिन लगातार लग रही मशरूम यूनिटों की वजह से आज कई राज्यों के लोग सहारनपुर का मशरूम खा रहे हैं। अंशुल पंवार बताती हैं कि पढ़ाई के साथ-साथ वह पिछले तीन सालों से मशरूम उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं और नौकरी के पीछे भागने की बजाय वह खुद का रोजगार कर रही हैं। इतना ही नहीं दूसरे लोगों को भी रोजगार दे रही हैं।
अंशुल ने अपनी जमीन पर दो मशरूम यूनिट लगाई है। जिसमें उन्होंने करीब 8000 बैग मशरूम लगाए हैं, जिनसे हर दिन कई क्विंटल मशरूम निकलता है, जिसे सहारनपुर के साथ-साथ हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल और उत्तराखंड के बाजारों में बेचा जाता है। अंशुल को देखकर उनके आस-पास के गांवों के लोग भी अपनी बेटियों को कृषि के क्षेत्र में प्रोत्साहित कर रहे हैं।

अंशुल पंवार ने बताया कि वह 23 साल की हैं और उन्होंने बी.कॉम किया है। उन्होंने मशरूम का काम अपने पिता सतवीर से सीखा है। अंशुल के पिता सतवीर 2009 से ही मशरूम की अलग-अलग किस्मों का उत्पादन कर रहे हैं। बी.कॉम करने के बाद अंशुल के पास दो विकल्प थे, एक सरकारी नौकरी करना और दूसरा अपना खुद का व्यवसाय स्थापित करना। अंशुल ने सरकारी नौकरी के पीछे भागने के बजाय मशरूम उत्पादन का खुद का व्यवसाय करना चुना।
अंशुल का कहना है कि अगर उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाती तो वह खुद की जिंदगी संवार सकती थीं। लेकिन मशरूम का काम करके वह खुद के साथ-साथ कई लोगों को रोजगार दे रही हैं। मशरूम की वैरायटी की बात करें तो सर्दियों में बटन मशरूम और गर्मियों में ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन करती हैं। बटन मशरूम 150 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि रोजाना दो से पांच क्विंटल उत्पादन होता है। अंशुल का कहना है कि उनके पिता ने लड़के-लड़कियों में भेदभाव नहीं किया और उन्हें लड़कों की तरह पाला। मशरूम उत्पादन के लिए अंशुल को इलाके के लोग मशरूम गर्ल के नामा से पुकारते हैं। Mashrum Girl
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