दिल्ली : आज पश्चिम यूपी की ना तो कोई राजनीतिक पहचान बची है और ना ही कोई ऐसी पार्टी या नेता जिसके पीछे पश्चिम यूपी की सारी जनता चल सके। लंबे अरसे से किसानों की पार्टी माने जाने वाले राष्ट्रीय लोकदल ने भी किसानों को धोखा देकर चुनाव से पहले पाला बदलकर किसानों की नाराजगी मोल ले ली, जिसका परिणाम आगामी विधानसभा उपचुनाव और विधानसभा चुनावों में दिखेगा।
पार्टी का साथ देने वाले कई कार्यकर्ता और क्षेत्र के लोगों का कहना है कि रालोद मुखिया जयंत चौधरी भाजपा के साथ जाकर खुद तो सत्ता की मलाई चाट रहे हैं। परंतु रालोद के नेताओं और कार्यकर्ताओं के निजी तो दूर समाज हित के काम भी नहीं हो रहे हैं। यही नहीं क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं और मतदाताओं का जयंत से मिलना भी दुभर हो गया है। जिससे रालोद के भीतर भी नाराजगी बढ़ती चली जा रही है। Westren UP Politics
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क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि सपा कभी भी पश्चिम में मजबूत नहीं रही क्योंकि यहां उसका बेस वोट यादव ना के बराबर है। भाजपा को हराने की नियत से मुसलमान किसी के साथ भी चला जाता है। अतः वह भी सपा का स्थाई साथी नहीं है। सपा वैसे भी पश्चिम यूपी को साधने के कोई विशेष प्रयास करती नहीं दिख रही है। सपा के जो कुछ सांसद और विधायक जीतकर आए हैं वह अभी अपने आप को मजबूती देने में लगे हुए हैं। वहीं केंद्र में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस लगभग 35 सालों से यूपी की सत्ता से बाहर है और पश्चिम में तो कांग्रेस का कोई वजूद दिखाई नहीं देता। गठबंधन करके किसी के सहारे दो चार सीट आ जाएं तो गनीमत है वरना यहां कांग्रेस बस नाम मात्र के लिए ही है। Westren UP Politics
एक जमाने में पश्चिम से शुरुआत करने वाली बसपा की हालत भी बहुत पतली है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) वर्गों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उप-वर्गीकरण के फैसले से दलित राजनीति भी पूरे देश में बिखर सी गई है। दलित जातियों में आरक्षण में अपनी-अपनी हिस्सेदारी को लेकर आपस में संघर्ष तेज होता जा रहा है जिससे दलित नेता अपनी-अपनी जाति के नेता मात्र ही बचे हैं। इनमें भी अपनी जाति के भीतर भी खुद का नेतृत्व स्थापित करने का संघर्ष हो रहा है। ऐसे में दलित पार्टी के न तो सत्ता में आने के दूर-दूर तक कोई आसार हैं और न ही पश्चिम यूपी की अन्य बिरादरियां किसी दलित को अपना नेता मानने को तैयार हैं। Westren UP Politics
इधर किसानों की पार्टी माने जाने वाले दल का भी वजूद लगभग समाप्त होता नज़र आ रहा है। ऐसे में ले देकर फ़िलहाल तो भाजपा ही पश्चिम यूपी की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति नजर आती है। हालांकि भाजपा से भी पश्चिम यूपी की जनता विशेषकर किसान जातियां बहुत संतुष्ट नहीं है। ऐसे में क्या विकल्प है?
पिछले कुछ दिनों से पश्चिम यूपी में किसान और दूसरी दाल की राजनीति करने वाले कार्यकर्ताओं और सियासत के साथ संपर्क रखने वाले लोगों में इस बात की चर्चा है कि आने वाले समय में अब राजनीतिक रूप से किस दल से जुड़ें? किस नेता के पीछे चलें? यही सवाल मैं भी तमाम सियासी दलों के नेताओं से जानना चाहता हूं कि पश्चिम यूपी में राजनीतिक विकल्प पर उनके क्या विचार हैं? क्योंकि पश्चिमी यूपी का किसान वर्ग और चुनावी समर में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले लोग कहीं ना कहीं अपने आप को अनाथ महसूस कर रहे हैं। तो ऐसे में वह एक नए सेनापति को ढूंढ रहे हैं जिसके पीछे चलकर आगे का सियासी युद्ध लड़ सकें। Westren UP Politics
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