NGT & Pollution : NGT के बैन के बाद रात के अंधेरे में चल रही टायर जलाने की फैक्ट्रियां, धुंए और जहरीली गैस से फ़ैल रही गंभीर बीमारियां, कैंसर और टीबी से हो रही मौत

NGT & Pollution
सहारनपुर : एक ओर जहां दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण को देखते NGT ने देश भर में पराली, फसल अवशेष जलाने पर प्रतिबंध लगाया है वहीं जनपद सहारनपुर में कुछ लोग NGT के निर्देशों को न सिर्फ ठेंगा दिखा रहे हैं बल्कि पुराने टायर जलाकर पर्यावरण को तो प्रदूषित कर ही रहे हैं आमजन के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं। सहारनपुर में टायर जलाने के लिए दर्जनों फैक्टरियां चल रही हैं। ख़ास बात ये है कि जिला प्रशासन इन फैक्ट्रियों से अनजान बना हुआ है। हालांकि इन फैक्टरियों को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से NOC जारी की गई है। किसान के खेतों में पराली जलते ही सैटेलाइट के जरिये प्रदूषण विभाग किसानों पर कार्यवाई कर रहा है। लेकिन इन फैक्टरी संचालक सैटेलाइट से बचने के लिए रात के अँधेरे में टायरों को जलाकर तार, तेल और कार्बन पॉउडर निकाल रहे हैं।
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NGT के बैन के बाद रात के अंधेरे में चल रही टायर जलाने की फैक्ट्रियां
टायर जलाने से कई तरह की जहरीली गैस निकल रही है जिससे आसपास के कई गाँव के लोग गंभीर बिमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।संकलापुरी गांव में ही सैकड़ों के बाहर आधा दर्जन फैक्ट्रियां चल रही है जिनसे निकलने वाला धुंआ और जहरीली गैस कैंसर, फेफड़ों की कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियां फ़ैल रही है। सैकड़ों लोग कैंसर जैसी गंभीर बिमारियों से जूझ रहे हैं। ग्रामीणों के मुताबिक़ गांव में कई बच्चे भी फेफड़ो और कैंसर की बिमारी की चपेट में आने मौत के अघोष में शमा चुके हैं। उधर पर्यावरण के जानकार टायरों से निकलने वाले धुंए को जनमानस के लिए जानलेवा बता रहे हैं। बावजूद इसके प्रदूषण विभाग इन फैक्टरियों पर कार्यवाई करने की बजाए नजर अंदाज कर रहा है।
आपको बता दें कि दिल्ली-एनसीआर में NGT के निर्देश पर प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया है। इनमें से ज्यादातर फैक्टरियां वे हैं जिनमें टायरों से तेल निकालने और कार्बन पाउडर बनाने का काम किया जाता है। NCR में फैक्टरियां बंद होने पर फैक्ट्री संचालकों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में साम्राज्य स्थापित कर लिया है। NCR से बाहर जनपद सहारनपुर में 10 से ज्यादा फैक्ट्रियां पुराने टायरों से तेल निकालकर प्रदूषण फैलाया जा है। टायरों से निकलने वाली गैस से वातावरण में जहर घोला जा रहा है। आलम यह है कि फैक्टरी संचालक बेखौफ होकर रात के अँधेरे में पुराने टायरों को जलाकर जहां कीमती तेल निकाल रहे हैं वहीं सहारनपुर की हवा में जहरीली गैस छोड़कर वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं।
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फेफड़ो की बिमारी से ICU में भर्ती बच्ची की हुई मौत
थाना देहात कोतवाली इलाके के गांव शंकलापुरी के जंगल में रात भर टायर जलाने वाली फैक्ट्रियां चलाई जा रही हैं। चौकाने वाली बात तो ये है कि जो फैक्टरियां प्रदूषण विभाग द्वारा सील की गई हैं वे भी रात के अंधेरे में जहरीला धुआं उगल रही हैं। रात में घरों में सोने वाले ग्रामीणों को जाग कर रात गुजारनी पड़ती है। जहरीली गैस से फ़ैल रही बीमारियों के कारण ग्रामीणों की नींद उडी हुई है। जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर बसे गांव शंकलापुरी, खुबनपुर, शाहपुर कदीम, सरकड़ी खुमार, कोलकी और मनसापुर गांव में इन फैक्टरियों से निकलने वाले धुंए ने जीना दुश्वार किया हुआ है। इन गांवों के आसपास सात से अधिक टायर फैक्ट्रियां जहर उगल रही हैं। फैक्ट्रियों से निकलने वाला जहरीला धुआं ग्रामीणों को बीमार कर रहा है। ग्रामीण कैंसर, दमा, टीबी और हृदय रोग से पीड़ित हो चुके हैं।
शहर से सटे होने के कारण इन फैक्ट्रियों का धुआं शहर के लोगों को भी प्रभावित कर रहा है। इतना ही नहीं इन गांवों में बीमारियों से मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। 15 दिन पहले एक 5 वर्षीय बच्ची की भी सांस की बीमारी से मौत हो गई थी। लोग सांस नहीं ले पा रहे हैं और गांव में रहते हुए घुटन महसूस कर रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि फैक्ट्रियों के आसपास खेत हैं। वहां उनकी फसलें हैं, जो फैक्ट्रियों के धुएं से काली पड़ गई हैं। फैक्ट्रियों से निकलने वाले जानलेवा धुएं से फसलें जहरीली हो गई हैं। पशु भी इस चारे को नहीं खाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार मंडलायुक्त और डीएम को लिखित शिकायत दी गई। विरोध प्रदर्शन भी किए गए। लेकिन कोई संज्ञान नहीं ले रहा है। इन सभी गांवों की आबादी 20 हजार से अधिक है।
News 14 Today की टीम ने गांव शंकलापुरी पहुंची तो ग्रामीणों ने अपना दर्द बताना शुरू कर दिया। ग्रामीण सलीम अहमद ने बताया कि उनकी 5 साल की पोती की 15 दिन पहले मौत हो गई थी। उसे सांस लेने में दिक्कत थी। वह एम्स में वेंटिलेटर पर थी। फैक्टरियों से निकलने वाले धुंए और गैस से उसके फेफड़े खराब हो गए जिससे उसकी मौत हो गई। वहीं ग्रामीण जलील ने बताया कि उनकी पत्नी को भी सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। कई अच्छे डॉक्टरों को दिखाया लेकिन पत्नी आशिया नहीं बचा पाये और 5 महीने पहले उसकी मौत हो गई थी। जलील बताते हैं कि उनकी मां फूलबानो की भी 15 दिन पहले मौत हो गई थी। उन्हें भी डॉक्टरों के पास ले जाया गया था। लेकिन दोनों को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। फेफड़े काम करना बंद कर चुके थे। दोनों की मौत से वे टूट गए हैं।
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कैंसर की चपेट में आने से मौत का शिकार हुई 5 साल की इनायत – फाइल फोटो
आसपास के गांवों में भी इसी तरह के हालत बने हुए हैं। शाहपुर कदीम निवासी युवक ने बताया कि उनके गांव में भी बुंदू हसन की पत्नी मुमताह को भी कैंसर हो गया था। जिसके चलते दो महीने पहले उसकी मौत हो गई थी। उधर बुंदू हसन भी सांस और दमे की बिमारी के चलते बिस्तर पर आ गए हैं। उसको भी सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। बुंदू हसन ने बताया कि फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं की वजह से लोग मर रहे हैं। लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही। इसी बीच हमारी मुलाक़ात सलीम अहमद से हुई। सलीम अहमद ने बताया कि उसकी 5 साल की पोती इनायत को सांस लेने में दिक्कत थी। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां पता चला कि उसके फेफड़े खराब हो गए हैं। फिर उसे दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया। जहां उसको वेंटिलेटर पर रखा गया। लेकिन 15 दिन पहले उसकी मौत हो गई। जहरीला धुआं और गैस लोगों को बीमार कर रही है।
आसपास के खेतों में फसलें बर्बाद हो रही हैं। आलम यह भी आसपास के खेतों से लाये गए चारे को पशु भी खा रहे हैं। क्योंकि इन फैक्टरियों से निकलने वाले धुंए से रात में दुर्गंध आती है। सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चों को सांस लेने में दिक्कत होती है। रात में फैक्ट्रियां चलती हैं और लोगों का दम घुटता है। ग्राम प्रधान पति जावेद का कहना है कि गांव के पास 12 साल से ये फैक्टरियां लगी हुई है। इन फैक्टरियों में पुराने टायर जलाए जाते हैं। जिससे गांव में धुआं और जहरीली गैस फ़ैल जाती है। लोगों को सांस लेने, आँखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत और फेफड़ों में दिक्कत होती है। पिछले 5 साल से फैक्ट्रियों के धुएं से लोग दिल के मरीज हो गए हैं। कुछ लोगों को कैंसर, टीबी और अस्थमा हो गया है। इसके लिए कई बार अधिकारीयों को शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
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जमील अहमद की माता की कैंसर से हुई मौत – फाइल फोटो
प्रधान संगठन के अध्यक्ष संजय वालिया का कहना है कि एनजीटी एक संस्था है जो प्रदूषण रोकने के लिए काम करती है। किसान जब पराली जलाते हैं तो उसका धुआं सैटेलाइट में कैद हो जाता है। लेकिन गांव में 12 साल से ये फैक्ट्रियां लगी हैं, इनसे निकलने वाला धुआं सैटेलाइट में कैद नहीं हो रहा है। किसानों पर एफआईआर दर्ज कर दी जाती है और 25 हजार का जुर्माना भी लगाया जाता है। किसानों को सजा दी जाती है। फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले धुएं को लेकर कई बार शिकायत की गई। लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। बस इतना ही हुआ है। एक-दो फैक्ट्रियों को सील कर दिया गया और मामला खत्म हो गया। जिसके बाद सारी फैक्ट्रियां रात में चलने लगीं। सील की गई फैक्ट्रियां भी चल रही हैं। ऐसी कौन सी कार्रवाई हो रही है कि सरकार और प्रशासन को लोगों की जान की कोई परवाह नहीं है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और बदबू सिर्फ गांवों में ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों में भी पहुंच रही है। जहरीली गैस बनने पर लोग घरों में गैस चेक करते हैं कि कहीं गैस लीक तो नहीं हो रही है। बंद कमरे में भी यह धुआं बर्दाश्त नहीं होता। गांव के लोग कैंसर, टीबी, अस्थमा, हृदय व अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। कई लोग गंभीर बीमारियों के चलते मर गए। पांच साल की बच्ची भी इस धुएं की भेंट चढ़ गई।’

पर्यावरणविद् डॉ. एसके उपाध्याय ने बताया कि जब किसानों द्वारा पराली जलाना अपराध माना जाता है तो टायर जलाना और भी खतरनाक है। देश भर में टायर जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध है। क्योंकि टायर जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी), पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), ब्यूटाडीन, स्टाइरीन, जहरीले रसायन, बेंजीन, पारा जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं। ये भारी होती हैं, इसलिए बहुत ऊपर नहीं जातीं। अगर कोई उस हवा में सांस लेगा, तो उसे फेफड़ों की बीमारी के साथ-साथ कैंसर, टीबी, अस्थमा और आंखों की क्षति होगी। फेफड़ों का कैंसर तो होगा ही।

जानकारों के मुताबिक़ टायर ऑयल प्लांट लगाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। लेकिन ये टायर ऑयल प्लांट एनजीटी के नियमों का उल्लंघन करके अवैध रूप से चलाए जा रहे हैं। पुराने टायर खरीदकर प्लांट में लाए जाते हैं। इन टायरों को काटा जाता है। तार निकालकर अलग किए जाते हैं और टायर को डिस्पोजल मशीन में उबाला जाता है। उबालने पर इन टायरों से तेल निकलता है। तेल को अलग-अलग ड्रमों में भरकर टायर की धूल अलग कर ली जाती है। टायर ऑयल (एलडीओ) 40 रुपए प्रति लीटर बिकता है। टायर ऑयल प्लांट से जो तेल निकलता है, उसे टायर ऑयल कहते हैं। ये लोग इस तेल को लाइफ डीजल ऑयल (एलडीओ) के नाम से बेचते हैं। निकाले गए रबर के पाउडर को ईंट भट्ठा मालिक खरीदते हैं। एलडीओ को रोड प्लांट और बड़ी फैक्ट्रियां खरीदती हैं। इस तेल का इस्तेमाल प्लांट और फैक्ट्रियों में चलने वाले बर्नर में किया जाता है। यह तेल काफी सस्ता है यानी इसकी कीमत 40 से 42 रुपए प्रति लीटर है।

टायर ऑयल प्लांट लगाने वाले एक युवक ने बताया कि तेल दो तरह का होता है। एक एलएचएफ और एफओ फर्निश ऑयल। पहले एफओ फर्निश ऑयल का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब बंद हो गया है। अब एलएचएफ ऑयल का इस्तेमाल होता है। बड़ी तेल कंपनियां भी अब एलएचएफ ऑयल का इस्तेमाल कर रही हैं। एलएचएफ ऑयल का इस्तेमाल हरियाणा, राजस्थान, यूपी, दिल्ली में होता है। जबकि इससे पहले एफओ फर्निश ऑयल का इस्तेमाल होता था। उत्तराखंड में अभी भी फर्निश ऑयल का इस्तेमाल होता है। यह रिफाइनरी का उत्पाद है। लेकिन नियम यह है कि चाहे कोई भी फैक्ट्री हो, वह सिर्फ एलएचएफ ऑयल का ही इस्तेमाल करेगी। एफओ फर्निश ऑयल पूरी तरह से प्रतिबंधित है। टायरों से निकाले जाने वाले लाइफ डीजल ऑयल (एलडीओ) पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। इसका इस्तेमाल कोई भी फैक्ट्री नहीं कर सकती। लेकिन इस ऑयल को लाइफ डीजल ऑयल (एलडीओ) के नाम से बाजार में बेचा जाता है।

सहारनपुर में अवैध रूप से 10 से ज्यादा टायर ऑयल प्लांट लगे हुए हैं। इन प्लांट को लगाने की इजाजत नहीं है। अगर इन प्लांट की कमाई की बात करें तो इनका सालाना टर्नओवर 500 करोड़ से ज्यादा है। ऑयल की क्षमता उनकी मशीनरी पर निर्भर करती है। अगर किसी फैक्ट्री से टायर ऑयल निकालने की बात करें तो 24 घंटे में करीब 5000 लीटर टायर ऑयल निकाला जाता है। वहीं जब इन फैक्टरियों के बारे में जिलाधिकारी मनीष बंसल से बात की गई तो उन्होंने बताया कि ये फैक्टरी उनकी जानकारी में नहीं हैं। अगर प्रदूषण फैलाने और मानकों के विपरीत कोई काम होने की कोई शिकायत आती है तो उनके खिलाफ कार्यवाई की जायेगी।

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