
उन्होंने बताया कि यह खोज भारत में पैरापॉड के अंडों की दुर्लभ उपस्थिति को उजागर करती है, जो संभवतः एक नए टैक्सन ओविराप्टोरिड की तरह डायनासोर की व्यापक भौगोलिक उपस्थिति का संकेत देती है। अंडे की लंबाई 19 सेमी, चौड़ाई 7.5 सेमी, आयतन 447 सेमी और लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 2.5 सेमी है, जो इसे भारत में प्रचलित टाइटेनिसॉरिड मेगालुलस अंडे से अलग करता है। इसका उच्च घनत्व (3689 किग्रा/एम3) शिवालिक क्षेत्र की लौह-समृद्ध खनिजीकरण प्रक्रिया को दर्शाता है।
डॉ. उमर सैफ ने कहा कि डायनासोर के अंडे प्रजनन रणनीतियों, प्राचीन वातावरण और जैव भूगोल को समझने में महत्वपूर्ण हैं। भारत में अपर क्रेटेशियस काल यानी लाखों साल पहले के जीवाश्म अंडे मुख्य रूप से मेगालुलस ओटेक्सन के हैं, जो टायरानोसॉरिड सॉरोपोड्स (जैसे आइसिसॉरस, जैनोसॉरस) के हैं, लेकिन भारत में दुर्लभ हैं। शिवालिक पहाड़ियों से प्लेसियोसॉर जीवाश्म भी मिला है। डॉ. उमर सैफ ने बताया कि नया प्लेसियोसॉर जीवाश्म, जिसका नाम एसआर-10 है। उनका दावा है कि यह डायनासोर का आंशिक पंख है, जो 46 सेमी लंबा, चार सेमी मोटा है और इसकी चौड़ाई में भिन्नताएं (शुरुआत में नौ सेमी, बीच में 15.5 सेमी और अंत में आठ सेमी) हैं।
हिमाचल प्रदेश के नाहन में पहले भी जीवाश्म मिल चुके हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश में भी कुछ जीवाश्म मिले हैं, जिन्हें लोग पत्थर समझकर अपने घरों में रखते थे। ऐसे में संभव है कि शिवालिक की तलहटी से मिला जीवाश्म अंडा डायनासोर का हो, लेकिन यह पुरातत्व विभाग द्वारा गहन जांच का विषय है।
प्रो. ओम दत्त, विभागाध्यक्ष, प्राणीशास्त्र, महाराज सिंह महाविद्यालय, सहारनपुर