सहारनपुर : रंगों के त्योहार होली को मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं। जगह-जगह लकड़ियों से होली बनाकर उसकी पूजा की जा रही है। वहीं उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर में एक ऐसा भी गांव है जहां होली का दहन नहीं किया जाता। जी हैं जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर बसे बरसी गांव में होली के त्योहार को लेकर यह अनोखी परंपरा निभाई जा रही है। बरसी गांव में महाभारत काल से होलिका दहन नहीं किया जाता है। हालांकि, ग्रामीण और गांव के युवा रंग और गुलाल लगाकर होली जरूर खेलते हैं। मान्यता है कि अगर इस गांव में होली दहन के बाद भगवान् शिवजी के पैर जलते हैं।
आपको बता दें कि बरसी गांव के पश्चमी छोर पर महाभारत कालीन शिव मंदिर है जहां प्राचीन काल से स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। ग्रामीणों का कहना है कि महाभारत काल से ही इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता है, जबकि रीति-रिवाज के अनुसार गांव की विवाहित लड़कियां पड़ोसी गांव में होली पूजन कर अपना त्योहार मनाती हैं। बताया जाता है कि इस गांव में भगवान शिव वास करते हैं। यही वजह है कि होलिका दहन की अग्नि से नाथो के नाथ भोलेनाथ के पैर जलते हैं।
होलिका दहन से बुराई का होता है अंत : देशभर में होली मनाने की तैयारियां जोरों पर हैं। लोग रंग-गुलाल खरीद रहे हैं और मिठाइयां और पकवान बनाए जा रहे हैं। मान्यता है कि होलिका पूजन से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। होलिका दहन से बुराई का अंत होता है, लेकिन शहरों और गांवों में होली और दिवाली समेत सभी त्योहारों को मनाने की अलग-अलग परंपराएं हैं। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा सहारनपुर के बरसी गांव में देखने को मिलती है, जहां रंगों के त्योहार होली को रंगों के साथ धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन होलिका की पूजा कर उसे जलाया नहीं जाता। महाभारत काल से चली आ रही अनोखी परंपरा ईटीवी भारत की टीम ने जब बरसी गांव पहुंचकर इस अनोखी परंपरा की पड़ताल की तो इसके पीछे की वजह सामने आई जो महाभारत काल से चली आ रही है।
मंदिर कौरवों ने बनाया, भीम ने पूर्व से पश्चिम में घुमाया : ग्रामीणों ने ईटीवी भारत को बातचीत में बताया कि बरसी गांव में महाभारत काल का सिद्धपीठ शिव मंदिर है, जहां स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कौरवों ने कराया था, लेकिन कुरुक्षेत्र के युद्ध में जाते समय पांडव पुत्र भीम ने इसके मुख्य द्वार में गदा ठोंककर उसे पूर्व से पश्चिम की ओर मोड़ दिया था, जिसके कारण इसे देश का एकमात्र पश्चिम मुखी शिव मंदिर माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र जाते समय इस गांव में रुके थे और उन्होंने इस गांव को बृज बताया था, तभी से इस गांव का नाम बरसी पड़ा।
होली जलाने से भगवान शिव के पैर जलते हैं : ग्रामीणों के अनुसार बरसी गांव में न तो लकड़ी की होली बनाई जाती है और न ही होली की पूजा की जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि भगवान शिव बरसी गांव में स्वयंभू शिवलिंग के होने के कारण आते हैं। होलिका की अग्नि से भोले बाबा के पैर जल जाते हैं, इसलिए बरसी गांव में न तो होली की पूजा होती है और न ही होली जलाई जाती है। महाभारत काल से इस गांव में होली नहीं मनाई गई है। ग्रामीण इस परंपरा को भविष्य में भी कायम रखने की बात करते हैं, वहीं गांव की विवाहित लड़कियां पड़ोसी गांवों में जाकर अपने ससुराल के रीति-रिवाजों के अनुसार होली की पूजा कर अपना त्योहार मनाती हैं।