दिल्ली : हमारे कृषि प्रधान देश में किसानों को पारंपरिक खेती से आधुनिक खेती की ओर ले जाने की योजनाओं पर ठोस कदम उठाने के प्रयास नाकाफी रहे हैं। सरकारें हमेशा से ही उद्योगों और निर्माण कार्यों को बढ़ावा देने में रुचि दिखाती रही हैं, जबकि आज भी करीब 60 फीसदी आबादी कृषि या कृषि से जुड़े क्षेत्रों से अपनी आजीविका चलाती है। हम अपने दादा-परदादाओं के जमाने में सुनते थे कि अंग्रेजों के जमाने में जमींदारों द्वारा किसानों का सबसे ज्यादा शोषण किया जाता था। लेकिन उस जमाने में भी किसानों के विद्रोह और आंदोलनों के आगे जमींदारों को झुकना पड़ा था और इन आंदोलनों का नेतृत्व बड़े किसान ही करते थे।
लेकिन पिछली सरकारों के दौर में भी किसानों को न्याय नहीं मिला। वहीं किसान संगठन अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने को मजबूर हुए, इसमें कोई शक नहीं कि कृषि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसानों की बदौलत ही देश के लोगों का पेट भर रहा है। इसके बावजूद भी इराक के किसानों की आर्थिक समस्याओं का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है, जो न तो राष्ट्रहित में है और न ही जनहित में। बहरहाल, यह बात तो साफ है कि अगर कोई समुदाय देश की आर्थिक नीतियों और व्यवस्था में बदलाव ला सकता है तो वह किसान ही हैं। इसी सिलसिले में राजस्थान के टोंक में कुछ दिन पहले किसान महापंचायत की प्रदेश टीम की बैठक हुई।
इस बैठक में किसानों की सत्ता को समग्रता के आधार पर स्थापित करने के बारे में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। किसानों को यह बताने की कोशिश की गई कि वे अपने देश के अन्नदाता के रूप में देश की जनता और अन्य जीवों का पेट भरते हैं और इसके लिए उनमें कभी अहंकार नहीं रहा, बल्कि उन्होंने हमेशा विनम्रता के साथ सभी का स्वागत किया है। इसके बावजूद जिस तरह से सरकारों द्वारा किसानों की अनदेखी की जा रही है और उनकी जमीनें छीनने की साजिश बार-बार रची जा रही है, उससे किसान दुखी हैं। ऐसे में देश के किसानों को एकजुट होकर सरकारों को अपनी ताकत का एहसास कराना होगा, ताकि कोई भी सरकार उन पर अत्याचार न कर सके और न ही उनके अधिकारों को छीन सके। दरअसल, एक के बाद एक मिल रही असफलताएं किसानों के लिए आगे की राह आसान कर रही हैं।
असफलताओं के अनुभव से ही किसान अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं और वह भी बिना किसी को नुकसान पहुंचाए। किसान समुदाय की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि वह अपने लिए तो नुकसान सह लेगा, लेकिन किसी और को नुकसान पहुंचाने की बात सपने में भी नहीं सोच सकता। हालांकि यह सब आर्थिक नीतियों सहित व्यवस्था परिवर्तन और उस पर शासन करने की एकजुट शक्ति से ही संभव है। इसी धारणा के आधार पर अब किसानों को राजनीतिक शक्ति बढ़ाने का रास्ता खुद बनाना होगा और कुछ किसान इस दिशा में आगे भी बढ़ रहे हैं। किसान महापंचायत ने आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में सतत साधना का रास्ता चुना है, जिसमें प्रत्येक विधानसभा से एक संभावित किसान उम्मीदवार को जनसेवा के लिए समर्पित होने की चुनौती को पूरा करने के लिए पूरे मनोयोग से काम करना अनिवार्य किया गया है और देशहित के इस कार्य में उस क्षेत्र में रहने वाले अन्य सभी किसानों से सहयोग की अपेक्षा और अपील की है।
इसके लिए किसानों ने ट्रैक्टर के रथ पर सवार होकर लोगों को प्रेरित करने के लिए “रकबीरा खड़ा बाजार में लुकाती हाथ, जो घर के अपनों पाले हमारे साथ” की भावना के साथ मिलकर काम करने का संकल्प लिया है और इसमें किसानों और अन्य लोगों से अपेक्षित सहयोग का प्रस्ताव भी रखा है। किसानों का मानना है कि हमारे कृषि प्रधान देश में किसान-केंद्रित राजनीति और गांव आधारित अर्थव्यवस्था ही देश में विकास के सार्थक परिणाम ला सकती है। इससे किसानों की लाचारी भी दूर होगी और उन्हें तथा उनके साथ-साथ अन्य आम लोगों को भी न्याय मिलेगा तथा देश के व्यापारिक घरानों (कॉरपोरेट जगत) की लूट प्रणाली से कुछ ही नहीं बल्कि सभी लोगों को मुक्ति मिलेगी। किसानों के आगे आने से कृषि में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और गांवों में स्वायत्तता संभव होगी, जिससे किसानों को बीज, खाद, कीटनाशक और कृषि मशीनरी आसानी से सही दाम पर मिल सकेगी और वे इन सब चीजों को बनाने वाली कंपनियों के चंगुल से बच सकेंगे।
ये सभी सामान और सामग्री गांव स्तर पर ही तैयार होने लगेगी और सस्ती दरों पर उपलब्ध होगी, जिसके लिए हर गांव में औद्योगिक क्षेत्र स्थापित किए जाएंगे। परिणामस्वरूप गांवों में ग्रामोद्योग के माध्यम से आजीविका के अवसर उपलब्ध होंगे, जिससे न केवल युवा भटकने से रुकेंगे, बल्कि वे तनाव से मुक्त होकर अपना जीवन अच्छे से चला पाएंगे, जिससे उनके परिवार की चिंता भी समाप्त हो जाएगी। हर गांव में शहरों जैसी सुविधाएं होने से रोजगार देने का काम गांव-गांव हो जाएगा और गांवों से युवाओं का पलायन कम होगा। इसके लिए गांवों को शक्ति केंद्र बनाने, गांवों में रहने और रोजगार के विकल्प उपलब्ध कराने होंगे।
राजस्थान किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि हमारी सकारात्मक राजनीति का सूत्र ‘समान आर्थिक हित’ होगा। उन्होंने बताया कि किसान प्रतिनिधियों द्वारा दिए गए सुझावों का सारांश यह है कि जितना बड़ा सपना, उतनी बड़ी तैयारी, साधक बनकर विश्वास हासिल करना, श्रेष्ठ मार्ग, त्याग, तपस्या और संघर्ष के आधार पर तैयारी, संगठन की मजबूती के लिए तंत्र बनाना और सदस्यता के जरिए संख्या बढ़ाना आदि भी किसान राजनीति के उद्देश्य और सूत्र होंगे। उन्होंने बताया कि 31 दिसंबर 2024 तक किसान महापंचायत द्वारा जिला कार्यकारिणी और कम से कम एक विधानसभा क्षेत्र की कार्यकारिणी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। और 31 जनवरी 2025 तक बैठकों के बाद सदस्यता का काम शुरू कर दिया जाएगा, जिसके तहत किसानों के साथ-साथ उनके छोटे बच्चों को भी इससे जोड़ा जाएगा। हमारा लक्ष्य है गांव देश की आत्मा है, नेतृत्व में ईमानदारी जरूरी है, चतुर और साधन संपन्न राजनेताओं के सामने खड़े होने की तैयारी, जिसमें किसान किसान का नारा लगाने वालों की जुबान समझना और किसानों का वोट हमारा हो आदि विषय रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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