सहारनपुर : असम राज्य में अप्रवासियों को नागरिकता देने के मुद्दे पर लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने असम में नागरिकता देने वाले कानून को वैध करार दिया है। जमीयत उलमा-ए-हिंद और असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के दोनों धड़ों ने फैसले पर संतोष जताया और इसे ऐतिहासिक बताया।
मौलाना अरशद मदनी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि धारा 6-ए की व्याख्या बहुत ही उचित और सही ढंग से की गई है। असम में नागरिकता को लेकर संविधान पीठ के फैसले से जो डर और आशंका के बादल छा गए थे, वे काफी हद तक छंट गए हैं। मौलाना मदनी ने कहा कि संविधान पीठ के फैसले से पता चलता है कि आज भी नफरत की आग को बुझाने वाले लोग हैं। Deoband
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उन्होंने कहा कि मौजूदा असम सरकार खुलेआम मुस्लिम विरोधी एजेंडे पर चल रही है। सरकार पूरी कोशिश कर रही थी कि किसी तरह अनुच्छेद 6-ए को निरस्त करवा दिया जाए। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। मौलाना महमूद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद पिछले 70 सालों से असम के गरीब और पीड़ित लोगों के लिए हर मोर्चे पर लड़ रही है, यह फैसला लोगों के संघर्ष में मील का पत्थर साबित होगा और नागरिकता की उम्मीद छोड़ चुके लोगों को राहत पहुंचाएगा। Deoband
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एआईयूडीएफ प्रमुख और जमीयत के असम प्रदेश अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने नागरिकता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि लंबी लड़ाई के बाद लोगों को सुप्रीम कोर्ट से जो राहत मिली है, वह बेहद सुखद है। इससे लोगों का भविष्य तय हो गया है। Deoband