यूपी उपचुनाव 2024 : उपचुनाव में जाट बहुल खैर सीट पर इस बार समीकरण बदल गए हैं। भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्र दिलेर का मुकाबला सपा की चारू कैन से माना जा रहा है। चारु कैन 2022 के चुनाव में बसपा की प्रत्याशी थीं और इस बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। सपा की स्थापना 1992 में हुई थी और तब से लेकर अब तक 32 साल बाद खैर सीट पर सपा पहली बार सीधे मुकाबले में है। पिछले पांच चुनावों में एक बार जीत दर्ज करने वाली और चार बार दूसरे स्थान पर रहने वाली बसपा भी सपा और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले में त्रिकोणीय बनाने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है।
आपको बता दें कि इस सीट पर दलितों में बिखराव ने उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। यहां पकड़ बनाए रखने के लिए भाजपा और प्रत्याशी सुरेंद्र दिलेर के लिए राजनीतिक विरासत को संभालना परीक्षा की तरह है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती अपनों के बीच गुटबाजी से आ रही है। हरियाणा के पलवल और यूपी के गौतमबुद्ध नगर और मथुरा जिले की सीमा से सटा खैर विधानसभा क्षेत्र वह इलाका है, जहां भविष्य का नया अलीगढ़ विकसित हो रहा है। यहां डिफेंस कॉरिडोर बनाया जा रहा है। भाजपा ध्रुवीकरण को तेज कर रही है
इसकी सीमा पर राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय और ट्रांसपोर्ट नगर बनाया जा रहा है। इस क्षेत्र में ग्रेटर अलीगढ़ बनाने की योजना है। यमुना एक्सप्रेसवे दक्षिणी सीमा पर है। हालांकि, चुनाव में यह सब मुद्दा नहीं है, चुनाव में जातिगत समीकरण अहम हैं। भाजपा जातिगत समीकरणों के जाल को तोड़ने के लिए ध्रुवीकरण को तेज कर रही है। पलवल-अलीगढ़ हाईवे पर स्थित गांव अराना में ताश खेल रहे अजय शर्मा चुनाव की चर्चा शुरू होते ही कहते हैं कि यहां फूल ही जीतेंगे, तो उनके साथ बैठे मलखान सिंह कहते हैं कि नहीं, गांव के ज्यादातर वोट सपा को ही जाएंगे। अजय शर्मा उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहते हैं कि ऐसा नहीं है। भाजपा प्रत्याशी और पार्टी दोनों ही मामलों में अच्छी है। उन्हें बीच में टोकते हुए रमेश चंद शर्मा कहते हैं कि यहां साइकिल और फूलन के ही वोट हैं।
दरअसल इस सीट पर ग्रामीण इलाके में ब्राह्मण, जाट, बघेल, जाटव, वाल्मीकि समाज और सूर्यवंशी (खटीक) समाज के वोट हैं। यहां सपा, बसपा और भाजपा प्रत्याशी बसपा के परंपरागत दलित वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। यहां से चुनावी समीकरणों की तस्वीर साफ हो रही है। कमोबेश यही स्थिति अन्य जगहों पर भी है। मिनी छपरौली रही है यह सीट 2012 में इस सीट को आरक्षित घोषित किया गया था। यह लोकदल का गढ़ रहा है। 1969 में चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल से महेंद्र सिंह चुनाव जीते थे।
1991 में महेंद्र सिंह भाजपा के टिकट पर जीते थे। 1996 में चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती भाजपा के टिकट पर विधायक चुनी गईं। 2007 और 2012 में रालोद ने यह सीट जीती थी 1985, 1989 में जगवीर सिंह जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे। तब रालोद जनता दल का हिस्सा था। 2007 और 2012 में रालोद ने यह सीट जीती थी। अब तक हुए चुनावों में भाजपा ने इस सीट पर चार बार, रालोद ने पांच बार, बसपा ने एक बार, कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की है। सपा जहां जाट-मुस्लिम समीकरण के जरिए दलितों और पिछड़ों को लुभाने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है।
अपने चुनावी भाषण के दौरान मुख्यमंत्री ने ‘बंटवाओगे तो कट जाओगे, एकजुट रहोगे तो सुरक्षित रहोगे’ जैसी बातें कहकर यह साफ कर दिया था। सपा और भाजपा दोनों ही वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं। इसके साथ ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा भी उठाया गया और कहा गया कि एएमयू केंद्र सरकार के पैसे से चलती है, यहां दलितों और पिछड़ों को आरक्षण मिलना चाहिए। बसपा प्रत्याशी मुश्किल में है, जिसके वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश सपा और भाजपा दोनों ही कर रही हैं। भाजपा पार्टी की फूट को काबू करने में जुटी है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी पार्टी में गुटबाजी से अनभिज्ञ नहीं है।
चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले 28 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खैर आए थे। तब उन्होंने विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को चेक और प्रमाण पत्र दिए थे। खैर में यह कार्यक्रम आयोजित करने का मकसद यहां के चुनावी समीकरण को भी संतुलित करना था। उस समय उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं से अलग-अलग बात की थी और गुटबाजी से ऊपर उठकर पार्टी के लिए काम करने पर जोर दिया था। 9 नवंबर को उन्होंने खैर में चुनावी रैली को संबोधित किया था। तब भी जाने से पहले उन्होंने कार्यकर्ताओं को नसीहत दी थी। उन्हें गुटबाजी का आभास हो गया था और अगले ही दिन संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह हेलीकॉप्टर से अलीगढ़ पहुंचे और कार्यकर्ताओं से बात की।
अब 15 नवंबर को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव खैर में चुनावी रैली करने आ रहे हैं। अगले दिन 16 नवंबर को भाजपा नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलाने की तैयारी में हैं। यानी भाजपा इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। गठबंधन की भी होगी परीक्षा इस बार उपचुनाव में सहयोगी दल बदल गए हैं। पिछले चुनाव में सपा और रालोद के बीच गठबंधन था। इस बार रालोद भाजपा के साथ खड़ी है। जयंत चौधरी भी भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में रैली करने जा रहे हैं। कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन है। पहले यह सीट कांग्रेस के खाते में जाने की संभावना जताई जा रही थी।