आरक्षण पर राजनीती : भारत बंद के तहत जिस प्रकार से लोग सड़कों पर निकले हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद तमाम सियासी दलों और लोगों में एक चेतना आई है और जिस प्रकार से केंद्र की भाजपा सरकार कई मुद्दों पर एक कदम बढ़ाकर दो कदम पीछे ले रही है उससे कहीं ना कहीं विपक्षी दलों का हौसला बढ़ा है।
केवल एक सांसद की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद इसमें लीड देते हुए दिखाई दिए हैं उनके समर्थकों का कहना है कि जिस प्रकार दो पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री और तमाम विपक्षी दलों के विरोध के बाद जिस प्रकार से लाखों से चंद्रशेखर की जीत हुई है उससे कहीं न कहीं एक चेतना दलित समाज में दिखाई पड़ती है और उसी का नतीजा है कि आज सड़कों पर लोग निकले हैं। Politics On Reservation
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चंद सियासी दलों को छोड़कर तमाम विपक्षी दलों का मानना है कि आरक्षण की रक्षा के लिए जन-आंदोलन एक सकारात्मक प्रयास है। ये शोषित-वंचित के बीच चेतना का नया संचार करेगा और आरक्षण से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ के खिलाफ जन शक्ति का एक कवच साबित होगा। शांतिपूर्ण आंदोलन लोकतांत्रिक अधिकार होता है। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने पहले ही आगाह किया था कि संविधान तभी कारगर साबित होगा जब उसको लागू करने वालों की मंशा सही होगी। Politics On Reservation
बहरहाल आरक्षण हो या सरकार की कोई योजना उसको अगर समाज में बांटना है और जाती है पिछले ओबीसी और एससी वर्ग में वर्गीकरण करना है तो सबसे पहले जातीय जनगणना जरूरी है यहां पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है जिन आंखों की बात हम आज कर रहे हैं यह आंकड़े कब के हैं? ये आंकड़े कहां से आते हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार से कोई आंकड़े मांगे हैं? अगर सरकारें वास्तव में ईमानदार हैं? तो क्या वह इस फार्मूले पर काम करेंगी कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। इसलिए सवाल कई है। Politics On Reservation
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