सहारनपुर : उत्तर प्रदेश के शामली में एसटीएफ ने मुठभेड़ में 4 अपराधियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में मारे गए 4 अपराधियों में सबसे चर्चित नाम अरशद का है। अरशद इस समय वेस्ट यूपी के कुख्यात कग्गा गैंग को संचालित कर रहा था। कग्गा गैंग ने यूपी, दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड समेत 4 राज्यों में आतंक फैला रखा है। पुलिसकर्मियों की हत्या और थानों से हथियार लूटना, खुलेआम वाहनों को हाईजैक कर लूटपाट करना। कग्गा गैंग का आतंक फैलाने का यही पैटर्न था। पश्चमी युपी में इस गैंग ने अपहरण, हत्या और फिरौती को इन्होंने उद्योग बनाया हुआ था। जो इनकी बात नहीं मानता था, उसे दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया जाता था।
आपको बता दें कि 2011 में कग्गा गैंग के सरगना मुस्तफा के एनकाउंटर के बाद मुकीम काला गैंग को संभाल रहा था। फिर उसके बाद अरशद भी इसमें शामिल हो गया। जो मुकीम काला का दाहिना हाथ बन गया। 2021 में मुकीम काला की हत्या के बाद अरशद पूरी तरह से इसी पैटर्न पर गैंग को संचालित कर रहा था। मुस्तफा उर्फ कग्गा सहारनपुर के बाढ़ी माजरा का रहने वाला था। कई राज्यों में कग्गा का इतना खौफ था कि कग्गा के डर से शाम होते ही थाने और पुलिस चौंकियो पर ताला लग जाता था। पुलिसकर्मी थाना छोड़ घर भाग जाते थे।
मुस्तफा उर्फ़ कग्गा के निशाने पर पुलिस रहती थी। थानों के सामने गाड़ी खड़ी कर बंदूक की नोक पर हथियार लूट लेता था। वह पुलिस पर गोलियां चलाने से भी नहीं हिचकिचाता था। कग्गा ने एसओजी के सर्विलांस एक्सपर्ट कांस्टेबल सचिन की हत्या कर थी। फिर उसने दो सिपाहियों की हत्या कर उनकी राइफलें भी लूट ली थीं। 20 जून 2011 को कग्गा ने मुखबिरी के शक में कैराना के खुरगान निवासी जुल्फान उर्फ काला की हत्या कर दी थी।
लखनऊ में क्राइम मीटिंग हुई थी। इसमें डीजीपी बृजलाल ने कार्रवाई के निर्देश दिए थे। जिसके बाद एडीजे एनसीआर केएल मीना और डीआईजी सहारनपुर जेएन सिंह ने कई दिनों तक क्षेत्र में डेरा डालकर मिशन कग्गा की रणनीति बनाई थी। 2011 में पुलिस को सूचना मिली थी कि मुस्तफा उर्फ कग्गा बीनपुर गांव के जंगल में बड़ी वारदात करने जा रहा है। जिसके बाद चमन सिंह चावड़ा ने एसओजी प्रभारी प्रशांत कपिल और उनकी टीम को साथ लिया। आमने-सामने की मुठभेड़ हुई, जिसमें कग्गा मुठभेड़ में मारा गया। उस समय मुकीम काला भाग गया था। हालांकि कग्गा की गर्लफ्रेंड फातिमा पकड़ी गई थी।
मुकीम काला ने 20 जून 2011 को मुस्तफा कग्गा के गैंग में एंट्री की थी। इनामी अरशद उसका दाहिना हाथ बन गया। मुकीम काला ने अपराध की दुनिया का क ख ग मुस्तफा कग्गा से ही सीखा था। गांव जहानपुरा निवासी मुकीम काला, अरशद और जंधेड़ी निवासी साबिर के परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वे मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। धीरे-धीरे मुकीम काला वेस्ट यूपी की अपराध दुनिया का बड़ा नाम बन गया। शामली, कैराना, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, पानीपत, सोनीपत और देहरादून के व्यापारी और राजनेता मुकीम काला का नाम सुनते ही डर जाते थे।
मुकीम पुलिस पर फायरिंग करने से पहले नहीं सोचता था। इसी डर के चलते कोई भी उसके गिरोह के बारे में सूचना नहीं दे पाता था। मुकीम काला और साबिर काना कुख्यात मुस्तफा उर्फ कग्गा के शार्प शूटर थे। उसके डर के चलते व्यापारी दूसरे राज्यों में सामान खरीदने जाने से भी कतराते थे। यूपी और हरियाणा सरकार ने उस पर दो लाख का इनाम घोषित कर रखा था। मुकीम काला पर 11 साल में 61 मुकदमे दर्ज हुए। इनमें से ज्यादातर मुकदमे रंगदारी और हत्या के थे।
दरअसल मुकीम काला के खिलाफ पहला केस 2008 में 16 साल की उम्र में दर्ज हुआ था। वह जेल गया और बाहर आकर उसने अपराध की दुनिया का डॉन बनने का सपना देखना शुरू कर दिया। 2010 मुकीम काला के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। मुकीम की उम्र करीब 19 साल रही होगी। उन दिनों वह पानीपत में एक ठेकेदार के पास मजदूरी करता था। ठेकेदार ने काला को मेहनती समझकर उसे काम दे दिया। लेकिन, मुकीम ने यहीं से अपने आपराधिक जीवन की शुरुआत की।
एक दिन मुकीम ने अपने एक साथी के साथ मिलकर अपने मालिक से 19 लाख रुपये लूट लिए। उसने गोलियां चलाईं और भाग गया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर करनाल जेल भेज दिया। यह जेल मुकीम के लिए अपराध की पाठशाला साबित हुई। जेल में मुकीम की मुलाकात वेस्ट यूपी के कुख्यात गैंगस्टर मुस्तफा कग्गा से हुई। कग्गा के एनकाउंटर के बाद मुकीम ने गैंग का नाम बदलकर मुकीम गैंग कर लिया। कैराना में कई बड़ी लूटपाट करने के बाद इसने गैंग का नाम बदलकर मुकीम गैंग कर लिया।
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