महाकुम्भ 2025 : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुम्भ में पहुंचे साधु-संन्यासियों की दुनिया अलग ही है। कुछ गुफाओं में रहते हैं तो कुछ पहाड़ों में रहते हैं। जबकि कुछ साधु कभी-कभार ही नजर आते हैं। लेकिन प्रयागराज में लगने वाला महाकुंभ एक ऐसा सनातनी समागम है। जहां देश-दुनिया के कोने-कोने में रहने वाले तमाम साधु-संन्यासी एक साथ नजर आते हैं या यूं कह सकते हैं कि कुंभ में ही नजर आते हैं। इनमें कुछ साधु ऐसे भी हैं जिनकी अपनी अलग ही पहचान है। 45 दिनों तक चलने वाले इस मेले में करोड़ों श्रद्धालुओं और साधकों के आने की उम्मीद है।
हम आपको ऐसे ही 5 अनोखे साधुओं के दर्शन कराएंगे जिन्होंने श्रद्धालुओं और अघोरियों की भीड़ में अपनी अलग ही पहचान बनाई हुई है। इस भीड़ में रहने के साथ-साथ असम का एक साधु आकर्षण का केंद्र बन गया है। सबसे पहले बात करेंगे रुद्राक्ष बाबा की। सवा लाख रुद्राक्ष और सिर पर 45 किलो वजन वाले रुद्राक्ष बाबा भी महाकुंभ में पहुंचे हैं। रुद्राक्ष वाले बाबा को उनकी मां ने ढाई साल की उम्र में दान कर दिए थे। जी हां जिसके बाद इनका नाम गीतानंद महाराज हो गया। गीतानंद महाराज के माता-पिता को कोई संतान नहीं थी।
उस समय गुरु महाराज गांव में आते थे। उनके आशीर्वाद से उनके माता-पिता को 3 संतानें हुईं। यह पहले से तय था कि माता-पिता बीच वाली संतान को गुरु महाराज को दान कर देंगे। गुरु महाराज के आशीर्वाद से दूसरी संतान गीतानंद महाराज ही हुए थे। इसलिए जब गीतानंद महाराज ढाई साल के हुए तो उनकी मां ने उन्हें गुरु महाराज को सौंप दिया। तब से वे कभी घर नहीं गए। सन्यासी गीतानंद महाराज खुद यह कहानी सुनाते हैं कि वे अपने सिर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण करते हैं, जिनका वजन 45 किलो है। उनकी यह हठ योग तपस्या महाकुंभ मेले में आकर्षण का केंद्र बन गई है।
दुनिया भर के हर तरह के ढाई लाख छोटे-बड़े रुद्राक्ष अपने सिर पर धारण करने वाले गीतानंद का जन्म 1987 में पंजाब के कोट का पुरवा गांव में हुआ था। इस जन्म के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, गीतानंद के माता-पिता को शादी के करीब 5 साल तक कोई संतान नहीं हुई। उन्होंने आस-पास के स्थानों से इलाज करवाया, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ। उस समय गांव में श्री शंभू पंचदशनाम आह्वान अखाड़े के संन्यासी आया करते थे। गीतानंद का परिवार भी गुरुओं की कथा सुनने जाता था। परिवार ने एक बाबा को अपना गुरु बनाया, उनसे दीक्षा ली। एक साल बाद गीतानंद के माता-पिता को पहला बच्चा हुआ। इसके बाद दूसरे बच्चे के रूप में गीतानंद का जन्म हुआ। गीतानंद के जन्म के दो साल बाद एक और बच्चे का जन्म हुआ।
दूसरे बाबा महाकाल गिरी बाबा हैं जो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं। महाकाल की नगरी उज्जैन से महाकुंभ में आए महाकाल गिरी बाबा एक हाथ ऊपर उठाए रखने की वजह से सालों से मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक सुर्ख़ियों में बने हुए हैं। कई मीडियाकर्मी उनके पास जा रहे हैं। और उनसे सवाल पूछ रहे हैं। ऐसे ही एक पत्रकार जब उनके पास पहुंचा तो उसने सबसे पहले एक सवाल पूछा। पत्रकार ने सवाल पूछा कि महाराज जी आप लोग भगवान का कौन सा भजन गाते हैं, कौन सा गीत है। यह सुनते ही महाकाल गिरी बाबा को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपने पास रखा चिमटा उठा लिया। उन्होंने बेचारे पत्रकार पर ऐसे चिमटे बरसाए कि पत्रकार ने वहां से भागने में एक पल भी बर्बाद नहीं किया और तुरंत भाग गया। जिसके बाद यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा।
महाकुंभ में अग्नि में बैठे बाबा महाकाल गिरी, सालों से चल रही तपस्या की वजह से उनके हाथों के नाखून काफी बढ़ गए हैं। तपस्या में नाखून नहीं काटे जाते। उनकी जटाएं भी बड़ी हो गई हैं। और शरीर मुर्दे जैसा है। और वह इस भूमि के उद्धार के लिए तपस्या कर रहे हैं। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपना शरीर त्याग दिया है। वह अपनी भक्ति और आराधना में लीन रहते हैं। बाबा की इस साधना की वजह से कई लोग उन्हें हठयोगी भी कहते हैं, तो कुछ उन्हें हथवाले बाबा या कील वाले बाबा कहते हैं। और अब उन्हें ऐसे ही रहने की आदत हो गई है। वह कहीं जाते भी हैं तो ऐसे ही रहते हैं। वह बहुत कम ही कार से यात्रा करते हैं, वह एक स्थान से दूसरे स्थान तक पैदल ही यात्रा करते हैं।संतों और भक्तों के इस महासंगम में कई ऐसे संत भी पहुंच रहे हैं जो अपने पहनावे, तौर-तरीकों और अंदाज से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। प्रयागराज में कहीं साधु हाथ ऊपर उठाए खड़े हैं तो कहीं साधु अग्नि के सामने भस्म लगाए ध्यान में बैठे हैं। एक बाबा ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने सिर पर फसल उगा रखी है।
ये हैं अनाज वाले बाबा जो पिछले चौदह सालों से अपने सिर पर गेहूं, सरसों और दूसरे अनाज की फसल उगा रहे हैं। महाकुंभ में पहुंचे अनाज वाले बाबा का कहना है कि वह अपने सिर पर उगाई गई फसल को प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटते हैं। बाबा का कहना है कि वह मौनी अमावस्या पर फसलों का प्रसाद बांटेंगे।
देश भर से साधु-संतों ने महाकुंभ मेला क्षेत्र में डेरा डाल रखा है। इस दौरान यहां आने वाले साधु-संतों के अनोखे व्रत और चमत्कार लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। असम के कामाख्या पीठ से आए गंगापुरी महाराज उर्फ छोटू बाबा इन दिनों महाकुंभ मेले में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। असम से महाकुंभ में आए गंगापुरी महाराज की लंबाई महज 3 फीट 8 इंच है। बताया जा रहा है कि उन्होंने 32 साल से स्नान भी नहीं किया है और यह उनकी एक खास प्रतिज्ञा का हिस्सा है।
57 वर्षीय गंगापुरी महाराज का कहना है, “मैं कभी स्नान नहीं करता, क्योंकि मेरी एक इच्छा है जो पिछले 32 सालों में पूरी नहीं हुई है। मैं तब तक स्नान नहीं करूंगा। 3 फीट 8 इंच लंबे छोटू बाबा ने इस आयोजन का हिस्सा बनने पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि ‘यह मिलन मेला है, जो आत्माओं को जोड़ने वाला है और इसीलिए मैं यहां आया हूं।’
अब पांचवें नंबर पर चाबी लेकर चलने वाले बाबा आते हैं। दरअसल आस्था की नगरी प्रयागराज में 12 साल बाद महाकुंभ 2025 में देश के कोने-कोने से साधु-संत लगातार यहां पहुंच रहे हैं। वहीं, यहां चर्चा का केंद्र हरिश्चंद्र विश्वकर्मा कबीरा नाम के एक बाबा हैं, जो चाबी लेकर चलने वाले बाबा के नाम से भी मशहूर हैं। बाबा अपने साथ 20 किलो की चाबी लेकर चलते हैं। उन्होंने भव्य धार्मिक आयोजन के लिए सरकार की तारीफ भी की है। दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलेगा। यहां एक चाबी लेकर चलने वाले बाबा 20 किलो की चाबी लेकर महाकुंभ पहुंचे हैं और उन्होंने इस चाबी को ‘राम नाम की चाबी’ बताया है।
उत्तर प्रदेश के रायबरेली निवासी बाबा ने 16 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और चाबी वाले बाबा कहते हैं कि “मेरे माता-पिता साधु थे। उन्होंने मेरा नाम हरिश्चंद्र रखा, मैंने उस नाम को जीने के लिए अपनी यात्रा शुरू की। हरिश्चंद्र ने हमें रास्ता दिखाया, मैं उनका पथिक हूं। भारत और भारतीयों का सच्चा सिपाही होने के नाते मैंने बचपन में ही घर छोड़ दिया। मैंने अपना रास्ता खुद बनाने और सत्य का अनुसरण करके जीवन में मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास किया।”
कुंभ मेला 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इसलिए इसका बेसब्री से इंतजार किया जाता है। संगम का मतलब है मिलन। यह वह स्थान है जहां तीन पवित्र नदियां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं। संगम को भारतीय धार्मिक स्थलों में सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। प्रयागराज एक दिन के लिए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन गया। प्रयागराज की आबादी एक दिन के लिए 4 करोड़ को पार कर गई। मकर संक्रांति पर यहां 3.50 करोड़ लोगों ने स्नान किया। जिले की करीब 70 लाख की आबादी को जोड़ दिया जाए तो प्रयागराज में एक दिन में लोगों की संख्या 4.20 करोड़ हो जाती है। Mahakumbh
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