नई दिल्ली : यूपी में सभी राजनीतिक दलों की निगाहें 2027 के चुनावों पर लग गईं हैं। इसका सेमीफाइनल 10 विधानसभा की सीटों के उपचुनाव को माना जा रहा है। यूपी में लोकसभा चुनाव में 29 सीटें घटने का दर्द भाजपा को साल रहा है, तो इंडिया गठबंधन उपचुनावों में भी अपनी बढ़त बनाए रखना चाहता है। 2027 का चुनाव अखिलेश के लिए भी करो या मरो का चुनाव है। यदि सपा हारी तो अगला मौका 2032 में आएगा, तब तक सत्ता से बाहर रहे 15 साल बीत जाएंगे। 15 सालों तक सत्ता से बाहर रहना किसी भी दल के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
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लखनऊ की गद्दी का रास्ता पश्चिम यूपी से होकर गुजरता है। यदि सपा या इंडिया गठबंधन ने 2027 में पश्चिम यूपी से कम से कम 80 सीटें नहीं जीती तो लखनऊ की राह आसान नहीं होगी। पश्चिम यूपी जाट लैंड कहलाता है और यहां यादव वोटर ज्यादा नहीं हैं। ऐसे में जाटों को साधना सपा के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी। अभी जाट रालोद, भाजपा, और जाट कैंडिडेट देखकर सपा, बसपा को भी वोट दे रहा है। परंतु जाटों को आकर्षित करने के लिए सपा की कोई खास रणनीति दिखाई नहीं देती। UP Political News
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सपा ने जाटों को साधने के लिए पश्चिम यूपी में जाटों की नई लीडरशिप खड़ी करने पर कोई बड़ी पहल अब तक नहीं की है। जाटों में भी सपा के प्रति एक अविश्वास है जो अजित सिंह और मुलायम सिंह के बीच की 1989 की अदावत से चला आ रहा है। जाटों को चौधरी चरण सिंह की विरासत पर मुलायम सिंह का कब्जा करना भी कभी नहीं पचा। मुजफ्फरनगर दंगों के माध्यम से जाट-मुस्लिम एकता को तोड़ने की सपा सरकार की साजिश को भी जाट अभी भूले नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में जाट आरक्षण रद्द करवाने का दोषी भी जाट बिरादरी सपा को ही मानती है। पश्चिम यूपी को अलग राज्य बनाने के सपने में भी सबसे बड़ा अड़ंगा सपा द्वारा ही लगाया जाता रहा है। जाटों का मानना है कि 2022 के चुनाव में सपा की सीटें भी किसान आंदोलन के कारण ही बढ़ी थीं परंतु सपा ने फिर भी कोई खास हिस्सेदारी जाटों को नहीं दी। UP Political News
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इस बार लोकसभा में दो जाटों को टिकट देकर ही सपा ने जाटों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली। मुजफ्फरनगर वाला जीत भी गया परंतु इस जीत के पीछे भी जाटों का सपा प्रत्याशी हरेंद्र मालिक से प्रेम कम और संजीव बालियान से नाराजगी ज्यादा थी। सपा के पास जाट लीडरशिप की भारी कमी है। सपा में जाट नेता के नाम पर ले देकर एक गाजियाबादी बुज़ुर्ग और दूसरे हरियाणा के जाट नेता जिनका कोई ख़ास वजूद या प्रभाव पश्चिम यूपी के जाटों में नहीं दिखता। UP Political News
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पश्चिम यूपी के जाट भाजपा और रालोद गठबंधन से काफी नाराज हैं, परंतु अखिलेश की टीम में आज कोई ऐसा नेता नहीं है जो इस नाराजगी को भुनाकर जाटों को सपा से जोड़ सके। यदि सपा जाटों को बड़े पैमाने पर अपने पाले में खींचने में सफल नहीं हुई तो 2027 का ख्वाब पूरा होना मुश्किल होगा। वैसे आज जाट बिरादरी ना तो जयंत चौधरी से खुश है, न भाजपा पर उसे भरोसा है और ना ही सपा में उसे वह सम्मान नजर आता है कि सपा को ही गले लगा ले। पश्चिम यूपी में कहावत है कि ‘जिसके जाट, उसकी ठाट’, अब देखते हैं 2027 में जाट राजनीति क्या करवट लेती है और जाट किसकी ठाट करवाते हैं और किसकी खाट खड़ी करते हैं। फिलहाल तो पश्चिम यूपी का जाट चौराहे पर खड़ा होकर उचित राजनीतिक वाहन का इंतजार ही कर रहा है। UP Political News