Political News : सरसंघचालक मोहन भागवत ने भाजपा नेताओं को दी नसीहत, कितना होगा बदलाव ?

Political News

Political News : कहावत है कि रस्सी जल गई, पर बल नहीं गया। कुछ ऐसा ही भाजपा नेताओं में देखने को मिल रहा है। तीसरी बार सत्ता हाथ में आने पर जिस प्रकार की अकड़ भाजपा नेताओं, खास तौर पर बड़े नेताओं में दिख रही है, उससे तो यही लगता है कि अभी भी केंद्र की मोदी सरकार मनमानी ही करेगी। हालांकि इस बार के लोकसभा चुनावों में जिस प्रकार धांधली करके जीतने के आरोप भाजपा पर लग रहे हैं, उसे लेकर भाजपा की तरफ से इन आरोपों को खारिज करने के बयान नहीं आ रहे हैं, जिससे साफ जाहिर होता है कि दाल में कुछ काला है। और इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख काफी पहले ही भांप चुके हैं, जिसके चलते वो पिछले तीन-चार सालों से भाजपा के बड़े नेताओं को इशारे-इशारे में चेतावनी भी देते रहे हैं। इस बार भी चुनाव के तुरंत बाद जिस प्रकार से नागपुर में संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग द्वितीय के समापन समारोह में संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जिस प्रकार से इशारे-इशारे में जो खरी-खरी बातें कहीं, उनसे ये साफ जाहिर है कि वो भाजपा में कुछ उपद्रवी और अपने अहंकार में मनमानी करने वाले अराजक तत्वों को पहचानते हैं और उन्हें ये कहने की कोशिश कर रहे हैं कि अभी भी समय है, सुधर जाओ। कुछ लोग इसे भाजपा नेताओं के लिए सरसंघचालक मोहन भागवत की चेतावनी मान रहे हैं।

बहरहाल, सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान या कहें कि इस चेतावनी के बाद राजनीतिक गलियारों में जैसे भूचाल आ गया है और जो विपक्षी नेता पहले से ही भाजपा नेताओं, खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कुछ खास करीबियों की कमियों को उजागर कर रहे थे, अब संघ प्रमुख की बातों को कोट कर रहे हैं। हालांकि ऐसा नहीं कि विपक्ष संघ की भूमिका से संतुष्ट हैं, लेकिन जहां मामला भाजपा नेताओं को नसीहत देने का हो, तो सबको अच्छा लगेगा ही लगेगा।

दरअसल, भाजपा की मातृसत्ता की भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में ऐसा माना जाता है कि भाजपा के हर फैसले और उसकी हर नीति में संघ की खास भूमिका होती है और अंदरखाने दोनों साथ-साथ चलते हैं। लेकिन जिस प्रकार से बेटे के भटकने पर पिता उसे डांटता या समझाता है, उसी प्रकार से संघ भी भाजपा नेताओं के बहकने पर कभी चेतावनी देता है, तो कभी समझाता है, लेकिन ये सब इशारों में कहा जाता है। इसलिए कई लोग तो ये मानते हैं कि संघ प्रमुख ये सब भाजपा नेताओं के लिए नहीं, बल्कि विपक्ष के लिए कहते हैं, जिसके मतलब लोग अपने-अपने हिसाब से निकालते रहते हैं। इस समय जिस प्रकार के लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आए हैं, उसमें न सिर्फ भाजपा, बल्कि कई दूसरी पार्टियों को भी घमंड हो गया है। ऐसे में हो सकता है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का इशारा कहीं और निशाना कहीं हो। लेकिन फिर भी उनकी चेतावनी को केंद्र सरकार चलाने वाले नेताओं, खास तौर पर भाजपा नेताओं और उनमें भी विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह के लिए ही माना जाना चाहिए, क्योंकि अब सरकार में रहकर काम उन्हीं को करना है।

हालांकि उनकी चुनाव में छिड़ी जबानी जंग को लेकर की गई टिप्पणी सभी पार्टियों के लिए है। और उनके चुनाव में जंग जैसा माहौल बनाने वालों को साफ चेतावनी है कि वे चुनाव लड़े, लेकिन देश को न तोड़ें। हालांकि इस भूमिका में सबसे आगे कौन रहता है, ये मुझे बताने की जरूरत नहीं है। क्योंकि नफरत की दुकान चलाने वाले सबकी नजर में आ ही जाते हैं। बहरहाल, 10 जून सरसंघचालक मोहन भागवत ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि जब चुनाव होता है, तो मुकाबला जरूरी होता है। इस दौरान दूसरों को पीछे धकेलना भी होता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। इस बार चुनाव ऐसे लड़ा गया, जैसे यह युद्ध हो। जिस तरह से चीजें हुई हैं, जिस तरह से दोनों पक्षों ने कमर कसकर हमला किया है, उससे विभाजन होगा, सामाजिक और मानसिक दरारें बढ़ेंगी।

ये भी पढ़िए …  सहारनपुर में मतदान से पहले बसपा को बड़ा झटका, दलित नेता के भाजपा में शामिल होते ही बदल गए सियासी समीकरण

संघ प्रमुख ने केंद्रीय नेताओं द्वारा संसद में अभद्रता करने और विपक्ष को कोसने, उसे हमेशा गलत ठहराने और विरोधी कहने जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार को घेरा। उन्होंने साफ कहा कि संसद में दो पक्ष जरूरी हैं, लेकिन हर स्थिति में दोनों पक्षों को मर्यादा का ध्यान रखना होता है। विपक्ष को विरोधी पक्ष की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए। जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है, गर्व करता है, लेकिन अहंकार नहीं करता; वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है। यहां सवाल उठ रहा है कि क्या संघ प्रमुख की ये टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर थी, क्योंकि वो कभी देश का प्रधानसेवक कहते हैं, तो कभी चौकीदार कहते हैं। कभी खुद को जनता का सेवक कहते हैं, तो कभी जनता का नौकर। कभी जुमलेबाजी से ही काम चला लेते हैं, तो कभी अपने काम को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं और जो काम नहीं हुआ है, उसकी भी वाहवाही लूटने के लिए झूठे बयान दे देते हैं। पिछले 10 सालों के अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे ब्यान दिए हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं है। खुद को फकीर कहने वाले प्रधानमंत्री के ठाटबाट भी देखते ही बनते हैं। अब तीसरी बार वो प्रधानमंत्री बने हैं। देखना होगा कि क्या अब भी वो पहले की तरह ही देश-विदेश घूमने और दिन में कई-कई बार कपड़े बदलकर कैमरों की नजर में ही रहना पसंद करेंगे। क्योंकि मोहन भागवत ने उन्हें नसीहत काम करने की दी है।

इसके अलावा सरसंघचालक मोहन भागवत ने मणिपुर में पिछले करीब एक साल फैली हिंसा को लेकर भी केंद्र सरकार की लापरवाही को लेकर जो कुछ कहा, वो भी समझने वाले के लिए बहुत है। मोहन भागवत ने कहा कि अब एक साल से मणिपुर  शांति की राह देख रहा है। उसके पहले 10 साल शांत रहा। पुराना कल्चर समाप्त हो गया है ऐसा लगा। और अचानक से वहां कलह उपज गया या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। उन्होंने कड़े रुख में कहा कि कौन उस पर ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर ही उस पर विचार करना ही कर्तव्य है। सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा इतने कड़े शब्दों में चेतावनी देने के बाद न सिर्फ विपक्ष मुखर हो गया है, बल्कि कुछ लोग इसे संघ और भाजपा के बीच के रिश्तों में तल्खी के रूप में देख रहे हैं।

ये भी पढ़िए …  सोशल मीडिया के सहारे भाजपा को हराने की तैयारी में कांग्रेस, 9 जोन में बांटा उत्तर प्रदेश

दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भाजपा को समर्थ बताते हुए संघ के सहारे को नकारते हुए जिस प्रकार से भाजपा को खड़ा करने और अब तक आगे बढ़ाने की भूमिका को नकार दिया था, उसका असर सरसंघचालक के ब्यानों में दिखा। मैंने अपने पिछले कुछ लेखों में भाजपा और संघ के बीच बढ़ी तल्खी को लेकर लिखा था। अब राजनीति के कई जानकार भी ऐसा ही अब मान रहे हैं कि भाजपा और संघ के बीच तल्खी काफी है, जिसके परिणाम कभी न कभी सामने आएंगे। भाजपा और संघ में ही नहीं, बल्कि भाजपा में भी अंदरखाने तल्खियां बढ़ चुकी हैं। भाजपा नेताओं के बीच की तल्खी भी कभी न कभी साझे की हांडी की तरह चौराहे पर फूटने की तरह सामने आ जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। लेकिन संघ और भाजपा के बीच बढ़ी तल्खी और भाजपा नेताओं के बीच बढ़ी तल्खी की वजहें करीब-करीब एक जैसी ही हैं। क्योंकि ये तल्खियां सरकार में लिए जाने वाले फैसलों और अपनी-अपनी मनमर्जी चलाने की होड़ को लेकर ही हैं। हालांकि भाजपा नेताओं में तल्खी बढ़ने की एक वजह अलग ये है कि उनमें कुर्सी को लेकर कंप्टीशन है। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री मोदी अपने जीवित रहते इस पद को छोड़ना नहीं चाहते, तो दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ और दूसरे कई नेता हैं, जो इस पद पर आना चाहते हैं।

ये भी देखिये …  हाथी के साथी नहीं रहे अब दलित, मायावती पर जमकर बरसे

बहरहाल, संघ और भाजपा, और भाजपा नेताओं में बढ़ती जा रही इस तल्खी से विपक्षी नेताओं को मौका मिल गया है और वो भाजपा, खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हर मुद्दे पर अब घेरना चाहते हैं। जाहिर है कि इस बार कांग्रेस और दो-तीन क्षेत्रीय दल, या कहें कि इंडिया गठबंधन के नेता मजबूत विपक्ष के तौर पर संसद में हैं और जब विपक्ष मजबूत हो, तो उसका दबाव सरकार पर रहता ही रहता है। इस बार भी जितने भी संसद सत्र लगेंगे, वो देखने और सुनने के लायक होंगे, क्योंकि विपक्षी नेता सरकार को अब मनमानी नहीं करने देंगे और इसके संकेत संघ प्रमुख मोहन भागवत के ब्यान के बाद सामने आ रहे विपक्षी नेताओं के ब्यानों से मिल रहे हैं। जाहिर सी बात है कि जिस प्रकार से साफ तौर पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने केंद्र सरकार पर नकेल कसने की शुरुआत की है, विपक्ष उस नकेल को और भी कसने की कोशिश लगातार करेगा। और अगर उसे कहीं भी सरकार बनाने का मौका मिला, तो वो किसी भी हाल में ये मौका हाथ से नहीं जाने देगा। लेकिन फिलहाल सवाल यही है कि क्या सरसंघचालक मोहन भागवत की नसीहत से भाजपा नेता, खास तौर पर प्रधानमंत्री मोदी कोई सीख लेंगे?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया News 14 Today के  Facebook  पेज को Like व Twitter पर Follow करना न भूलें...

Related posts