Published By Roshan Lal Saini
Loksabha Election : देश में 2024 के आम चुनाव का बिगुल बज चुका है, सत्ताधारी दल भाजपा को तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी का नारा है कि इस बार 400 के पार, सवाल है कि अगर भाजपा को इतना आत्मविश्वास है तो वह छोटे-छोटे सियासी दलों से गठबंधन के करने के लिए मजबूर क्यों है? इसका मतलब यह है कि सत्ताधारी दल भाजपा भी कहीं ना कहीं घबराहट में है?
ये भी पढ़िए … सपा से चुनाव लड़ सकते हैं वरुण गांधी और स्वामी प्रसाद मौर्य, सपा प्रमुख ने दिए संकेत
वहीं अगर दूसरी और विपक्ष यानि इंडिया गठबंधन को देखें तो वह भी धीरे-धीरे दरकता नजर आ रहा है। विपक्ष का मुख्य सियासी दल कांग्रेस बाकी सहयोगी दलों के साथ संवाद करने में असमर्थ दिखाई दे रहा है। जिसके तमाम उदाहरण है इंडिया गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार, शरद पवार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे आदि। जानकारों का मानना है कि कांग्रेस इन तमाम नेताओं के साथ संवादहीनता करती रही है। उसी का नतीजा है कि गठबंधन में बड़ी टूट हुई है। Loksabha Election
ये भी देखिये … एक कोंग्रेसी कई भाजपाइयों पर भारी, हो गई जबरदस्त बहस
हालांकि कुछ चुनावी विश्लेषकों का यह भी मानना है कि आदर्श आचार संहिता लगने के बाद कुछ दल और कुछ बड़े नेता इधर-उधर दलबदल कर सकते हैं। अगर कुछ बड़े राजनीतिक दल या बड़े नेता दलबदल करते हैं, तो राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। Loksabha Election
ये भी पढ़िए … नव नियुक्त आयुक्तों को आंवटित हुए कार्यक्षेत्र, किसको कहाँ की मिली जिम्मेदारी
हालांकि राजनीति में कुछ भी दावे करना बेमानी है। क्योंकि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है। नीतीश कुमार का मर जाना, लेकिन भाजपा में नहीं जाना इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है, और वहीं दूसरी ओर भाजपा के चाणक्य अमित शाह का यह कहना कि नीतीश कुमार के लिए खिड़की, दरवाजे और रोशनदान सब बंद हो चुके हैं और फिर उनके लिए स्वागत द्वार खोल देना। जताता है कि सियासत में कभी भी, कुछ भी संभव है। Loksabha Election
ये भी देखिये … धर्म सिंह सैनी को ED- CBI का डर, इसलिए बीजेपी में जाना मजबूरी