Published By Roshan Lal Saini
Darul Ulum News : फतवों की नगरी एवं विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद यूं तो मजहबी तालीम और विश्व में देवबंदी विचारधारा के लिए जाना जाता है। लेकिन सियासत और सियासी लोगों का भी दारुल उलूम से पुराना नाता रहा है। राजनीतिक दलों के दिग्गज नेताओं ने दारुल उलूम देवबंद में आकर सियासी जमीन तलाशने की कोशिश की है।
ऐसा एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार बार बड़े नेताओं ने चुनाव से पहले उलेमाओं की मदद मांगी है। तालीम इदारा जब सियासी अखाड़ा बनने लगा तो दारुल उलूम प्रबंधन ने कड़ा रुख इख़्तियार करना पड़ा। एक घटनाक्रम के बाद दारुल उलूम को हर बार चुनाव से पहले बयान जारी करना पड़ता है। दारुल उलूम अपने ब्यान में दो टूक कहता है कि तालीम इदारे में राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है।
आपको बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक पार्टी के बड़े नेता दारुल उलूम देवबंद आये थे। उस समय उन्होंने तत्कालीन मोहतमिम ( कुलपति ) मौलाना मरगूबुर्रहमान का हाथ पकड़कर न सिर्फ अपने सिर पर रख लिया था बल्कि इसकी फोटो भी खिंचवा ली थी। जिसके बाद नेता जी ने उस फोटो का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में इस तरीके से किया जैसे दारुल उलूम ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया हो। मानो दारुल उलूम की ओर से नेता जी को पूरा समर्थन दे दिया। जिसके बाद यह मामला काफी सुर्खियों में रहा था। दारुल उलूम से जारी होने वाले फतवे को देश भर का मुसलमान मानता है। यही वजह है कि कई बड़े नेता दारुल उलूम में सियासी जमीन तलाशने आते हैं। Darul Ulum News
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बता दें कि फतवों की नगरी कहे जाने वाले दारुल उलूम देवबंद की स्थापना 30 मई 1866 को हुई थी। विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान की स्थापना हाजी सैयद मोहम्मद आबिद हुसैन, फजलुर्रहमान उस्मानी और मौलाना क़ासिम नानौतवी द्वारा की गई थी। दारुल उलूम के सबसे पहले शिक्षक ( उस्ताद ) महमूद देवबंदी और पहले छात्र महमूद हसन देवबंदी थे। वर्तमान में यहां देश के कोने-कोने से करीब साढ़े चार हजार छात्र इस्लामी तालीम हासिल करते हैं। हर मुसलमान दारुल उलूम के साथ भावनात्मक तौर से भी जुड़ा है। Darul Ulum News
दारुल उलूम कोई फतवा जारी करता है तो उसे हर मुस्लिम मानता है। नेता भी इसी सोच के साथ दारुल उलूम के दरवाजे पहुंचते हैं कि उन्हें एक समुदाय का समर्थन मिल सके। गौरतलब है कि 2006 में राहुल गांधी, 2009 में मुलायम सिंह यादव और 2011 में अखिलेश यादव दारुल उलूम में पहुंचे थे। इनके अलावा मौलाना अबुल कलाम आजाद, फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी यहां का दौरा कर चुके हैं। Darul Ulum News
2011 के बाद दारुल उलूम राजनीतिक गतिविधियों की अनुमति भले ही ना देता हो लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी के पिता मौलाना असद मदनी भी कांग्रेस पार्टी से तीन बार राज्यसभा सांसद रह चुके थे। मौलाना महमूद मदनी भी सपा पार्टी से 2006 से 2012 तक राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। दारुल उलूम के तंजीम-ओ-तरक्की विभाग के उप प्रभारी अशरफ उस्मानी ने बताया कि संस्था दीनी इदारा है। इसका रजनीति से कोई ताल्लुक नहीं है। इसलिए संस्था के जिम्मेदारों ने चुनाव के समय दारुल उलूम में नेताओं की एंट्री बैन की हुई है। अगर नेता यहां आता भी है तो संस्था को कोई जिम्मेदार उनसे नहीं मिलेगा। Darul Ulum News
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