संविधान और कानून : संभल की इस घटना से आहत मेरठ के वरिष्ठ अधिवक्ता मुनेश्वर दयाल त्यागी ने संविधान और कानून के शासन को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा है कि संभल की इस घटना से सरकार और शासन प्रशासन की कार्य प्रणाली से देश की पूरी दुनिया में बदनामी हो रही है। भारत के संविधान और कानून के शासन की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और न्याय के सिद्धांतों को जान बूझकर रौंदा जा रहा है। अगर भारत के इतिहास की ऐतिहासिक और ईमानदारी पूर्ण जांच पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि हमारा देश गंगा-जमुनी तहजीब और साझी संस्कृति की बड़ी शानदार भूमि रही है।
इस देश को आगे बढ़ाने में हिंदू-मुसलमानों के हीरे मोतियों ने मिल जुलकर काम किया है। हो सकता है पुराने जमाने में कुछ शासकों ने गलतियां और ज्यादतियां की हो। तो क्या उनका बदला, उन शासकों के धर्म को मानने वाली निर्दोष जनता से लिया जाएगा? हमारा मानना है कि ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए और इस हिंदू-मुसलमान की नफरत को बढ़ाने वाले अभियान पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए। तभी जाकर कानून के शासन और भारतीय संविधान के उद्देश्यों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाकर उनकी रक्षा की जा सकती है और तब जाकर एक आधुनिक और विकसित भारत का निर्माण किया जा सकता है। Suprim Court
मुनेश त्यागी का कहना है कि सांप्रदायिक ताकतों की राजनीति को किसी भी तरीके से भारतीय संविधान के मूल्यों से खेलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। अगर कानून की बात की जाए तो प्लेसिस ऑफ़ वरशिप एक्ट 1991 यानि “पूजा स्थल अधिनियम-1991 की धारा-3” के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म के पूजा स्थल को नहीं बदल सकता।
इसी अधिनियम की धारा-4 यह बताती है कि 15 अगस्त 1947 को जिस पूजा स्थल की जैसी स्थिति थी, इस कानून के लागू होने के बाद वैसी की वैसी ही रहेगी। यह सेक्शन आगे कहता है कि यदि इस कानून के लागू होने के बाद कोई मुकदमा, अपील या दूसरी कार्रवाई किसी पूजा स्थल को बदलने के संबंध में किसी अदालत, ट्रिब्यूनल या किसी अधिकारी के समक्ष लंबित हैं तो वह स्वयं ही समाप्त हो जाएगी। Suprim Court