जाट आरक्षण : देश की राजनीति में भाजपा के कुछ नेता राजनीतिक जुमलेबाजी के लिए जाने जाते हैं। सत्ताधारी पार्टी भाजपा के नेता पिछले 12 सालों से जाट आरक्षण के मुद्दे पर जाटों के साथ जुमलेबाजी कर रहे हैं। जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा लगभग गायब हो चुका था। अब दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक पैंतरेबाजी करते हुए भाजपा के जाट उम्मीदवार प्रवेश वर्मा को आईना दिखाते हुए जाटों को तमाचा मारने के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाया है।
आपको बता दें कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से आहत जाटों का 2014 में भाजपा की मोदी सरकार बनाने में अहम योगदान माना जाता है। इसीलिए 2015 में जाट नेताओं ने जाट आरक्षण व अन्य मुद्दों पर प्रधानमंत्री आवास पर पीएम मोदी के साथ बैठक की थी। उसके बाद 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के घर पर भी ऐसी ही बैठक हुई थी। जहां हमें आरक्षण का वादा किया गया था, लेकिन पांच साल बाद भी वह वादा पूरा नहीं हुआ और फिर लोकसभा चुनाव से पहले कुछ जाट नेताओं ने दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा के घर अमित शाह के साथ बैठक की, लेकिन सिर्फ नारा ही मिला।
अब केजरीवाल का पीएम को पत्र लिखना उन सभी तथाकथित जाट नेताओं के मुंह पर करारा तमाचा है जो सत्ता की मलाई चाटने और रोटी कमाने के लिए जाट समुदाय के ठेकेदार के रूप में काम करते रहे हैं। समुदाय को इससे कुछ नहीं मिलता बल्कि वे नेता निजी तौर पर अमीर बनते रहते हैं, चाहे कोई भी सरकार बने, उनका धंधा चलता रहता है। जी हां, गांव में बैठे समाज के लोगों को जो मिलता है, वह सिर्फ बयानबाजी है। गांव में बैठे समाज के लोगों को इस बारे में सोचना चाहिए और अपने आसपास देखना चाहिए कि कौन सा नेता क्या कर रहा है, ताकि आने वाले चुनावों में उनके आचरण के अनुसार ही उनके साथ व्यवहार किया जा सके।
खैर, अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में दिल्ली की राजनीतिक रणनीति के तहत पीएम मोदी को एक पत्र लिखा था। जिसमें जाटों के आरक्षण पर चिंता जताते हुए पीएम मोदी को उनका वादा याद दिलाने की कोशिश की गई थी। जिसमें उन्होंने मोदी को जाट आरक्षण पर 10 साल पहले किए गए वादे की याद दिलाने के लिए एक पत्र लिखते हुए कहा था कि पिछले कुछ दिनों में मेरी दिल्ली के जाट समुदाय के कई प्रतिनिधियों से मुलाकात हुई। उन सभी ने केंद्र की ओबीसी सूची में दिल्ली के जाट समुदाय की अनदेखी पर चिंता जताई। जाट समुदाय के प्रतिनिधियों ने मुझे बताया कि 26 मार्च 2015 को आपने दिल्ली के जाट समुदाय के प्रतिनिधियों को अपने घर बुलाकर वादा किया था कि जाट समुदाय, जो दिल्ली की ओबीसी सूची में है। उसे केंद्र की ओबीसी सूची में भी शामिल किया जाएगा, ताकि उन्हें दिल्ली में केंद्र सरकार के कॉलेजों और नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिल सके।
यूपी चुनाव से पहले 8 फरवरी 2017 को अमित शाह ने चौधरी बीरेंद्र सिंह के घर पर दिल्ली और देश के जाट नेताओं की बैठक बुलाई और उनसे वादा किया कि राज्य की सूची में शामिल ओबीसी जातियों को केंद्रीय सूची में जोड़ा जाएगा। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अमित शाह ने फिर से बिल्ली में प्रवेश बर्मा के निवास पर जाट नेताओं से मुलाकात की और उन्होंने फिर से वादा किया कि बिल्ली के जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल किया जाएगा, लेकिन चुनाव के बाद यह सिर्फ एक जुमला और नारा साबित हुआ। जानकारी के अनुसार केंद्र की ओबीसी सूची में होने के कारण राजस्थान से आने वाले जाट समुदाय के युवाओं को दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलता है, जबकि दूसरी ओर दिल्ली के ही जाट समुदाय को दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है, क्योंकि आपकी सरकार ने दिल्ली में ओबीसी आरक्षण होने के बावजूद जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल नहीं किया।
यह दिल्ली के जाट समुदाय के साथ विश्वासघात है और भाजपा की केंद्र सरकार पिछले 10 वर्षों से लगातार धोखा दे रही है। दिल्ली में केंद्र सरकार के सात विश्वविद्यालय हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्जनों कॉलेज हैं। दिल्ली पुलिस, एनडीएमसी, डीडीए, एम्स, सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया जैसे केंद्र सरकार के कई संस्थानों में नौकरियां हैं जिनमें केंद्र सरकार के नियम लागू होते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार की इस वादाखिलाफी के कारण दिल्ली के ओबीसी समुदाय के हजारों युवाओं के साथ भेदभाव हो रहा है। दिल्ली में जाट समुदाय और 5 अन्य ओबीसी जातियों के साथ केंद्र सरकार का यह पक्षपातपूर्ण रवैया इन जातियों के युवाओं को शिक्षा और रोजगार के उचित अवसर नहीं मिलने दे रहा है।
इसलिए केंद्र सरकार को तुरंत केंद्रीय ओबीसी सूची में विसंगतियों को ठीक करना चाहिए और दिल्ली में ओबीसी दर्जा प्राप्त सभी जातियों को केंद्र सरकार के संस्थानों में आरक्षण का लाभ देना चाहिए। मैं आपके जवाब का इंतजार करूंगा। खैर, अब सवाल यह है कि इसमें कोई शक नहीं है कि केजरीवाल जाट आरक्षण को लेकर चिंतित हैं? लेकिन वह जाट आरक्षण के इस बेहद संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करके जाट समुदाय और अन्य पिछड़े वर्गों के वोटों की फसल काटना चाहते हैं। जहां सत्ताधारी दल के जाट नेताओं को इस गंभीर मुद्दे पर केजरीवाल को ठोस जवाब देना चाहिए था, वहीं वे केजरीवाल के इस पैंतरे को समाज को जातीय आधार पर बांटने का आरोप लगाते हुए सत्ताधारी भाजपा के वकील बन रहे हैं।नई दिल्ली सीट से उम्मीदवार प्रवेश त्रर्मा कहते है कि केजरीवाल की राजनीतिक जमीन खिसक रहो है, इसलिए आप नेता ने दिल्ली को जाति के आधार पर बांटना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने पिछले 11 स्थलों में कभी जाट समुदाय को पाद नहीं किया। कभी धर्म निरपेक्षता की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल अब दिल्ली को जाति के आधार पर बांट रहे हैं। यें वहीं प्रवेश वर्मा है जिनके घर भाजपा चाणक्य अमित शाह ने जाट आरक्षण का वादा करते हुए अगर्न मूंछों और जाटों की ताक़त की बात की थी। लेकिन हम सभी जानते हैं कि अमित शाह की अधिकतर बातें जुमता ही साबित होती रही है।
दरअसल जाटों को केवल वोट बैंक बनाने, उनकी सिपसी हैसियत बताने और उनको भरमाने की ये जंग छिड़ने के पीछे असली वजह यह है कि साल 2015 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले साल 2020 के विधानसभा चुनाव में हिंदू वोट की जातियों में सवर्ण के अलावा इकलौता जाट योटर ही था जिसने भाजपा छोड़ आम आदमी पार्टी की ओर रुख किया था इसके अलावा तमाम वर्ग कुछ ना कुछ घंटे ही थे। इस दूसरी वजह ये है कि 2015 के चुनाव के मुकाबले 2020 में कंठग्रेस का पूरा जाट वोट आम आदमी पार्टी अपनी तरफ खींच चुकी है। जिसे वो अब और नहीं घटने या बंटने देना चाहती। तीसरी वजह है कि दिल्ली के 364 में से 225 गांव जाट बहुल हैं। चौथी वजह यह भी मानी जा रही है कि केजरीवाल के करीची रहे कैलाश गहलोत और नई दिल्ली सीट से प्रवेश वर्मा केजरीवाल के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार हैं, ये दोनों जाट समाज से ही आते हैं।
सवाल यह भी है कि केजरीवाल को 12 साल बाद क्यों याद आया जाट आरक्षण का मुद्दा? मेरा मानना है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए आज सबसे बड़ा संकट उसको गिरती हुई साख हो गई है। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और सत्येंद्र जैन जैसे नेताओं के जेल जाने के बाद भी भाजपा भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं बना पाई लेकिन आविंद केजरीवाल ने जैसी अपनी इमेज बनाई थी उसके इतर काम करने के चलते उनकी राजनीति को लोग पाखंड कहने लगे हैं आज लगातार लोग नीली वैगनआर और नेताओं मंत्रियों के छोटे घर वाले केजरीवाल के जुमलों को याद कर रहे हैं। जाटों के आरक्षण की मांग करने के लिए उन्हें चुनावों में ही क्यों गाद आई? यह सवाल तो लोग करेंगे ही? करीब 12 सालों से वो दिल्ली के मुख्यमंत्री है तो ऐसे में जाट समाज यह सबात कर रहा है कि अब तक केजरीवाल सरकार को यह मुद्दा क्यों ध्यान नहीं आया?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)