लखनऊ : कुछ स्मृतियां मानस-पटल पर बंदी बनकर ठहर जाती हैं। साल 96 के मार्च महीने का वह दिन जब सदन में विश्वास-प्रस्ताव के दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी को संबोधित करना था, ज़ेहन में आज भी कैद है। उन दिनों एक युवा के तौर पर मेरे सपने आकार ले रहे थे। कभी राजनीति के रास्ते राष्ट्र-निर्माण के अभियान में मेरी भी कोई भूमिका होगी, यह विचार दूर-दूर तक भी नहीं था। दूसरे मध्यवर्गीय परिवारों की तरह परिवार का सपना था कि मैं भी बड़ा होकर चिकित्सक बनूं. लेकिन माया,…