National Press day : पत्रकारिता में न्यूनतम योग्यता और अनुभव की अनिवार्यता न होना बड़ी विडंबना, राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने पत्रकारिता की गिरती साख पर जताई चिंता
Published By Roshan Lal Saini
National Press day : पत्रकारिता के लिए न्यूनतम योग्यता और अनुभव की अनिवार्यता न होना ही इस पेशे की सबसे बड़ी विडंबना है। पत्रकारिता अन्य वृत्तियों की तरह व्यापार नहीं है। यहां सफल होने के लिए साधन की पवित्रता भी मायने रखती है। पैसे कमाने के लिए मूल्यों से समझौता करना उचित नहीं है। कोविड-19 के दौरान चिकित्सक के बाद पत्रकारों ने ही जान जोखिम में डाली थी। पत्रकारों के लिए अब भी बड़ी संभावनाएं हैं, जरूरत है तो सतत प्रतिबद्धता के साथ समर्पण की। उक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार मिश्रा ने कहीं। वह एनयूजे, लखनऊ की ओर से विधायक निवास-6 स्थित प्रदेश कार्यालय में गुरुवार को राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।
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मुख्य वक्ता मनोज कुमार मिश्र ने आह्वान किया कि भावी पीढ़ी के लिए कुछ ऐसे मानक स्थापित करने का प्रयास करें कि वह पत्रकारिता की दिशा तय कर सकें। जगह बदलें पर तारीका न बदलें। उन्होंने कहा कि पत्रकारों के लिए सर्वाधिक चुनौतियां उत्तर प्रदेश में हैं, अन्य राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं हैं। पर यहां ऐसा भी नहीं है कि खबर लिखने पर एफआईआर दर्ज हुई हो, उसके कारण अलग हैं। उन्होंने आग्रह किया कि टांग खिंचाई नहीं करें, एकता स्वयं निर्मित होती जाएगी। पत्रकार स्वयं पत्रकारों की इज्जत करना शुरू करें। कमियां व्यक्तिगत बताएं, प्रशंसा सामूहिक करें, आपसी एकता का भाव स्वतः मजबूत होने लगेगा। उन्होंने पत्रकारिता की दिशा और दशा सुधारने के लिए नियमित कार्यशालाएं, संगोष्ठी और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने का सुझाव दिया। National Press day
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विशिष्ट वक्ता नवल कांत सिन्हा ने कहा कि अंग्रेजों के समय की चुनौतियों से पत्रकारों ने मोर्चा लिया। आजाद भारत में आपातकाल के दौरान पत्रकारों ने लोकतंत्र बचाने के लिए दो-दो हाथ किए। वर्तमान में भी पत्रकारों को साबित करना है कि हम सरस्वती पुत्र हैं। निकट भविष्य में पत्रकारों को एआई तकनीक से भी निपटने के लिए तैयार करना होगा। टेक्नोलॉजी के दौर में स्वयं को अपडेट करना पड़ेगा। एकता के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी पड़ेगी। एनयूजे, उत्तर प्रदेश के संयोजक प्रमोद गोस्वामी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कथन को कोट करते हुए कहा कि ‘लोकतंत्र में पत्रकार अगर सत्ता से हाथ मिला लेता है तो यह अनैतिक है।’ उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में पत्रकारों ने खुद को राजनेताओं एवं अधिकारियों का प्रवक्ता बना लिया है। यह पत्रकारिता का सबसे बुरा दौर है। आज संपादक नाम की संस्था पूरी तरह खत्म हो गई है। अब संपादकीय विभाग में भी मालिकों का हस्तक्षेप इस कदर बढ़ गया है कि उनको संपादक के बजाय लाइजनर अधिक मुफीद लगने लगा है। पत्रकारिता के क्षरण के लिए सिर्फ पत्रकार को ही जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए, इसके लिए सिस्टम और समाज भी बराबर का साझीदार है। पत्रकार आज के दौर में भजन मंडली बन गए हैं। National Press day
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वरिष्ठ पत्रकार राजवीर सिंह ने कहा कि सच की पत्रकारिता के लिए संघर्ष तो करना ही होगा। पत्रकारिता के दौरान पत्रकारों को स्वयं की विचारधारा किनारे रख देनी चाहिए। विचारधारा के पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर पत्रकारिता करने से हम अपने लिए ही मुसीबतें खड़ी करेंगे। अध्यक्षता करते हुए एनयूजे, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष वीरेन्द्र सक्सेना ने कहा कि रिपोर्टर मीडिया संस्थानों में एक छोटा सा पुर्जा होता है, मगर इस पुर्जे के बिना पूरी मशीनरी किसी काम की नहीं है। मीडिया मालिकों को चाहिए कि पत्रकार पर हाथ होना बहुत जरूरी है, इसके बिना भी काम नहीं चलने वाला है। National Press day
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार के बक्स सिंह, सुरेंद्र कुमार दुबे, एनयूजे स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अजय कुमार, प्रदेश महामंत्री संतोष भगवान, प्रदेश कोषाध्यक्ष अनुपम चौहान, प्रदेश प्रवक्ता डॉ.अतुल मोहन सिंह, जिलाध्यक्ष आशीष मौर्य, जिला महामंत्री पद्माकर पांडेय, जिला कोषाध्यक्ष अनुपम पांडेय, मनीष श्रीवास्तव, अखिलेश मयंक, मनीष वर्मा, अभिनव श्रीवास्तव, अरुण शर्मा टीटू, मीनाक्षी वर्मा, संगीता सिंह, मनीषा सिंह, गरिमा सिंह, पंकज सिंह चौहान, अनिल सिंह, धीरेन्द्र मिश्रा, अखिलेश मयंक, धीरेन्द्र मिश्र, रणवीर सिंह, किशन सेठ, श्यामल त्रिपाठी, अश्विनी जायसवाल, नागेंद्र सिंह आदि मौजूद रहे। National Press day