UP Political News : क्या यूपी में बसपा सुप्रीमो मायावती बिगाड़ेंगी विपक्ष का खेल ?
Published By Roshan Lal Saini
UP Political News : उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती राज्य के पिछले तीन विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अहम कड़ी मानी जा रही हैं। कुछ राजनीतिक जानकार उन्हें उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों पर विपक्षी पार्टियों का खेल बिगाड़ने वाला खिलाड़ी बता रहे हैं। उनका मानना है कि मायावती का कोर वोटर उन्हीं के साथ रहेगा और अब उनके लोकसभा सीटों पर जीतना मुश्किल लगता है, लेकिन वो प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर एक प्रकार से विपक्षी पार्टियों के लिए मुसीबत खड़ी करेगीं।
आपको बता दें कि भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए हर प्रकार की तैयारी कर रखी है। उसने हिंदुओं को भावनात्मक रूप से अपने से जोड़ने के लिए राम मंदिर का उद्घाटन कर दिया। इसके साथ ही कई अन्य उद्घाटन और शिलान्यास भी खुद प्रधानमंत्री मोदी प्रदेश में कर चुके हैं और आगे भी कई उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे। इसके अलावा भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री मोदी ‘मोदी की गारंटी’ वाले पिटारे से कई घोषणाएं भी करेंगे। और छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े-बड़े मंत्रियों तक को चुनाव कैंपेनिंग के काम में लगाया जाएगा। UP Political News
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लेकिन इसके बावजूद भाजपा को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कुछ ऐसे विपक्षी नेताओं की जरूरत होगी ही, जो कि उनके धुर विरोधियों का रथ रोकने की कोशिश कर सकें। और इसमें कोई नई बात नहीं है, बल्कि 2014 के बाद से हर चुनाव में भाजपा ऐसा ही करती आई है। ऐसे आरोप भी लगते आए हैं कि पार्टी अपनी समर्थक पार्टियों के साथ-साथ कई विपक्षी पार्टियों का भी इस्तेमाल इसी काम के लिए करती है।
मायावती के यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार उतारने के ऐलान करने से अखिलेश यादव से लेकर दूसरे सभी विपक्षी नेताओं तक के कान खड़े हो गए हैं। उनके कान इसलिए खड़े हो गए हैं, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि बसपा सुप्रीमो मुखिया मायावती इंडिया गठबंधन से जुड़ने की घोषणा कर सकती हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। और अगर मायावती इंडिया गठबंधन में शामिल होने की घोषणा कर देतीं, तो लोकसभा चुनाव सीधे-सीधे दो ध्रुवीय हो जाता यानि सीधा मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के बीच होने की संभावना बनती। UP Political News
हालांकि कुछ छोटी पार्टियां अपने-अपने स्तर पर कुछ सीटों पर चुनाव तब भी लड़तीं और अब भी लड़ेंगी, जिनमें एक पार्टी तो आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) है, जिसके प्रमुख चंद्रशेखर आजाद और दूसरी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानि एआईएमआईएम है, जिसके प्रमुख असद्दीन ओवैसी हैं। लेकिन अब मायावती ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है और उधर अखिलेश यादव भी जयंत चौधरी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं, तो ऐसे में अब लोकसभा चुनाव में प्रदेश में छह कोणीय या उससे भी ज्यादा कोणीय मुकाबला होने की संभावना बन चुकी है, जिसमें से एनडीए, समाजवादी पार्टी और उसके साथ खड़े राष्ट्रीय लोकदल, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के बीच मुकाबला होगा।
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दरअसल, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) की ताकत अब इसलिए बढ़ती दिखाई दे रही है क्योंकि इस पार्टी को जितना फायदा होगा उतना ही नुकसान मायावती की बसपा को होगा। जिसकी एक बानगी राजस्थान में देखने को मिली जहां पहली ही कोशिश में आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने बहुजन समाज पार्टी के मुकाबले करीब 1 लाख ज्यादा वोट हासिल कर लिए। ऐसा माना जा रहा है कि अब बहुजन समाज पार्टी का कोर वोटर, खास तौर पर युवा वोटर चंद्रशेखर आजाद के साथ जाने का मन बना चुका है। राजनीतिक जानकार इसकी दो वजहें मान रहे हैं। UP Political News
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पहली तो ये कि मायावती अब राजनीति में उतनी सक्रिय नहीं रहीं और उन्हें लोग उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की बी टीम मानने लगे हैं। और दूसरी वजह ये है कि उन्होंने हाल ही में अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया, जो राजनीति में विधार्थी हैं। न ही उनकी कोई बड़ी भूमिका अभी तक राजनीति में रही है। इससे दो बड़े नुकसान होते दिख रहे हैं। पहला अनुभवहीन और कमजोर नेतृत्व, दूसरा मायावती का भाई-भतीजावाद, जिसके खिलाफ वो दूसरे सियासी दलों पर सवाल उठाती रही हैं। ज़ाहिर है अब इस सवाल पर वह खुद ही फंस चुकी हैं। ज्यादातर दलितों को तो मायावती द्वारा एक योग्य और धाकड़ दलित नेता को अपना वारिश चुनने की उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने नहीं किया।
अब सवाल ये है कि क्या मायावती के एकला चलो के फैसले से भाजपा को फायदा होगा? क्या बसपा लोकसभा चुनाव में अपने दम पर इस बार कुछ सीटें जीत सकेगी? या फिर बसपा के इस फैसले से किसे सबसे ज्यादा नुकसान होगा? हालांकि इन सब सवालों के जवाब तो लोकसभा चुनाव का रिजल्ट सामने आने पर ही मिल सकेंगे, लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि मायावती के इस फैसले से सबसे ज्यादा नुकसान विपक्षी पार्टियों को ही होगा। जबकि कुछ लोग मानते है कि अल्पसंख्यक वोटरों की लामबंदी इस बार हो सकती है, जिसका फायदा कांग्रेस को ज्यादा हो सकता है। UP Political News
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बसपा अल्पसंख्यकों को अपने पाले में कर नहीं पाएगी और अगर वो ऐसा कर सकी, तो इससे कांग्रेस को सीधा फायदा होगा। हालांकि उम्मीद तो यही है कि राम मंदिर का उद्घाटन होने से भाजपा को ज्यादातर हिंदू वोट मिलेंगे और वो एक बार फिर किसी पार्टी से या कहें कि सभी पार्टियों द्वारा जीती गई सीटों से कहीं ज्यादा सीटें हासिल करेगी। लेकिन भाजपा उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने का सपना पाले बैठी है, जिसे पूरा करने के लिए उसे कुछ ऐसी पार्टियों के समर्थन की जरूरत रहेगी, जो कहने को विपक्ष में होंगी, लेकिन उनसे उसे फायदा मिलेगा।
इस प्रकार से मायावती के अपने दम पर चुनाव लड़ने के फैसले से उन्हें भी बहुत अच्छा फायदा नहीं होगा, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती को नजरअंदाज कोई भी पार्टी नहीं कर सकती, चाहे वो भाजपा ही क्यों न हो। इसलिए भाजपा को विरोधी वोटरों के बिखरने से फायदा भले ही मिल जाएगा, लेकिन भाजपा के नेताओं के मन में ये डर अभी भी बैठा हुआ है कि कहीं ऐसा न हो कि अचानक वोटर उसकी कुछ असफलताओं को याद करके विपक्षी पार्टियों के पाले में वोटिंग न कर दें। भाजपा नेता कभी भी अपने स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी अन्य चेहरे पर विधानसभा चुनाव तक लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं और लोकसभा चुनाव में तो वो ही सर्वसम्मति से चुने हुए नेता हैं। ऐसे में वो दूसरी पार्टियों पर भरोसा कर ही नहीं सकते, भले ही वो भाजपा की समर्थक पार्टियां ही क्यों न हों। UP Political News
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बहरहाल, मायावती के चुनाव में अकेले लड़ने से भाजपा को कुछ तो फायदा होगा ही, क्योंकि मायावती ने सिर्फ अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने का ही ऐलान नहीं किया है, बल्कि उन्होंने ये ऐलान करने के साथ-साथ ये भी कहा कि गठबंधन से उनकी पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा। हालांकि ये बात सिर्फ और सिर्फ भाजपा को खुश करने वाली लगती है, क्योंकि अगर पिछले कुछ चुनावों को देखें, तो ऐसा ही कुछ नजर आएगा। मसलन, साल 2014 में बसपा ने उत्तर प्रदेश में अपने दम पर लोकसभा चुनाव लडा था और उसे एक भी लोकसभा सीट हासिल नहीं हुई।
वहीं जब साल 2019 में मायावती ने सपा और रालोद के साथ चुनाव लड़ा, तो उसके 10 सांसद चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। लेकिन हैरत की बात है कि साल 2019 में मायावती भतीजे अखिलेश के साथ उनके घर की बड़ी बनकर मैदान में उतरी थीं और उन्होंने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को अपने घर की बहू कहा था, लेकिन अब ऐसा क्या हो गया कि उन्हें अपने ही भतीजे से इतनी नफरत हो गई कि उन्होंने अखिलेश के साथ न सिर्फ चुनाव लड़ने से मना कर दिया, बल्कि उनको गिरगिट बताते हुए अपने ऊपर हमले का आरोप भी लगा दिया, जिसे लेकर अभी हाल ही में खूब बवाल मचा। मजे की बात ये है कि इस मामले में भाजपा ने मायावती की सुरक्षा को लेकर जिस प्रकार से राजनीति करते हुए खुद को मायावती का शुभचिंतक बताने की कोशिश की, उससे तो यही लगा कि भाजपा के नेता मायावती और अखिलेश के बीच पड़ी दरार से काफी खुश हैं। UP Political News
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दरअसल अगर पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें, तो बसपा का वोट फीसद भी पहले से गिरा है। अगर उत्तर प्रदेश को छोड़ दें, तो दूसरे राज्यों में भी बसपा का यही हाल है। मसलन, बिहार में साल 2010 और साल 2015 में पार्टी अकेले चुनाव लड़ी और एक भी सीट उसे नहीं मिली। इसी प्रकार से हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के उदाहरण हमारे सामने हैं। माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का लोकसभा चुनाव में करीब 19 फीसदी वोट बैंक है। लेकिन 2024 में उसके वोटरों की संख्या में काफी गिरावट आ सकती है, क्योंकि जिस प्रकार से चंद्रशेखर आजाद का कद पिछले एक-डेढ़ साल में बढ़ा है, उससे मायावती के वोटरों का घटना स्वाभाविक है। हालांकि ये पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसकी संभावनाएं ज्यादा से ज्यादा हैं। बहरहाल, देखना होगा कि लोकसभा चुनाव में क्या स्थितियां मायावती की पार्टी की रहती हैं और उनके अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से किसे नुकसान और किसे फायदा होता है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)