Published By Special Desk News14Today.
Raebareli Loksabha Seat : इस बार के लोकसभा चुनाव में कई सारे बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कई सीटों पर लगातार कई-कई प्रत्याशी बदले गए हैं तो VVIP सीटों पर भी हलचल मची हुई है। गांधी परिवार की पारम्परिक सीटों अमेठी और रायबरेली की बात करें तो कांग्रेस पार्टी ने इन सीटों पर भी बदलाव किया गया है।
राहुल गांधी ने अमेठी को छोड़कर रायबरेली सीट के लिए नामांकन दाखिल किया है। राहुल गांधी को रायबरेली भेजने का निर्णय अंतिम लम्हों में भले लिया गया हो लेकिन यह फैसला पार्टी ने एक रणनीति के तहत लिया है। हालांकि अमेठी का रण छोड़कर रायबरेली जाने पर राहुल गांधी भाजपाइयों के निशाने पर आ गए हैं।
आपको बता दें कि पिछले दिनों सोनिया गांधी राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद पत्र जारी किया था। सोनिया गांधी द्वारा जारी किये गए भावुक पत्र के बाद यह बड़ा सवाल खड़ा हुआ था कि रायबरेली में उनकी विरासत कौन संभालेगा ? बेटा राहुल गांधी या फिर बिटिया प्रियंका गांधी ! सियासी विरासत संभालने का सवाल आते ही पिछले चारदशकों की तस्वीर सामने आ जाती है।
साल 1980 के चुनाव में संजय गांधी की मौत के बाद जब बेटे राजीव गांधी और बहू मेनका गांधी में किसी एक के चयन की बात आई तो इंदिरा गांधी ने भी बेटे को तवज्जो दी थी। हालांकि साल 1984 के लोकसभा चुनाव में बहु मेनका गांधी ने बगावती तेवर दिखाए थे। मेनका गांधी ने राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में जोर आजमाइश की थी लेकिन उन्हें राजीव गांधी से हार का मुंह देखना पड़ा। Raebareli Loksabha Seat
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साल 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। पति की मौत के बाद 1999 में सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अमेठी लोकसभा सीट पर पति की विरासत को संभाला। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने संसदीय क्षेत्र बदलते हुए रायबरेली का रुख किया। वहीं अमेठी लोकसभा सीट की जिम्मेदारी बटे राहुल गांधी को सौंप दी। राहुल गांधी राजनीती में नए थे तो उस वक्त सोनिया गांधी के साथ पूरी कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के साथ खड़ी थी। राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता के चलते उन्हें कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भी बनाया गया। Raebareli Loksabha Seat
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अमेठी का रण छोड़कर रायबरेली जाने के बाद राहुल गांधी ने एक साथ कई निशाने साधे हैं। सूत्रों की माने तो राहुल गांधी को रायबरेली से प्रत्याशी बनाना कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति नजर आ रही है। एक तो कमजोर संगठन, दूसरा हार के बाद क्षेत्र से दूरी सहित कई ऐसे कारण हैं, जिसका जवाब कांग्रेस नहीं खोज पा रही थी।
ऐसे में बीच का रास्ता निकाला गया। नतीजन, करीब एक माह से अमेठी और रायबरेली में प्रत्याशी चयन को लेकर बने सस्पेंस पर अंतिम क्षणों में पर्दा उठा। राहुल गांधी के रायबरेली और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा के नामांकन के बाद कार्यकर्ता तक सकते में हैं। चाय-पान की दुकानों से लेकर सोशल मीडिया तक में यहीं छाया हुआ है। इसके नफा-नुकसान का आकलन हो रहा है। Raebareli Loksabha Seat
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गौरतलब है कि प्रदेश में हुए विभिन्न चुनावों से लेकर अमेठी के विधानसभा क्षेत्रों तक में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के बाद कई बार कांग्रेस में प्रियंका गांधी को आगे करने की मांग हुई। अमेठी के लोगों में भी प्रियंका गांधी का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था। ”अमेठी का डंका बिटिया प्रियंका”, ”अन्ना की लंका जलाएंगी प्रियंका” जैसे नारे अमेठी की दीवारों पर नुमाया होना आम बात थी।
बावजूद इसके कांग्रेस हाईकमान ने अमेठी वासियों की मांग गंभीरता से नहीं लिया। इतना ही नहीं अपने सियासी कार्य व्यवहार में प्रियंका गांधी भी अपने भाई राहुल गांधी के साथ सेकंड रोल में ही नजर आईं। वे हमेशा राहुल गांधी को अपना नायक मान उनके पीछे ही चलती रहीं। ऐसे में सोनिया गांधी की विरासत राहुल गांधी को मिलने की घटना अनोखी कतई नहीं लगती। Raebareli Loksabha Seat
प्रियंका पूर्व में भी रायबरेली और अमेठी के चुनाव संचालन देखती रही हैं। जहां तक किशोरी लाल शर्मा के अमेठी से चुनाव मैदान में उतरने की बात है, वे कार्यकर्ताओं के लिए नए नहीं हैं। पार्टी पदाधिकारियों से लेकर छोटे कार्यकर्ता तक उन्हें अच्छे से जानते-समझते हैं। हां, जनता के बीच उन्हें खुद को स्थापित करने की चुनौती जरूर है।
वैसे गांधी नेहरू परिवार की सियासत पर निगाह डालें तो यह निर्णय बहुत अप्रत्याशित नहीं लगता। रायबरेली और अमेठी में गांधी नेहरू परिवार की पकड़ के लिहाज से देखें तो रायबरेली का पलड़ा हमेशा भारी रहा। पिछले चुनावों के नतीजों से लेकर जीत की लीड तक के आंकड़े इसे तस्दीक करते हैं। जाहिर तौर पर अमेठी की तुलना में रायबरेली गांधी परिवार के लिए कहीं अधिक सुरक्षित व मुफीद है। Raebareli Loksabha Seat
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बता दें कि 1977 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के संजय गांधी ने अमेठी से पहला चुनाव लड़ा था। जबकि इंदिरा गांधी खुद रायबरेली से चुनाव मैदान में थी। उस वक्त जनता पार्टी की लहर के चलते मां-बेटे दोनों को हार का मुंह देखना पड़ा था। इसके बाद दोनों ने अपनी सीटों से 1980 में फिर चुनाव लड़ा। दोनों को जनता ने सिर आंखों पर बैठाया और मां-बेटे को भारी मतों से चुनाव जीतकर संसद भेजा। राहुल के अमेठी छोड़ने की वजह चाहे जो भी हो लेकिन विपक्ष को हमलावर होने का मौका जरूर मिल गया। वो बात अलग है इससे जनताके बीच इसका मैसेज ठीक नहीं जाएगा। Raebareli Loksabha Seat