सहारनपुर : सोमवार को सहारनपुर के हथिनीकुंड बैराज से 3.11 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया। जिससे यमुना नदी का जलस्तर तेज़ी से बढ़कर 335.72 मीटर पर पहुँच गया। बढ़ते जलस्तर ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा गया यह पानी दिल्ली के निचले इलाकों के लिए भी मुसीबत बन सकता है। जिससे हरियाणा, यूपी और दिल्ली के लोगों की चिंता बढ़ना लाज़मी है।
बता दें कि लगातार हो रही बारिश के कारण यमुना समेत राज्य की नदियां उफान पर हैं। हरियाणा के 100 से ज़्यादा गाँव प्रभावित हुए हैं और 5000 एकड़ से ज़्यादा फ़सलें पानी में डूब गई हैं। बैराज पर बढ़ते पानी के हालात को देखते हुए हथिनीकुंड बैराज के सभी गेट खोल दिए गए हैं। लगातार पानी छोड़े जाने से अगले 72 घंटों में दिल्ली और आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।
दरअसल, हर साल बरसात के मौसम में हथिनीकुंड बैराज से लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है। इस पानी में लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है। एक ओर यह पानी किसानों की सिंचाई के लिए वरदान साबित होता है, तो दूसरी ओर निचले इलाकों के लिए आफत बन जाता है। जलस्तर बढ़ने से फसलें नष्ट हो जाती हैं, भूमि कटाव होता है और सड़कें बह जाती हैं। कई बार जान-माल का नुकसान भी होता है।
हथिनीकुंड बैराज हरियाणा के यमुनानगर जिले में यमुना नदी पर स्थित है। इसका निर्माण 1999 में पूरा हुआ था और 2000 से यह पूरी क्षमता से काम कर रहा है। यह बांध नहीं बल्कि बैराज है, यानी इसका उद्देश्य पानी को रोकना नहीं, बल्कि उसे नहरों में मोड़ना है। इसकी अधिकतम निकासी क्षमता लगभग 10 लाख क्यूसेक है। इसमें कुल 18 फ्लड गेट हैं। इसमें मुख्य नहरें पश्चिमी यमुना नहर (WYC) और पूर्वी यमुना नहर (EYC) हैं। जिनकी क्षमता 20,000 घन फीट प्रति सेकंड (CFS) है। यमुना नदी का पानी दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति करता है और बाढ़ नियंत्रण में भी मदद करता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यमुना के बढ़ते जलस्तर के कारण इस समय उत्तर प्रदेश की ज़मीन पर काफ़ी कटाव हो रहा है। अवैध खनन ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। फ़िलहाल कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन जैसे-जैसे पानी का बहाव बढ़ता है, इसका असर दिल्ली तक दिखाई देता है। बैराज से छोड़ा गया पानी शुरुआत में 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से बहता है, लेकिन दिल्ली पहुँचते-पहुँचते इसकी गति कम हो जाती है। हालाँकि, इस बीच रास्ते में आने वाले खेतों और बस्तियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।