ऐसे में सवाल यह उठना यह लाज़मी है कि आज के राजनीतिक दौर में क्या वाकई राजनीतिक शून्यता इस हद तक गहराती जा रही है कि विपक्ष होने के बावजूद विपक्ष नहीं बचा है? विपक्षी दल इतने डरे हुए क्यों हैं कि वे आज के माहौल का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं? मौजूदा हालात में कोई नहीं जान पा रहा है कि कौन कहां खड़ा है, यानी कोई पार्टी मुखिया यह भी नहीं जान पा रहा है कि उसकी पार्टी में कौन अपना है और कौन पराया?
हालांकि यह स्थिति सिर्फ विपक्ष की ही नहीं है, बल्कि सत्ताधारी दल की भी है। लेकिन इसके बावजूद सत्ता में होने के कारण भाजपा के अंदर का विरोध खुलकर सामने नहीं आ पा रहा है। लेकिन यह तय है कि जिस तरह सत्ता में मजबूती न होने के कारण भारत गठबंधन टूट गया, उसी तरह एनडीए गठबंधन भी सत्ता के अभाव में टूट सकता है। ठीक उसी तरह जैसे यूपीए सरकार गिरते ही कांग्रेस में बागियों ने मौका मिलते ही न सिर्फ अपना पक्ष रखा, बल्कि यूपीए सरकार की कमियों को उजागर किया और तरह-तरह के आरोप भी लगाए। भारत गठबंधन टूटते ही राहुल गांधी अडानी को भूल गए, जिसे वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिए राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे थे। उनकी हिम्मत कहां चली गई?
ऐसा लगता है कि भारत गठबंधन के ज्यादातर दलों की इन मुद्दों से दूरी और संघ के प्रति उनके झुकाव ने राहुल गांधी को चुप करा दिया है। क्योंकि भारत गठबंधन के कई नेता संघ के खिलाफ कुछ भी बोलना नहीं चाहते हैं। खासकर शरद पवार लंबे समय से संघ का गुणगान करते आ रहे हैं। जब से उनके भतीजे ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है, शरद पवार की विचारधारा में बदलाव साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। हाल ही में शरद पवार ने जिस तरह से आरएसएस की तारीफ की और उसके कार्यकर्ताओं की आरएसएस के प्रति समर्पण और एकता का हवाला दिया, उससे उन्होंने संकेत दिया कि एनसीपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी वैसा ही समर्पण होना चाहिए।
दरअसल शरद पवार ने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं से साफ कहा कि हमें आरएसएस से सीखना चाहिए और उनकी पार्टी को भी छत्रपति शाहूजी महाराज, महात्मा फुले, बीआर अंबेडकर और महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री यशवंत राव चौहान की विचारधारा को साथ लेकर कैडर तैयार करना होगा। इससे यह साफ हो गया है कि जहां उनके भतीजे अजित पवार ने खुलकर बीजेपी से गठबंधन कर लिया है, वहीं शरद पवार भी दिल से बीजेपी और आरएसएस से बंधे नजर आ रहे हैं। और हाल ही में दिल्ली में हुए कार्यक्रम के दौरान आपने देखा कि पीएम मोदी उन्हें कुर्सी पर बैठा रहे हैं और अपने हाथों से पानी पिला रहे हैं। क्या इसे ही राजनीति कहते हैं? Political News