सहारनपुर : यूपी में मदरसों के खिलाफ हो रही कार्रवाई ने एक बार फिर धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों को लेकर बहस छिड़ गई है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि मदरसों पर किसी भी तरह की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद प्रदेश में नेपाल सीमा से लगे मुस्लिम बहुल जिलों में मदरसों, दरगाहों, ईदगाहों और कब्रिस्तानों को निशाना बनाकर न सिर्फ सील किया जा रहा है, बल्कि कुछ को तोड़े जाने की भी खबरें हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। 21 अक्टूबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र और राज्यों को किसी भी तरह की कार्रवाई करने से रोक दिया था।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह कोर्ट की अवमानना है। यह अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 30 के उल्लंघन का गंभीर मामला है। उनका कहना है कि इस पूरी कार्रवाई के पीछे न सिर्फ राजनीतिक मकसद हैं बल्कि यह मुसलमानों को धार्मिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर करने की साजिश का भी हिस्सा है।
मौलाना मदनी ने कहा कि एक जून 2025 को जामिया शारदाया फैजुल उलूम, सरायमीर, आजमगढ़ में ‘ऑल इंडिया मदरसा सुरक्षा सम्मेलन’ होगा। जिसमें वह मुख्य अतिथि होंगे और सम्मेलन की पूरी जिम्मेदारी जमीयत उलमा यूपी के अध्यक्ष मौलाना अरशद रशीदी को सौंपी गई है।
सम्मेलन में सभी संप्रदायों के मदरसों के प्रमुखों को आमंत्रित किया गया है ताकि एकमत रणनीति बनाकर इस चुनौतीपूर्ण समय का सामना किया जा सके। मौलाना मदनी ने कहा- यह समय आपसी मतभेदों में उलझने का नहीं बल्कि एकजुट होने का है क्योंकि सरकार की मुहिम सभी संप्रदायों के मदरसों को निशाना बना रही है।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई मदरसों के उलेमाओं ने शुरू की थी और इसी मकसद से दारुल उलूम देवबंद जैसी संस्थाओं की स्थापना की गई थी। सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की कोई भी धारा अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर लागू नहीं होती। इसके बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें मदरसों को निशाना बना रही हैं, जो संविधान और न्यायपालिका दोनों का अपमान है।
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