जाट राजनीती : पिछले दस सालों में किसान समुदाय, खास तौर पर जाट, भाजपा, संघ और तथाकथित उच्च जाति हिंदू समाज की भयंकर साजिश का शिकार हुए हैं। भाजपा ने केंद्र में सरकार बनते ही सबसे पहला काम 2015 में योजनाबद्ध तरीके से जाट आरक्षण को खत्म करने का किया, फिर प्रधानमंत्री ने जाटों को अपने आवास पर बुलाकर आरक्षण देने का झूठा आश्वासन दिया जो कभी पूरा नहीं हुआ, जिससे लाखों जाट युवाओं का भविष्य बर्बाद हो गया। 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन में हरियाणा सरकार ने दो दर्जन जाट युवाओं की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए गोदी मीडिया ने मुरथल बलात्कार कांड की झूठी कहानी गढ़कर जाटों को अपमानित किया।
फिर भाजपा ने तीन कृषि कानून बनाकर किसानों और जाटों की खेती को लूटने की गंदी चाल चली। किसान आंदोलन में हजारों जाटों को सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया गया, उनके रास्ते में कीलें बिछा दी गईं, हर तरह के अत्याचार किए गए, चाटुकार मीडिया द्वारा उन्हें बदनाम किया गया, एमएसपी देने का झूठा वादा करके किसान आंदोलन को खत्म कर दिया गया लेकिन आज तक एमएसपी नहीं दी गई।
भाजपा के शीर्ष नेताओं के निर्देश पर हरियाणा सरकार पिछले 10 वर्षों से लगातार किसानों और जाटों के साथ मारपीट कर रही है। आज भी हरियाणा पंजाब में धान की खरीद कम करके और डीएपी खाद की उपलब्धता कम करके जाटों और अन्य किसान समुदायों को परेशान कर रहा है। भाजपा ने जाटों की पहलवान बेटियों का यौन शोषण करने वालों को संरक्षण दिया, आंदोलन और पीड़ित बेटियों को बदनाम किया, उनके पीछे अपनी पूरी ट्रोल आर्मी लगा दी, कंगना रनौत जैसी सांसदों से किसानों, महिला पहलवानों, जाटों को गाली दिलवाई। अग्निवीर योजना लागू करके किसानों और जाटों के सेना में भर्ती होने का रास्ता बंद कर दिया, हरियाणा में जाटों और गैर-जाटों की घिनौनी राजनीति की गई। यानी पिछले दस सालों में संघ के इको-सिस्टम ने किसान समुदायों और जाट समुदाय को अपमानित करने, उन्हें कमजोर करने, उनकी राजनीति को नष्ट करने, उन्हें आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने और समाज से अलग-थलग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
भाजपा द्वारा किए गए घोर अपमान, तिरस्कार और घृणा ने जाटों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि खेत, खेल और सीमाओं पर उनके द्वारा किए गए सभी बलिदानों का यही इनाम उन्हें हिंदू धर्म से मिला है। ‘बांटोगे तो कटोगे’ के मंत्र को आत्मसात करने का विचार अब जाटों में पनप रहा है। जाट समझ गए हैं कि अब उन्हें धर्म से ऊपर उठकर अपने जाट जीन के आधार पर एकता बनाकर संघियों से लड़ना होगा। जाट हिंदू, मुस्लिम और सिख तीनों धर्मों में हैं। संघी मुसलमान जाटों को मुसलमान होने के कारण आतंकवादी कहकर परेशान करते हैं। सिखों को खालिस्तानी कहकर बदनाम करते हैं। हिंदू धर्म में भी जाटों को तिरस्कार के अलावा कुछ नहीं मिला है। 35 बनाम 1 के फॉर्मूले से भाजपा खुद जाटों को हिंदुओं से अलग करने पर तुली हुई है।
सिख धर्म किसानों और जाटों की संस्कृति पर आधारित धर्म है। बड़ी संख्या में जाट और अन्य किसान समुदाय पहले से ही सिख धर्म के मजबूत स्तंभ हैं। सेवा, भाईचारे और त्याग पर आधारित सिख धर्म जाटों और किसान समुदायों का स्वाभाविक धर्म है जहां कोई भेदभाव या भेदभाव नहीं है, जहां सभी का सम्मान किया जाता है। इसलिए अब समय आ गया है जब हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के जाटों को अपने सिख भाइयों के साथ एकजुट होकर संघियों को भगाने की रणनीति पर काम करना चाहिए, अन्यथा तीनों का अस्तित्व खतरे में है। अगर आज तीन धर्मों और कई राज्यों में विभाजित हिंदू, मुस्लिम और सिख जाट एक साथ आते हैं और सभी सिख धर्म अपनाने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो संघियों का नकली हिंदुत्व एजेंडा हवा हो जाएगा। संघियों द्वारा प्रताड़ित अन्य किसानों और पिछड़ी जातियों को भी इस मुद्दे पर सोचना होगा, अन्यथा संघी सभी को जातियों और धर्मों में बांटकर खुद सत्ता की मलाई खाएंगे।
हिंदू, मुस्लिम, सिख और जाट एक हो जाएंगे,
सब मिलकर संघियों को हराएंगे!
( कहानी किसानों और जाट नेताओं से बातचीत पर आधारित )