किसान और सरकार : उत्तर भारत में गेहूं की बुवाई के लिए खाद की किल्लत और कालाबाजारी से जूझ रहा किसान है। केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार बनने से पहले वो यही राग अलापते रहे हैं कि किसानों की दशा में उनकी सरकार सुधार करेगी। उन्होंने गुजरात के सीएम रहते हुए न सिर्फ एमएसपी का मुद्दा उठाया था, बल्कि किसानों की आय दुगुनी करने, उन्हें पारदर्शी और सीधी बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराने, किसानों की कर्जा माफी और उनसे जुड़ी तमाम समस्याओं का समाधान करने का वायदे भी किए थे। अपनी पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों पर उन्होंने किसानों के साथ अन्याय करने का आरोप भी लगाया था।
पीएम मोदी ने कई बार अपने भाषणों में साफ-साफ कहा है कि उनकी सरकार देश के किसानों को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन अगर हम हकीकत की बात करें, तो आज जिस प्रकार से किसानों की समस्याएं न सिर्फ बढ़ती जा रही हैं, बल्कि उन्हें महंगाई से लेकर खाद की किल्लत का जिस प्रकार से केंद्र की मोदी सरकार में तीसरी बार सामना करना पड़ रहा है, वो न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि चिंता का विषय भी है।
आज पूरे देश में ऐसे वक्त में डीएपी और यूरिया जैसी जरूरी उर्वरक खादों की अचानक कमी हो दिखाई जा रही है, जब गेहूं कि फसल बोने के लिए किसान परेशान हैं। किसानों को रात-रात भर और फिर पूरे दिन लाइन में लगने के बावजूद भी खाद नहीं मिल रही है। प्राइवेट दुकान वाले खाद की कालाबाजारी कर रहे हैं। किसानों को डीएपी की जगह जबरन और महंगे दामों में दूसरी फर्टिलाइजर खादें पकड़ाई जा रही हैं।
मुझे याद आता है कि जब कुछ साल पहले ही खादों के दाम कई गुना बढ़ाकर उस पर प्रधानमंत्री मोदी का प्रचार करते हुए महंगा किया गया था, तब केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों को खाद पर ज्यादा सब्सिडी देने का ड्रामा करते हुए अपनी पीठ थपथपाते हुए दावा किया था कि किसानों को खाद की किल्लत नहीं होने दी जाएगी, लेकिन बावजूद इसके किसानों को मोदी सरकार के तकरीबन साढ़े 10 सालों में तीसरी बार खाद की भारी कमी और कालाबाजारी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि केंद्र की मोदी सरकार खाद के दाम बढ़ाकर किसानों की कमर फिर से तोड़ना चाहती है।
दरअसल, फर्टिलाइजर कंपनियां डीएपी और यूरिया की जगह हल्की और नकली खादों की बिक्री जबरन किसानों को कर रही हैं और उन्होंने इसी के चलते रबी की फसलों के लिए जरूरी खादों की किल्लत कर रखी है। जबकि केंद्र की मोदी सरकार ने ही अपने पिछले कार्यकाल में कहा था कि खाद की कालाबाजारी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन अब जब खाद की कालाबाजारी धड़ल्ले से हो रही है और किसान रात-दिन खाद के लिए भटक रहा है, तब न प्रधानमंत्री कुछ बोल पा रहे हैं और न ही कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुंह से कोई आवाज आ रही है।
कई किसानों की शिकायत है कि उन्हें डीएपी और यूरिया की एक-एक बोरी लेने के लिए न सिर्फ ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है, चल्कि बिना जरूरत के जबरन अतिरिक्त सामान लेना पड़ रहा है। किसानों को ये जबरन बेचा जाने वाला सामान उनके किसी काम का ही नहीं है। इसमें जिंक, नैनो यूरिया की बोतल, और दूसरी गैर जरूरी चीजें शामिल हैं, जिनकी किसानों को जरूरत ही नहीं है। इससे न सिर्फ किसानों को पैसे की कमी होते हुए भी हजारों रुपए बर्बाद करने पड़ रहे हैं, बल्कि कई किसान गेहूं बोने से इंकार करने लगे हैं।
किसानों का कहना है कि अगर वो उन्हें जबरन बेचे जा रहे सामान को लेने से मना कर रहे हैं या पैसे की कमी के चलते नहीं ले पा रहे हैं, तो उन्हें खाद देने से साफ मना किया जा रहा है। कुछ किसानों का तो यहां तक कहना है कि स्टाक में बचे हुए सामान को, जो कि एक्सपायर हो चुका है या एक्सपायरी डेट के करीब है, उन्हें जबरन बेचकर लूट की जा रही है, जिसे रोकने के लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्य की सरकारों की ओर से कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।
बहरहाल, खाद की किल्लत किसी एक राज्य में नहीं है, बल्कि सभी राज्यों खास तौर पर भाजपा के शासन वाले राज्यों में ज्यादा ही है। मसलन, पंजाब और हरियाणा की अगर तुलना करें, तो हरियाणा में खाद की किल्लत पंजाब से ज्यादा है। इसी प्रकार से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान और उड़ीसा जैसे राज्यों में, जहां भाजपा को हो सरकारें हैं, खाद की किल्लत दूसरे राज्यों की अपेक्षा ज्यादा है। हैरत की बात है कि कंपनियों की इस जबरदस्ती और कालाबाजारी पर सरकार कुछ भी नहीं बोल रही है।
कृषि विभाग और फर्टिलाइजर विभागों के अफसर भी इस कालाबाजारी पर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। वो सिर्फ उन दुकानदारों के छापेमारी करने की कोशिशों में लगे हैं, जहां से उन्हें कुछ रिश्वत वगैरह मिल सके, जबकि असली खेल खाद कंपनियां और खाद की सरकारी दुकानों पर हो रहा है। किसानों को जबरन दिए जा रही दवाओं और खादों का उपयोग न तो रबी की फसलों में होना है और न ही कई चीजों के उपयोग के बारे में किसानों को जानकारी है। किसान डीएपी और यूरिया मांग रहे हैं, तो उन्हें जबरन एनपीके दिया जा रहा है। जिंक दी जा रही है, नैनो यूरिया की बोतल दी जा रही है और कुछ दवाएं जबरन दी जा रही हैं।
ऐसा लगता है कि कंपनियां कहीं न कहीं सरकारों की मिलीभगत से अपने खराब होने वाले सामान को किसानों को जबरन बेच रही हैं और इसमें सरकारों का सीधा-सीधा हाथ इसलिए लगता है कि पिछले तकरीबन 20 दिन से खाद की किल्लत चल रही है, लेकिन कालाबाजारी करने और किसानों से ठगी करने वाली कंपनियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं हुई है और न ही खाद की आपूर्ति के लिए कुछ किया जा रहा है।
कई किसानों का आरोप है कि डीएपी का 50 किलो का कट्टा, जो कि 1 हजार 3 सौ 50 रुपए के मूल्य का है, वो 1 हजार 7 सौ रुपए से लेकर 2 हजार 5 सौ रुपए तक बिक रहा है। वहीं सरकारी खाद के गोदामों पर ये कट्टा 1 हजार 7 सौ रुपए का बेचा जा रहा है, जिसके साथ 3 सौ 50 रुपए मूल्य का कुछ और सामान भी है। यूरिया को भी इसी प्रकार से महंगा करके दूसरे अनुपयोगी सामान के साथ किसानों को जबरन वेचा जा रहा है। इसके बावजूद खाद की आपूर्ति नहीं हो पा रही है और किसानों को एक कट्टा डीएपी या यूरिया के लिए रात-दिन भागदौड़ करनी पड़ रही है और भूखे-प्यासे रहकर कई-कई घंटे लाइनों में लगना पड़ रहा है।