युवा और ड्रग्स : हाल ही में गुजरात के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के ड्रग्स लेने की खबर सामने आई है। और ये मामला तब सामने आया जब दो बच्चों के अजीबोगरीब व्यवहार और ट्यूशन के बाद घर में सोने के बाद माता-पिता उन्हें डॉक्टरों के पास ले गए, तब डॉक्टरों ने दोनों बच्चों का यूरिन टेस्ट करवाया। दरअसल, ये बच्चे ट्यूशन से लौटते वक्त कहीं कॉफी पीते थे, जिसके बाद घर आते ही बिस्तर पर गिरकर सो जाते थे। ये बच्चे न तो समय पर खाना खाते थे, न ठीक से पढ़ाई करते थे, न किसी से ठीक से बात करते थे और न ही परिवार में किसी की बात सुनते थे। इस पर घरवालों ने इन्हें डॉक्टरों को दिखाया और तब पता चला कि ये दोनों ड्रग्स लेते हैं।
झंडा लाल चौक के एक टावर में रहकर ये स्कूल यूनिफॉर्म में साइकिल चोरी करते पकड़े गए और पता चला कि ये ड्रग्स लेने लगे हैं, ये ड्रग्स खरीदने के लिए चोरी कर रहे थे। दरअसल, करीब एक हफ्ते पहले गुजरात पुलिस ने एक संयुक्त अभियान के तहत करीब 500 किलो कोकीन के साथ 5 लोगों को गिरफ्तार किया है। इससे पहले इसी साल जून में गुजरात में बच्चों के सामान में करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये का हाइब्रिड गांजा और दूसरे ड्रग्स छिपाकर रखे गए थे, जिन्हें पुलिस ने जब्त किया था। और उससे पहले गुजरात से अडानी पोर्ट पर करोड़ों रुपये की 3 हजार किलो से ज्यादा ड्रग्स बरामद की गई थी।
इसी तरह गुजरात में हर साल करोड़ों रुपये की ड्रग्स बरामद होती है और कुछ लोगों को गिरफ्तार करने के अलावा पुलिस या ड्रग विभाग कोई ऐसी कार्रवाई नहीं कर पाता जिससे इस पर पूरी तरह से रोक लग सके। और आज सिर्फ गुजरात ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों में भी ड्रग तस्करी का धंधा बढ़ता जा रहा है। सवाल यह है कि इसके पीछे कौन है? और दूसरा सवाल यह है कि आखिर बच्चे, खासकर स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे, नशे का शिकार क्यों बन रहे हैं? कुछ साल पहले तक देखा जाता था कि कचरा बीनने वाले बच्चे ही नशा करते हैं? लेकिन अब संपन्न परिवारों के बच्चों के भी ड्रग्स और दूसरे तरह के नशे के मामले बढ़ रहे हैं। Drugs Among Youth
नशा मुक्ति केंद्रों में आने वाले बाल रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी कोई छोटी बात नहीं है। साल 2022 में खुद केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि देश में 10 से 17 साल की उम्र के 1 करोड़ 58 लाख नाबालिग बच्चे किसी न किसी तरह का नशा कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर एक खास तरह का खतरनाक नशा करते हैं। मसलन ड्रग्स आदि लेना. सरकार ने कोर्ट को यह भी बताया था कि इस उम्र के नाबालिग बच्चे कोकीन, हशीश, मारिजुआना, शराब, हेरोइन, एलएसडी, मॉर्फिन, अफीम, भांग समेत कई तरह के नशे कर रहे हैं.
एक सर्वे का हवाला देते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि तमाम तरह के नशों में भारत के लोग सबसे ज्यादा शराब पीते हैं, करीब 16 करोड़ लोग शराब की गंभीर लत के शिकार हैं। शराब के बाद उन्हें भांग और अफीम का नशा ज्यादा पसंद है, इनका सेवन करने वालों की आबादी 3 करोड़ 1 लाख से ज्यादा है, जिसमें भांग का नशा करने वालों की संख्या करीब 25 लाख है. यह मामला तब प्रकाश में आया जब बचपन बचाओ आंदोलन नामक एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार से जवाब मांगा था। Drugs Among Youth
इस मामले में केंद्र की मोदी सरकार ने नशे के आदी लोगों के बारे में कई अन्य जानकारियां भी दीं, लेकिन ड्रग्स और अन्य प्रकार के नशीले पदार्थों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। वैसे भी भारत में हर साल 8 जून को बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय नशा विनाश दिवस मनाया जाता है और हर साल 26 जून को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस भी मनाया जाता है और इन दोनों ही मौकों पर न केवल केंद्र सरकार और उसके नशा मुक्ति केंद्र बल्कि राज्य सरकारें और उनके नशा मुक्ति केंद्र और नशा मुक्ति के नाम पर काम करने वाली तमाम सरकारी संस्थाएं करोड़ों-अरबों रुपए खर्च करती हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत में नशा तस्करी से नशे के आदी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिसमें सबसे बड़ी चिंता बच्चों का नशे की लत में फंसना है। Drugs Among Youth
जबकि केंद्र सरकार के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर ने देशभर में नशा मुक्त भारत अभियान (एनएमबी ए) जैसी बड़ी महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है, जिसके नशा मुक्ति केंद्र देश के हर जिले में चल रहे हैं। इसके बावजूद नशे के आदी लोगों, खासकर बच्चों की बढ़ती संख्या न केवल चिंता का विषय है, बल्कि इससे यह भी साफ लगता है कि सरकार इन नशा मुक्ति केंद्रों पर पैसा बर्बाद कर रही है। नशा तस्करी रोकने की जिम्मेदारी भी पुलिस की है, लेकिन वह इस मामले में लगभग विफल है और अगर कहीं कुछ ईमानदार पुलिसकर्मी नशा तस्करों को पकड़ भी लेते हैं, तो नशा तस्करों का कुछ खास नहीं होता। कई बार वे पैसे के बल पर या जमानत पर आसानी से छूट जाते हैं। ड्रग्स विभाग का काम नशा तस्करी रोकना है, लेकिन वह इसमें भी लगभग विफल है। Drugs Among Youth
इस मामले में वह लगभग विफल है और अगर कहीं कुछ ईमानदार पुलिसकर्मी नशा तस्करों को पकड़ भी लेते हैं, तो नशा तस्करों का कुछ खास नहीं होता। कई बार वे पैसे के बल पर या जमानत पर आसानी से छूट जाते हैं। ड्रग्स विभाग का काम मादक पदार्थों की तस्करी रोकना है, लेकिन वह भी इसमें लगभग असफल नजर आ रहा है।
वैसे भी नशा तस्करी लगातार बढ़ रही है और नशा करने वालों की संख्या भी। केंद्र सरकार को इस ओर पूरा ध्यान देना चाहिए और किसी भी हालत में नशा तस्करों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। पुलिस को स्कूलों के बाहर या आसपास ऐसे गिरोहों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए, जो नशा तस्करी करते हैं और मासूम स्कूली बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं। हैरानी और दुख की बात यह है कि इन नशा तस्करों के चंगुल में न केवल स्कूलों में पढ़ने वाले नाबालिग लड़के फंसते हैं, बल्कि नाबालिग लड़कियां भी फंस जाती हैं।
केंद्र की मोदी सरकार, राज्य सरकारों, ड्रग विभाग, नशा मुक्ति केंद्रों, पुलिस ही नहीं, बल्कि स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों और बच्चों के अभिभावकों को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही देश का भविष्य माने जाने वाले बच्चों की जिंदगी बर्बाद कर सकती है। और मुझे लगता है कि इसका सबसे ज्यादा असर उन अभिभावकों पर पड़ सकता है, जिनके बच्चे नशे की लत में फंसकर खुद को बर्बाद कर चुके हैं या कर रहे हैं। Drugs Among Youth
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