देवबंद : जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि निचली अदालतें हमारे धार्मिक स्थलों को लेकर ऐसे फैसले दे रही हैं। जिससे देश में विघटन और भय का माहौल पैदा हो रहा है। यह बेहद निराशाजनक है। मौलाना अरशद मदनी ने रविवार को जारी बयान में कहा कि ऐसे फैसलों की आड़ में सांप्रदायिक तत्व ही नहीं बल्कि कानून के रक्षक भी मुसलमानों के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।
मौलाना अरशद मदनी ने अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संभल की घटना कोई मामूली घटना नहीं है, बल्कि यह ऐसा अत्याचार है जो देश के संविधान, न्याय और धर्मनिरपेक्षता को आग में डालने के साथ ही कानून की धज्जियां उड़ा रहा है। मौलाना मदनी ने कहा कि निचली अदालतों के फैसलों से सांप्रदायिक तत्वों के हौसले इतने बढ़ गए हैं कि अब उन्होंने दावा किया है कि अजमेर स्थित सदियों पुरानी ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह भी हिंदू मंदिर है। हैरानी की बात यह है कि स्थानीय अदालत ने इस याचिका को सुनवाई के लिए उपयुक्त करार दिया है। ऐसे में न्याय और धर्मनिरपेक्ष संविधान के अस्तित्व के लिए सुप्रीम कोर्ट ही अंतिम सहारा है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद दिल्ली के प्रेस सचिव फजलुर रहमान ने बताया कि इबादतगाह सुरक्षा कानून की संवैधानिक स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट में 4 दिसंबर को सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना की अगुवाई वाली दो सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। पूरे देश की निगाहें इस पर टिकी हैं। संभल की घटना के बाद जमीयत ने इस महत्वपूर्ण मामले पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था।
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