पीक के जन सुराज फंडिंग मॉडल पर उठे सवाल, हंगामा

The BJP is campaigning against Jan Suraj, Calling it a "political startup based on fraud".

दिल्ली : जेडीयू के वरिष्ठ नेता जल्द ही चुनाव आयोग, आयकर विभाग और बिहार पुलिस के भ्रष्टाचार निरोधक प्रकोष्ठ में एक औपचारिक याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। आरोप है कि जॉय ऑफ गिविंग फाउंडेशन और तेलंगाना व कर्नाटक में पंजीकृत कई कंपनियों के माध्यम से जन सुराज को बड़ी रकम दान की गई, जिनकी कॉर्पोरेट संरचना और निदेशक मंडल में बार-बार बदलाव संदिग्ध हैं।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, ये लेन-देन संभावित “राउंड-ट्रिपिंग” का संकेत देते हैं, जिसका अर्थ है कि एक ही धनराशि को विभिन्न खातों से निकालकर राजनीतिक फंडिंग के लिए इस्तेमाल किया गया होगा। प्रशांत किशोर ने इन आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन किया है। उनका दावा है कि उन्होंने तीन वर्षों में एक राजनीतिक सलाहकार के रूप में ₹241 करोड़ कमाए और सभी देय करों – ₹31 करोड़ जीएसटी और ₹20 करोड़ आयकर – का समय पर भुगतान किया।

प्रशांत किशोर का दावा है कि उन्होंने पारदर्शी बैंकिंग चैनलों के माध्यम से जन सुराज को ₹98 करोड़ का दान दिया और पार्टी के सभी खाते सरकारी जाँच के दायरे में हैं। उन्होंने कहा, “एक-एक रुपया वैध आय से दान किया गया था, न कि काले धन या धोखाधड़ी वाले लेन-देन से।” हालाँकि, भाजपा जन सुराज के खिलाफ अभियान चला रही है और इसे “धोखाधड़ी पर आधारित राजनीतिक स्टार्टअप” बता रही है।

भाजपा प्रवक्ताओं का आरोप है कि प्रशांत किशोर ने फर्जी कंपनियों और पारिवारिक फर्मों के ज़रिए धन का गबन किया और अब इसे एक जन आंदोलन के रूप में पेश कर रहे हैं। पार्टी ने पारदर्शिता दिखाने के लिए क्राउडफंडिंग अभियान शुरू किया है, लेकिन इससे जन सुराज के फंडिंग मॉडल पर सवाल उठने बंद नहीं हुए हैं। आगामी बिहार चुनावों से ठीक पहले, इस विवाद ने राजनीतिक तनाव को जन्म दे दिया है। विपक्ष इसे सरकार द्वारा प्रायोजित “राजनीतिक डर” बता रहा है, जबकि सत्तारूढ़ दल का कहना है कि “जन सुराज की खोखली नैतिकता को उजागर करने” का समय आ गया है।

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