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पुरानी यादें साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और नवाज शरीफ से भी भारत के साथ रिश्ते सुधारने की अपील की थी। हम जिन हालातों से गुजर रहे हैं, वे दिल तोड़ने लायक नहीं हैं। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की हरकतों की कीमत भारत के मुसलमानों को चुकानी पड़ रही है। उन्हें जेलों में डाल दिया जाता है, शक की निगाह से देखा जाता है।

आतंकियों पर बोलते हुए इमाम ने कहा कि एक तरफ पहलगाम में हिंदुओं को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। वहीं एक मुस्लिम आदिल ने पर्यटकों को बचाने के लिए आतंकियों से मुकाबला किया और अपनी जान गंवा दी, लेकिन उसकी कुर्बानी पर चर्चा नहीं होती। क्या वह इंसान नहीं था? उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीरी लोगों ने मानवता की मिसाल कायम की है, उन्होंने हिंदू मेहमानों को अपने घरों में पनाह दी, आतंकवाद के खिलाफ जुलूस निकाले और पर्यटकों को सुरक्षित एयरपोर्ट पहुंचाया। इस दौरान बुखारी ने उस घटना की निंदा की जिसमें लोगों के कपड़े उतरवाए गए और उनका धर्म चेक किया गया। उन्होंने इसे इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया और कहा कि न तो इस्लाम और न ही मानवता इस तरह के कृत्यों की इजाजत देती है। उन्होंने अंत में कहा कि यह समय हिंदू-मुस्लिम करने का नहीं, बल्कि देश के लिए एकजुट होने का है। हमें अपनी हजारों साल पुरानी सभ्यता और एकता को बनाए रखना है।
आपको बता दें कि जामा मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद सैकड़ों लोगों ने जामा मस्जिद के बाहर आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया और नारे लगाए। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने कहा कि वह जामा मस्जिद के पास रहते हैं। कश्मीर में हुए आतंकी हमले में जिस तरह से भारतीयों की हत्या हुई है, उससे पूरे देश में मातम है। सबसे बड़ी कमी यह है कि सुरक्षा ठीक नहीं है। अगर सुरक्षा ठीक नहीं होगी तो घर में चोरी हो जाएगी। पिछले 3 सालों से हमारी सुरक्षा व्यवस्था में कोई भर्ती नहीं हुई है। आज धर्म पूछकर यह आतंकी हमला किया गया और यह मॉब लिंचिंग वर्ष 2014 में शुरू हुई थी। हमने इस पर ठीक से नियंत्रण नहीं किया, अगर इस पर ठीक से नियंत्रण होता तो आतंकियों की हिम्मत धर्म पूछकर हत्या करने की नहीं होती।