मौलाना ने साफ़ कहा कि इस्लाम किसी भी मर्द को यह इजाज़त नहीं देता कि वह किसी ग़ैर-महरम औरत का हाथ छुए, चाहे वह किसी भी बहाने से हो। इसी तरह, महिलाओं को भी सख़्ती से यह ताकीद की गई है कि वे अपने हाथ किसी ग़ैर-महरम मर्द के हाथों में ना दें, ना चूड़ी पहनने के लिए और ना ही मेंहदी लगवाने के लिए।
अपने बयान में क़ारी गोरा ने दारुल उलूम देवबंद के उस फतवे की भी याद दिलाई जिसमें साफ़ कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं को ग़ैर-महरम मर्दों से चूड़ी पहनना और मेहंदी लगवाना मना है। उन्होंने कहा कि यह फतवा शरीयत के उस मूल उसूल पर आधारित है जिसमें पर्दा और ग़ैर-महरम से परहेज़ को बेहद अहमियत दी गई है।
क़ारी गोरा ने मुस्लिम समुदाय, खासतौर पर महिलाओं से अपील की कि वोह ऐसे मामलों में इस्लामी शिक्षाओं और फतवों की रोशनी में अपने फैसले लें। उन्होंने कहा कि हमें अपने दीन को समझने और सही अमल करने की ज़रूरत है। वक्त की मांग है कि हम अपनी रिवायतों को मज़हबी उसूलों के तले परखें और अपने समाज में इस्लामी तहज़ीब और आदाब को फिर से ज़िंदा करें।