कृषि और किसान : सोचने वाली बात यह है कि इतने सारे प्राकृतिक संसाधन होने के बावजूद आज कृषि और किसान उतनी तरक्की क्यों नहीं कर पाए, जितनी कर सकते थे? ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की दर बहुत धीमी और पिछड़ी क्यों है? केंद्र और राज्य सरकारें ग्रामीण विकास की दर को तेज करने की संभावनाओं को क्यों नहीं समझ पाई हैं? किसान इतने प्रचुर संसाधनों का समुचित और अधिकतम उपयोग क्यों नहीं कर पा रहे हैं?
गांवों में रहने वाले किसानों और अन्य लोगों का जीवन क्यों नहीं सुधर रहा है? देश के निर्माण और उनके जीवन को ऊपर उठाने में उनकी भूमिका क्यों नहीं उभर रही है? ऐसे दर्जनों ज्वलंत प्रश्न सरकारों के ही नहीं, बल्कि हमारे सामने भी खड़े हैं, जिनका समाधान खोजना ही होगा। क्योंकि समस्या के सभी पक्षों और पहलुओं को समझने और उनसे बेहतर तरीके से निपटने के बाद ही हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि कृषि और ग्रामीण विकास कैसे हो सकता है?
दरअसल, आज तक इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर उतना ध्यान नहीं दिया गया, जितना दिया जाना चाहिए था। कृषि क्षेत्र की उपेक्षा का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि औद्योगीकरण, वित्तीय कराधान, व्यापार, आयात-निर्यात, परिवहन, खनिज, मनोरंजन, पर्यटन आदि सभी छोटे-बड़े क्षेत्रों पर राष्ट्रीय नीतियां तो बनीं, लेकिन कृषि के लिए एक भी समग्र, एकीकृत राष्ट्रीय कृषि नीति नहीं बनाई गई, जिससे कृषि, किसान और ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ देश का तेजी से विकास हो पाता।
कृषि विशेषज्ञ और भारतीय किसान संघ के पूर्व अध्यक्ष नरेश सिरोही कहते हैं कि कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को लेकर कई बैठकें हुईं, समितियां बनीं, उनकी रिपोर्ट भी आईं, लेकिन इसके बावजूद आज तक किसी सरकार ने इस पर उतना ध्यान नहीं दिया, जितना देना चाहिए था। आज एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार कृषि को पूंजीपतियों के लिए मुनाफे का सौदा बनाने पर तुली है तो दूसरी तरफ किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं देना चाहती।
हरित क्रांति के अलावा कृषि नीति-2000 और 2007 के तहत जो थोड़ा-बहुत काम हुआ भी है, उसके अपेक्षित परिणाम नहीं दिख रहे हैं। बहरहाल, यदि विकास दर को बढ़ाना है तो सरकारों को इनके विकास के लिए दीर्घकालिक टिकाऊ कार्यक्रमों के साथ-साथ इन प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने में किसानों की मदद करनी चाहिए, ताकि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं किसानों का योगदान बढ़ सके। जो लोग हमेशा देश के लोगों के लिए दिन-रात अन्न उगाने में लगे रहते हैं, उन्हें भी देश की आर्थिक प्रगति में उचित हिस्सा मिलना चाहिए, जिसके लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं पर सही तरीके से काम करना होगा।