अडानी और सरकार : 2,200 करोड़ रुपये के रिश्वत मामले में अडानी और उनके परिवार के सदस्यों को अमेरिका की एक अदालत द्वारा वारंट जारी किए जाने के बाद विपक्ष को सरकार को घेरने के लिए एक अच्छा मुद्दा मिल गया, वहीं अमेरिकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस के साथ सोनिया गांधी के रिश्तों के आरोपों पर भाजपा का आक्रामक रुख बना हुआ है। गुरुवार को पार्टी नेता गिरिराज सिंह ने संसद भवन के बाहर सोनिया गांधी और जॉर्ज सोरोस के पोस्टर लहराए।
इसके अलावा सवाल पूछा गया कि सोनिया गांधी का जॉर्ज सोरोस के साथ क्या रिश्ता है। एक पोस्टर पर लिखा था, ‘सोरोस से तेरा रिश्ता क्या, सोनिया जवाब दे।’ इसके अलावा एक अन्य पोस्टर पर लिखा था, ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है।’ गिरिराज सिंह पहले भी इस मुद्दे को उठाते रहे हैं और उनका कहना है कि कांग्रेस का एजेंडा जॉर्ज सोरोस तय करते हैं और इसके लिए वहीं से फंडिंग भी मिली है। संसद में जब सरकार घिर गई तो सरकार ने नया हथकंडा अपनाते हुए भारत गठबंधन के सहयोगियों में फूट डालकर मुद्दे को भटका दिया।
सत्तारूढ़ दल भाजपा ने दो ब्रह्मास्त्र चलाए, पहला सोनिया गांधी के अमेरिकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस से संबंधों का आरोप, जिस पर भाजपा का आक्रामक रुख बरकरार है। इस पर भाजपा ने सवाल पूछा कि सोनिया गांधी का जॉर्ज सोरोस से क्या संबंध है? भाजपा का कहना है कि जॉर्ज सोरोस कांग्रेस का एजेंडा तय करते हैं और इसके लिए फंडिंग भी वहीं से होती रही है।
दूसरा, माना जा रहा है कि भारत गठबंधन के सहयोगियों में फूट डालने में अडानी और एजेंसियों की अहम भूमिका रही है। पश्चिम बंगाल में अडानी के निवेश के मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी थक चुकी हैं। एजेंसियों ने उनके भतीजे पर शिकंजा कस दिया है, जिससे ममता मजबूर हैं। लालू यादव का ममता बनर्जी के भारत गठबंधन का संयोजक बनने की बात कहना और अखिलेश यादव का इसकी पुष्टि करना यह दर्शाता है कि सभी राजनीतिक दल दबाव में हैं। यहां सत्ताधारी दल भाजपा की भारत गठबंधन के सहयोगियों को परेशान करने की रणनीति काम करती दिख रही है।
दरअसल सवाल यह है कि सत्ता में न होते हुए भी इन पार्टियों की क्या मजबूरी है? वे सरकार के साथ क्यों खड़ी हैं? इनमें ओडिशा की नवीन पटनायक की पार्टी, आंध्र प्रदेश की जगन रेड्डी की पार्टी और टीआरएस के केसीआर भी बैकफुट पर जाते दिख रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ये पार्टियां इतने दबाव में क्यों हैं? इस मुद्दे पर लड़ने के लिए सिर्फ कांग्रेस ही मोर्चे पर है, देखना यह है कि वह कब तक मुकाबला कर पाती है।
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