यूपी में बिजली : यूपी में पिछले 6 सालों में बिजली की समस्या और महंगी बिजली को लेकर खूब हंगामा हुआ है, जब से बीजेपी सरकार यानी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार बनी है। पहले तो सरकार ने बिजली के कारोबार में घाटा दिखाया और पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर बिजली सप्लाई शुरू कर दी। जिसके बाद आम लोगों खासकर कारोबारियों ने महंगी बिजली और आधी-अधूरी बिजली सप्लाई के खिलाफ आवाज उठाई।
यहां तक कि सरकार की इन दोनों व्यवस्थाओं के खिलाफ कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन भी हुए। खासकर पीएम मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में बुनकरों और दूसरे उद्योगों के साथ कारोबारियों ने सरकार की नीति का जमकर विरोध किया। लेकिन इसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ और सरकार बिजली के मामले में अपनी मनमानी करती रही।
इसके बाद करीब दो साल से हर घर में अडानी की कंपनी के प्रीपेड स्मार्ट मीटर जबरन लगाए जाने लगे और सरकार ने पुलिस की मौजूदगी में बिजली विभाग के कर्मचारियों से यह काम करवाना शुरू कर दिया, जिसका पहले भी काफी विरोध हुआ और अब भी हो रहा है, क्योंकि अभी स्मार्ट मीटर पूरी तरह से नहीं लग पाए हैं और यह काम अभी भी जारी है। लेकिन अब सरकार ने सारी हदें पार कर दी हैं और भारी घाटा दिखाकर बिजली विभाग को निजी हाथों में सौंपने की हरी झंडी दे दी है।
योगी सरकार शुरुआत में दक्षिणांचल और पूर्वांचल के 75 जिलों में से 42 जिलों में बिजली आपूर्ति की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को देगी और उसके बाद बाकी जिलों में भी यही तरीका अपनाया जाएगा। लेकिन हैरानी की बात यह है कि महंगी बिजली देने, जुर्माना वसूलने और 24 घंटे बिजली न देने के बावजूद पिछले 24 सालों में पावर कॉरपोरेशन और उसकी कंपनियों का बिजली घाटा 1.10 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
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