देवबंद : जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और दूसरे धड़े के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का स्वागत किया है। जिसमें राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने धार्मिक मदरसों की मान्यता रद्द करने और स्वतंत्र मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को स्कूलों में प्रवेश देने की गाइडलाइन पर रोक लगा दी है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मौलाना अरशद मदनी और मौलाना महमूद मदनी ने संयुक्त रूप से कहा कि एनसीपीसीआर के चेयरमैन प्रियंक कानूनगो के हालिया बयानों और कार्यों की आलोचना करते हुए ऐसा लगता है कि उन्होंने तथ्यों से आंखें मूंद ली हैं।
एक तरफ वह इस्लामिक किताबों के पाठ्यक्रम पर आपत्ति जताते हैं, जिसे कुछ लोग अपनी राय में सही मान सकते हैं, हालांकि सच्चाई इसके विपरीत है।अगर वह बैठकर इस विषय पर बात करेंगे तो निश्चित रूप से संतुष्ट होंगे, लेकिन उनका रवैया आक्रामक और एकतरफा नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि यह समझ से परे है कि वह आधुनिक शिक्षा के हमारे प्रयासों की आलोचना क्यों कर रहे हैं, जबकि जमीयत लगातार शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही है। हमारे प्रयासों से ये बच्चे 10वीं और 12वीं कर रहे हैं। लेकिन एनसीपीसीआर के चेयरमैन हमारे इन प्रयासों का भी विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मदरसे न केवल सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में बल्कि समाज के शैक्षिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक मदरसे देश के संविधान के अनुसार चलते हैं। पिछले पांच सौ सालों से इस देश में मदरसा व्यवस्था चल रही है। मौलाना मदनी ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि हमारा संघर्ष जारी रहेगा। Deoband News