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Western UP Election : लोकसभा से लेकर विधानसभा तक के चुनावों में उत्तर प्रदेश पर पूरे देश की नजर रहती है, लेकिन उत्तर प्रदेश की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर रहती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उत्तर प्रदेश की इस बेल्ट में चुनावों का जो रुख रहता है, तकरीबन वही रुख पूरे उत्तर प्रदेश का रहता है। हरित क्षेत्र और चीनी बेल्ट के नाम से प्रसिद्ध पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी दंगल का नजारा ही कुछ ऐसा होता है कि इस इलाके के वोटरों को साधने में हर नेता लगा रहता है।
क्योंकि मुद्दों पर वोटिंग करने वाले सबसे ज्यादा लोग इसी बेल्ट में रहते हैं। लेकिन फिर भी इस बेल्ट के लोग अभी तक जातिवाद और धर्मवाद से ऊपर उठकर आज तक वोटिंग नहीं कर सके हैं। इस बार भी प्रथम चरण के 19 अप्रैल और द्वितीय चरण के 26 अप्रैल को भी ऐसा ही कुछ हुआ है कि तमाम मुद्दे होने के बावजूद कुछ वोटर या कहें कि ज्यादातर वोटर जातिवाद और धर्मवाद से ऊपर उठकर वोटिंग करने को राजी नहीं हो पाये। Western UP Election
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बहरहाल, अगर जातिगत आधार पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनाव पर नजर डालें, तो यहां की कई लोकसभा सीटें जातिगत समीकरण में उलझी हुई नजर आती हैं। जातिगत आधार पर वोटरों को साधने के चलते ही ज्यादातर पार्टियों ने कहीं-कहीं तो एक ही जाति के लोगों को खड़ा कर दिया जाता है। इसी के चलते तकरीबन सभी प्रमुख पार्टियों में इस बार कड़ा मुकाबला होने के आसार नजर आते रहे हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति के जमीनी जानकार और स्थानीय लोगों का कहना है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2017 और 2022 तक के विधानसभा चुनावों तक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकांश सीटें भाजपा ने जीती हैं। हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन ने बिजनौर, नगीना और सहारनपुर जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर जीत हासिल की थी। Western UP Election
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इस बार इन दोनों में गठबंधन नहीं है और जयंत चौधरी अपनी पार्टी आरएलडी का एनडीए से गठजोड़ कर चुके हैं। लेकिन इतने पर भी पिछली बार भाजपा द्वारा जीती हुई कई सीटों पर विपक्षी पार्टियां कड़ी टक्कर देती नजर आ रही हैं, खास तौर पर मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर और मेरठ की लोकसभा सीटों पर भाजपा, बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला होता दिख रहा है।
दरअसल, पिछले चुनावों में भाजपा ने हिंदू कार्ड खेलकर चुनावों में जीत हासिल की है, लेकिन इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा भी हिंदू कार्ड खेल दिया हैं। इस इलाके में राम मंदिर निर्माण का जादू भी भाजपा के लिए बहुत बड़ा कोई जादू नहीं दिखा पाया, लेकिन जातिवाद का पत्ता खूब चला। लेकिन भाजपा की मुश्किल ये है कि उसके द्वारा खड़े किए गए कई उम्मीदवारों के सामने सपा और कहीं-कहीं बसपा ने भी उसी जाति के उम्मीदवार मैदान में उतार दिए, जिस जाति के उम्मीदवार भाजपा ने उतारे थे। Western UP Election
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दूसरी तरफ मुस्लिम वोटर पूरी तरह खामोश रहते हुए मतदान की तारीख का इंतजार करते रहे। पहले चरण के मतदान में देखा गया कि हिंदू बाहुल्य क्षेत्र में जहां लगभग 50 फ़ीसदी वही मुस्लिम आबादी वाले भूतों पर 60 फ़ीसदी से अधिक मतदान हुआ। राजनीति जानकारों का कहना है कि अगर हिंदू वोटर बंटा होगा और मुसलमान सपा या बसपा के साथ चला गया होगा, तो भाजपा को पिछली बार की जीती हुई सीटें बचाना भी मुश्किल होगा, उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतना तो दूर की बात है।
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हालांकि भाजपा के पास मुसलमानों को छोड़कर अन्य सभी जातियों को साधने के लिए अपने सभी बड़े चेहरों के दम पर वो जीतने की सोच रही है। पहले कुछ राजनीतिक कह रहे थे कि मुस्लिम वोटरों को काटने के लिए भाजपा ओवैसी जैसे लोगों का सहारा ले सकती है, जैसा कि उसने पिछले चुनावों में भी किया था। लेकिन इस बार ओवैसी पश्चिम उत्तर प्रदेश से नदारद ही रहे। अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातियों की बात करें, तो यहां जाट, मुस्लिम, ठाकुर, गुज्जर, त्यागी, सैनी, प्रजापति और कई पिछड़ी जातियों समेत कई दलित जातियां रहती हैं। Western UP Election
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जयंत चौधरी के एनडीए का हिस्सा बनने के बाद भाजपा को जाट समाज से फिर उम्मीदें थीं। लेकिन रालोद से गठबंधन के बावजूद जाटों से की गई वायदा खिलाफी और किसानों की मांगें मानने की जगह उनकी आवाज को कुचलने की कोशिश से भाजपा के प्रति नाराजगी की बर्फ पूरी तरह नहीं पिघल पाई। लेकिन भाजपा ने इस नाराजगी को कम करने के लिए उत्तर प्रदेश और केंद्र की मोदी सरकार में जाट नेताओं को साधने की कोशिश में आरएलडी को भी साथ लिया, लेकिन नतीजा सीफर ही रहा।
बहरहाल, अगर हम मुजफ्फरनगर की लोकसभा सीट की बात करें, तो यहां से बसपा ने दलित और प्रजापति वोट बैंक का समीकरण साधने की कोशिश करते हुए यहां से दारा सिंह प्रजापति को अपनी तरफ से मैदान में उतारा है, जिससे भाजपा के प्रजापति जाति के कोर वोट बैंक में सेंध लगने की उम्मीद है। इस सीट पर प्रजापति वोटर बड़ी संख्या में हैं और दलित भी काफी हैं। Western UP Election
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सपा ने बसपा से भी एक कदम आगे बढ़ते हुए भाजपा के उम्मीदवार और दो बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के मुकाबले में हरेन्द्र मलिक को मैदान में उतारकर भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी। अगर 20 फीसदी जाट वोटरो ने भी सपा यानि हरेन्द्र मलिक को कुछ पिछड़ों के साथ-साथ जाट, गुज्जर और मुस्लिमो सपा को वोट दिया हैं, तो भाजपा का जीत पाना मुश्किल हो जाएगा।
इसी प्रकार से बागपत की लोकसभा सीट पर आरएलडी-भाजपा गठबंधन की तरफ से आरएलडी ने जाट नेता डा. राजकुमार सांगवान को मैदान में उतारा हुआ है। लेकिन सपा-कांग्रेस गठबंधन की तरफ से सपा ने ब्राह्मण कार्ड खेल कर अमरपाल शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया। उधर बसपा ने भाजपा से खिलाफ हो चुकी गुर्जर बिरादरी को साधने की कोशिश करते हुए गुर्जर नेता प्रवीण बैंसला को मैदान में उतारा। बागपत में करीब 28 फीसदी तो मुस्लिम वोटर ही हैं और करीब 22 फीसदी जाट वोटर हैं। Western UP Election
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ऐसे में यहां भी सपा रालोद-भाजपा पर भारी पड़ सकती है। इसके अलावा करीब 10 फीसदी गुर्जर और 5-6 फीसदी दलित वोटर हैं। चौधरी चरण सिंह, चौधरी अजीत सिंह और चौधरी की परंपरागत सीट बागपत पर भी भाजपा-रालोद को विपक्षी पार्टियों से कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। इसलिए यहां पर रालोद ने जाटों के अलावा ब्राह्मण और वैश्य वोटरों को साधने कोशिश की। अब इसमें कितनी सफलता मिलेगी, यह तो परिणाम घोषित होने के बाद 4 जून को ही पता चलेगा।
पश्चिमी यूपी की एक और महत्वपूर्ण लोकसभा सीट कैराना पर भी रालोद-भाजपा, सपा और बसपा में कड़ा मुकाबला नजर आ रहा है। इस सीट पर भाजपा ने जहां गुर्जर नेता प्रदीप चौधरी दुबारा मैदान में उतारा, तो वहीं सपा ने हसन परिवार से इकरा हसन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। लेकिन बसपा ने यहां भी भाजपा के वोटों की काट का तोड़ निकालने की कोशिश करते हुए ठाकुर जाति के नेता श्रीपाल राणा को उम्मीदवार बनाया। Western UP Election
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बिजनौर लोकसभा सीट पर आरएलडी-भाजपा गठबंधन की तरफ से आरएलडी ने गुर्जर नेता और मीरापुर से विधायक चंदन चौहान को टिकट दिया। चंदन चौहान मीरापुर यहां से रालोद के विधायक हैं। लेकिन बसपा ने जाट-दलित और ओबीसी को साधने की कोशिश करते हुए जाट समाज से विजेन्द्र सिंह को बिजनौर से मैदान में उतारा। ये सीट साल 2019 में भी बसपा के खाते में गई थी। वहीं सपा ने बिजनौर लोकसभा सीट पर नूरपुर सीट से सपा विधायक रामअवतार सैनी के बेटे दीपक सैनी को मैदान में उतारकर जाटों समेत कई ओबीसी जातियों को साधने का दांव खेला।
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इसी प्रकार से मेरठ लोकसभा सीट पर भाजपा ने वैश्य चेहरा रामायण में राम का किरदार निभाने वाले कलाकार अरुण गोविल को मैदान में उतारकर जबरदस्त हिंदू कार्ड खेला। लेकिन सपा ने भी इस कार्ड की काट के लिए पहले यहां के जमीनी गुर्जर नेता अतुल प्रधान को टिकट लेकिन बाद में पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी सुनीता वर्मा को लोकसभा उम्मीदवार बनाया। इसी प्रकार से सहारनपुर सीट से जहां भाजपा ने राघव लखनपाल शर्मा को मैदान में उतारा, तो वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन की तरफ से इमरान मसूद और बसपा की तरफ से माजिद अली मैदान में रहे। Western UP Election
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दरअसल सहारनपुर में मुस्लिम वोटरो की संख्या अच्छी खासी है। इसलिए भाजपा मानकर चल रही थी कि मुस्लिम वोटरों में बंटवारा होगा, लेकिन मतदान से तीन रोज पहले ही जुम्मे की नमाज में मुसलमानो द्वारा इस बात का निर्णय लेना कि वोटो में बटवारा ना हो इसलिए कांग्रेस-सपा प्रत्याशी इमरान मसूद के हक में फैसला दिए जाने से भाजपा के लिए मुश्किल हाथ खड़ी होती दिख रही है। बहरहाल, देखना है कि किस सीट पर किसकी जीत होगी। हालांकि सभी पार्टियां अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। Western UP Election