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Political News : कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती, क्या केंद्र की सत्ता में लौट पाएगी कांग्रेस ?

Political News : कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती, क्या केंद्र की सत्ता में लौट पाएगी कांग्रेस ?

Published By Roshan Lal Saini

Political News : देश की सबसे पुरानी पार्टी, जो कभी पूरे देश पर एकछत्र शासन किया करती थी और उस समय लगता ही नहीं था कि यही कांग्रेस कभी अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ने की स्थिति में होगी। इससे पहले हम आगे बात करें, सवाल ये है कि क्या कांग्रेस अपना राष्ट्रीय अस्तित्व बचाकर केंद्र की सत्ता में लौट सकेगी या फिर भाजपा अपने कांग्रेस मुक्त भारत एजेंडे में सफल हो जाएगी?

क्योंकि कांग्रेस बहुत कुछ खोने के बाद अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में लगी है, जहां पर से वो करीब तीन दशक पहले उखड़ चुकी थी। कांग्रेस जानती है कि जब तक उत्तर प्रदेश से उसे रास्ता नहीं मिलेगा, तब तक वो केंद्र की सत्ता तक नहीं पहुंच सकेगी और यही सोचकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसकी उम्मीदों पर पानी फिरने के बाद अब उसे उत्तर प्रदेश से एक उम्मीद है, जिसके चलते उसने समाजवादी पार्टी से भी हाथ मिलाने से भी परहेज नहीं किया। Political News

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दरअसल, दो महीने के भीतर होने वाले ये 2024 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए ही नहीं, बल्कि बाकी राजनीतिक पार्टियों के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। एक तरफ भाजपा के लिए ये चुनाव उसके सर्वस्व भले या सर्वस्व बुरे का फैसला करेंगे, तो दूसरी पार्टियों के लिए, खास तौर पर नेशनल पार्टियों और उनमें भी कांग्रेस के लिए भी ऐसा ही कुछ समझिए। क्योंकि अगर इस बार के लोकसभा चुनावों में भाजपा की केंद्र में वापसी होती है, तो दूसरी सभी पार्टियों के लिए और बड़ी मुश्किल खड़ी होगी और उन्हें अपना अस्तित्व बचाना भी मुश्किल होगा।

पिछले कई सालों से पहले ही उन्हें ईडी, सीबीआई और इनकमटैक्स वालों ने घेरकर रखा हुआ है, जिसमें कई बड़े नेताओं को अभी भी जेल भेजे जाने की तैयारी है। वहीं अगर भाजपा यह चुनाव अगर हार गई, जिसकी संभावना कम ही लगती है, तो फिर भाजपा के लिए भी वही सब कुछ देखना पड़ सकता है, जो आज दूसरी विपक्षी पार्टियों को देखना पड़ रहा है। भाजपा को यही डर है, इसलिए वह इस लोकसभा चुनाव को साम, दाम, दंड और भेद के हर तरीके को अपनाकर किसी भी हाल में ये चुनाव जीतना चाहेगी। Political News

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बहरहाल, कांग्रेस को अगर अपनी खोई हुई ताकत को वापस पाना है, तो उसे अपना अस्तित्व बचाने की जंग पहले लड़नी होगी, जिसके लिए राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहे हैं। हालांकि कांग्रेस का काम सिर्फ एक यात्रा भर से नहीं चलने वाला, उसे ग्राउंड पर उतरकर अपनी जड़ें मजबूत करनी होंगी और साथ ही साथ चुनाव में जीत की जमीन तैयार करनी होगी। चुनावों में हर बूथ की निगरानी करनी होगी और ईवीएम से लेकर चुनाव कराने वाले अफसरों की गतिविधियों पर नजर रखनी होगी। इसके लिए कांग्रेस को सबसे पहले अपनी परंपरागत सीटें अमेठी को वापस हासिल करना होगा, जो कि पिछले लोकसभा चुनावों से भाजपा की झोली में चली गई है। इसके साथ ही कांग्रेस को रायबरेली में भी खुद को मजबूत करते हुए इस जिले की सभी सीटों को वापस से हासिल करना होगा। ये सीटें फिलहाल कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं, जिन्हें पाने के लिए कांग्रेस में कहीं न कहीं रणनीति जरूर तैयार की जा रही होगी। Political News

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लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के साथ-साथ कांग्रेस को अपनी बची हुई राज्य सरकारों को भी बचाने की कोशिश करनी होगी। क्योंकि अभी हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक प्रदेश में ऑप्रेशन लोटस की कोशिश हुई थी। हालांकि कांग्रेस ने इन दोनों राज्यों में अपनी सरकार को तो बचा लिया, लेकिन हिमाचल प्रदेश में अपने छह विधायकों को भाजपा के पाले में वोट करने से नहीं रोक सकी और यह स्थिति उसकी कमजोर होती हालत को काफी हद तक दिखाती है। हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी को उन्हीं के छह विधायकों  ने धोखा देकर हरा दिया और कांग्रेस के 40 विधायक होते हुए भी भाजपा के हर्ष महाजन की जीत हुई। Political News

बहरहाल, अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें, तो कांग्रेस ने इस बड़े प्रदेश और केंद्र की सत्ता तक पहुंचने के दरवाजे कहे जाने वाले राज्य में समाजवादी पार्टी यानि सपा से हाथ जिस तरीके से मिलाया है, उससे लगता है कि कांग्रेस की स्थिति में सुधार होगा। आपको याद होगा कि साल 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने सपा से हाथ मिलाकर दो युवाओं की जोड़ी यानि राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी बताते हुए चुनाव मैदान में उतरकर बड़ी जीत की उम्मीद की थी, लेकिन ये जोड़ी उस समय नहीं चल सकी। हालांकि इस बार उत्तर प्रदेश का माहौल बदला हुआ है, जो कहीं न कहीं भाजपा के खिलाफ दिख रहा है।

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जो कि बुलडोजर बाबा की सरकार के नाम से जानी जाती है, के बुलडोजर ने कई लोगों को इस कदर उसके खिलाफ खड़ा किया है कि वो किसी भी हाल में अब इस प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं चाहते। इसी बीच उत्तर प्रदेश में बेरोजगारों और पेपर लीक से परेशान युवाओं ने आंदोलन छेड़ दिया है, जिनके चलते योगी सरकार हैरान-परेशान है। कांग्रेस ने इन सब चीजों को अगर ठीक से लोकसभा चुनाव के दौरान भुना लिया और सपा भी इसे भुना ले गई, तो इस गठबंधन को सफलता मिल भी सकती है। और कांग्रेस इस बार जिस प्रकार से चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है, उससे लगता है कि वो न सिर्फ भाजपा की काट के लिए उसी की तरह जाति बहुल आंकड़ों के हिसाब से खेल खेलेगी, बल्कि सभी जातियों को साधने की कोशिश करेगी। Political News

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मसलन, अभी हाल ही में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से पहले ही अजय राय को प्रदेश अध्यक्ष और अविनाश पांडेय को प्रदेश का प्रभारी नियुक्त करके भाजपा से नाराज दिख रहे सवर्ण वर्ग को अपने साथ लाने का बड़ा दांव चल दिया है। इसके साथ-साथ कांग्रेस की नजर पिछड़ों और मुस्लिमों के वोट बैंक पर भी टिकी है। सपा से गठबंधन करके कांग्रेस को इसमें सफलता ही मिलेगी, क्योंकि जाहिर है कि जहां कांग्रेस के कंडीडेट खड़े होंगे, वहां पिछड़ों, खास तौर पर यादवों के साथ-साथ मुस्लिम वोट बैंक भी उसे हासिल होगा। कांग्रेस को लंबी खींचतान और कई बार की असफल बातचीत के बाद 17 सीटें उत्तर प्रदेश में मिली हैं।

इनमें से कांग्रेस की दो परंपरागत सीटें यानि अमेठी और रायबरेली की सीटें भी हैं। बाकी 15 ऐसी सीटों पर उसे जातीय आंकड़ों को साधने के साथ-साथ अपनी जमीन मजबूत करनी होगी। हालांकि ये कांग्रेस के दुर्भाग्य की बात ही है कि जिस पार्टी से मिलकर चुनाव लड़ने के लिए कभी क्षेत्रीय पार्टियां कोशिशें करती थीं, उन्हीं क्षेत्रीय पार्टियों की शर्तों पर आज कांग्रेस को चुनाव मैदान में उतरना पड़ रहा है, लेकिन इसमें कोई बुरी बात भी नहीं है, क्योंकि इस समय किसी भी हाल में देश की इस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी का लक्ष्य केंद्र की सत्ता में वापसी का होना चाहिए। Political News

अगर हम कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मिलने वाले वोट फीसदी की बात करें, तो साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां उसे 7.53 फीसदी वोट मिले थे, जिसमें से अमेठी और रायबरेली सीटों पर उसने जीत हासिल कर ली थी। लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में  कांग्रेस को करीब 6.36 फीसदी ही वोट प्रदेश में हासिल हुए। हाल ये हुआ कि अमेठी सीट से राहुल गांधी हार गए और भाजपा के टिकट पर स्मृति ईरानी यहां से जीत गईं, लेकिन अब माना जा रहा है कि स्मृति ईरानी से वहां के लोग काफी नाराज हैं और वो इस क्षेत्र में कांग्रेस की वापसी चाहते हैं। हालांकि ये मैं नहीं कह रहा हूं, ये अब तक की वहां की जनता से मीडिया और यूट्यूब चैनल वालों की बातचीत सामने आने से मालूम होता है। अगर इससे पहले के लोकसभा चुनावों में जाएं, तो साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 21 सीटें जीती थीं, और वहीं साल 2004 में उसे 9 सीटों पर जीत मिली। लेकिन साल 2014 में अचानक ये ग्राफ गिरा और न सिर्फ लोकसभा चुनाव, बल्कि विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के वोट बैंक का ग्राफ गिरा। Political News

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बहरहाल, आगामी लोकसभा चुनाव अगर कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं, तो भाजपा के लिए भी ये चुनाव उतने आसान नहीं हैं, जितने कि साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव थे। इस वजह से इस लोकसभा चुनाव में जीत के लिए जितनी ताकत कांग्रेस लगाएगी, उससे कहीं ज्यादा ताकत भाजपा लगाएगी और इसका अंदाजा करीब डेढ़ साल पहले ही हो गया था, जब गुजरात के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी थीं। कांग्रेस ने हालांकि तब उतनी मेहनत नहीं की, जितनी वो अब कर रही है, लेकिन मेरा मानना है कि कांग्रेस को अभी और मेहनत चुनाव के लिए करनी चाहिए और अपनी हर ताकत इस लोकसभा चुनाव में झोंक देनी चाहिए। क्योंकि उसे ये चुनाव जीतना जहां काफी मुश्किल है, वहीं एक हारे हुए पहलवान की तरह बाजी अपने पक्ष में भी करनी है, जिसके लिए उसे अपनी विरोधी पार्टी से दुगुनी ताकत लगानी होगी। Political News

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दरअसल, हिंदुस्तान में बहुत सी पार्टियां हैं और उनके सहयोग से संसदीय लोकतंत्र की गरिमा भी जिंदा है, लेकिन अब बात इस लोकतंत्र को बचाने की भी है, जिसे अभी भी समय रहते अगर कांग्रेस ने बचाने की कोशिश नहीं की, चाहे उसके लिए छोटी क्षेत्रीय पार्टियों की शर्तों पर उन्हें साथ लेना पड़े, तो फिर आने वाले समय में इस लोकतंत्र को बचाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी हो जाएगा। क्योंकि अब नेशनल राजनीतिक पार्टियों को अपना अस्तित्व बचाना एक चुनौती है, और इन पार्टियों को अपना अस्तित्व बचाने के साथ-साथ अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बचाए रखना आने वाले समय में और भी मुश्किल होगा।

इंडिया गठबंधन की नींव सिर्फ भाजपा को सत्ता से उतार फेंकने के लिए नहीं हुआ था, बल्कि सभी पार्टियों के सामने उनके अपने अस्तित्व का संकट भी था, जिसके चलते करीब 80 फीसदी ताकतवर विपक्षी पार्टियां एक बैनर के नीचे इक्टठी हुईं, लेकिन इस गठबंधन में दरार पड़ने लगी है, जिसे बचाने की कोशिश कांग्रेस को ही करनी होगी। आजाद हिंदुस्तान में नेशनल राजनीतिक पार्टियों के बनने बिगड़ने का खेल देखें, तो साल 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में पूरे देश में 14 राष्ट्रीय पार्टियां मैदान में थीं, लेकिन साल 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में महज छह नेशनल पार्टियां ही मैदान में होंगी। और हो सकता है कि इसके बाद अगर अगले लोकसभा चुनाव साल 2029 में हुए, तो इतनी नेशनल पार्टियां भी मैदान में न दिखें। Political News

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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