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Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims : किसान फसल बीमा क्लेम से रह जाते हैं वंचित, जातिवाद में बंटने का फायदा उठा लेते हैं नौकरशाह

Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims : किसान फसल बीमा क्लेम से रह जाते हैं वंचित, जातिवाद में बंटने का फायदा उठा लेते हैं नौकरशाह

Published By Roshan Lal Saini

Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims : देश के किसानों को उनका हज़ारों करोड़ का रिकॉर्ड बीमा क्लेम मिल सकता है। बशर्ते वें जातिवाद और क्षेत्रवाद में न फंसकर सभी किसान सिर्फ किसान होने के नाते इकट्ठे होकर अपना बीमा क्लेम सरकार और बीमा कंपनियों से मांगें, स्थानीय जिला प्रशासन पर दबाव बनाएं और इकट्ठे होकर अपनी लड़ाई लड़ें। आज पूरे देश में जाटों के साथ-साथ गुज्जर, यादव, राजपूत, मेघवाल, माली, मुसलमान, ब्राह्मण आदि भी इस संघर्ष में साथ हों और अपने को सिर्फ और सिर्फ किसान समझकर ही एकजुट रहें। वैसे भी किसानों की भलाई ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा, गरीब-अमीर का भेदभाव छोड़कर एकजुट होने में ही है। क्योंकि जब तक किसान बंटा रहेगा, उसका शोषण हर तरह से होता रहेगा।

Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

बीमा कंपनियां किसानों को बीमा न देना पड़े, इसके लिए कानूनी दांव पेंच के अलावा क्षेत्रवाद और जातिवाद में बंटे होने का फायदा उठाती हैं। जाहिर है कि जब तक तमाम मतभेद और जातिवाद को भूलकर किस एक साथ नहीं आएंगे, तब तक इसी प्रकार अपना और अपनी फसलों का नुकसान उठाते रहेंगे। स्थानीय प्रशासन भी तब तक उनके दबाव में नहीं आएगा, जब तक वह इकट्ठा होकर अपनी लड़ाई नहीं लड़ेंगे। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

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दरअसल, देश के सैकड़ों गांवों में कभी विकास के नाम पर, तो कभी किसी ईवेंट के नाम पर भी फसलों की कटाई या उनको रौंधने की खबरें हमारे सामने आती रहती हैं, जिससे किसानों को भारी नुक़सान हो जाता है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं- सूखा, बाढ़, आंधी-तूफान के अलावा जंगली जानवरों के द्वारा भी किसानों को बड़ा नुकसान होता है। मसलन, इस बार साठ दिन बारिश नहीं हुई थी और कपास, मूंग, ग्वार आदि का उत्पादन बहुत कम हुआ है। लेकिन किसानों को बीमा कंपनियां उनकी फसल के बर्बाद होने के बावजूद भी बीमा क्लेम का पैसा नहीं देना चाहती हैं। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

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यह क्लेम तभी मिलेगा, जब ज़िला कलक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी बने और किसान हित में फसल कटाई प्रयोग के आधार पर क्लेम तय करके भेजे। इसके अलावा बीमा कंपनी की चाल में किसान न फंसकर सीधे-सीधे क्लेम का पैसा मांगें। मेरा मानना है कि जब किसान राजनेताओं की बजाय अपने परिवारों की चिंता करने लगेंगे और अनुशासित, ज़िम्मेदार और संगठित होगें तो काफ़ी हद तक इस मामले में सफ़लता मिल सकेगी। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

किसानों को बीमा क्लेम ना मिलने में बीमा कंपनियों और सरकारी कर्मचारियों को मिली भगत होने का एक सबसे बड़ा उदाहरण पिछले साल सामने आया था। दरअसल जब राजस्थान के जिले बाड़मेर के किसान भाईयों के खाते में 20 पैसे, 25 पैसे का फ़सल बीमा क्लेम आया तो उस पर सरकार की बहुत किरकरी हुई और कई समाचार पत्रों, टीवी चैनलों में खबर चली कि यह किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। उसके बाद उसे क्षेत्र के किसान टेंट गाड़कर बैठे, तो प्रशासन पर दबाव बना और कुछ ही समय में करीब 500 करोड़ रुपए का फसल बीमा क्लेम किसानों को मिल सका। यह घटना बताती है कि किसानों में एकता होना बहुत जरूरी है। और अगर ऐसा नहीं होता है, तो किसानों के साथ व्यापारियों को भारी नुक़सान होगा, क्योंकि एक हज़ार करोड़ की रक़म कम नहीं हुआ करती है। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

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मेरा मानना है कि आज देश के किसानों की जो दशा है, उसके पीछे कहीं न कहीं किसान भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि किसानों ने पोंगा पंडितों, मौलवियों के बहकावे में आकर खुद की पहचान किसान होने से पहले जाति से जोड़ ली है, जिसके चलते वो आपस में बंटे हुए हैं और सूदखोरों, दलालों और सरकार में बैठे कुछ लालची और बेईमान नेताओं की होशियारी का शिकार हो रहे हैं। इस फूट के चलते ही किसानों को न तो अपनी फसलों का सही भाव मिल पाता है और न ही उनके पास इतना पैसा जमा हो पाता है कि वो अपना घर भी ठीक से चला सकें। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

जाहिर सी बात है कि अगर किसान के पास पैसा आएगा, तो वो पैसा बाज़ार में ही जाएगा। और अगर पैसा नहीं होगा, तो किसानों की गरीबी और अभाव भरी जिंदगी का खामियाजा उनके पढ़े-लिखे पुत्र-पुत्रियों को भी भुगतना होगा, क्योंकि उनके आगे भी कोई चारा नहीं होगा। जब किसानों के पास पैसा नहीं होगा, तो अपने बच्चों की पढ़ाई और अन्य खर्चे करने की सामर्थ्य उनमें नहीं होगी और किसान मां-बाप बच्चों के सामने हिचकेंगे, शर्मिंदगी महसूस करेंगे, क्योंकि फसल में कुछ बचा नहीं होगा, वो सच में बर्बाद हो चुकी और बीमा कंपनियां उनके क्लेम का पैसा दबाकर बैठ गई हैं। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

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कई किसान ऐसी समस्याओं के चलते आत्महत्या तक कर लेते हैं। लेकिन अगर फसल बर्बाद होने के बाद बीमा क्लेम के हज़ारों लाखों रुपये खाते में आएंगे, तो सब किसानों का जीवन कुछ समय सरल हो जाएगा। बैंकों का ब्याज और कर्जा भी कम हो जाएगा। ये देखकर बड़ा दुख हुआ कि साल 2021 में बाड़मेर और चूरु के किसानों के खरीफ की फसल के पांच सौ करोड़ रुपया कंपनियां डकार गई थीं। लेकिन जिन लोगों ने उनके ख़िलाफ़ आंदोलन किया, उनको जनता ने चुनाव में नकार दिया। मैं किस भाषा में उन किसानों को यह बात समझाऊँ, जो धर्म और जाति की अफीम खाकर मस्त होकर चालाक राजनीतिक लोगों के बहकावे में आकर उनके पाले में वोटिंग करके पांच साल तक परेशान रहते हैं। लेकिन मैंने चुनाव में उनके धर्म-जाति और राजनीतिक पार्टी के नशे को देखा है। वो बावले होकर बिना मुद्दों के इसके या उसके पीछे पागल हुए जाते हैं। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

अब पांच साल वही किसान छाती कूटें, तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। हालांकि ऐसे किसानों के चक्कर में वो किसान भी पिस जाते हैं, जो जाति-धर्म के चक्कर में न आकर सिर्फ देश और देश की तरक्की के बारे में सोचते हैं और चुनावों के दौरान समझदारी से काम लेते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर सिर्फ देश भर के किसान एकजुट हो जाएं, तो केंद्र और राज्यों में किस प्रकार की सरकार बनेगी, ये वो बड़े आराम से तय कर सकते हैं और फिर किसान परेशान नहीं रहेंगे, बल्कि उनका दबाव पूरे पांच साल चुनी हुई सरकार पर बना रहेगा। लेकिन किसानों को धर्म-जाति से बाहर आकर शपथ लेनी पड़ेगी कि हम अपना किसान धर्म निभाएंगे और देश हित में लोगों के विकास के हित में अपना काम जारी रखेंगे। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

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बहरहाल, साल 2016 में किसानों के हितों की बात कहकर केंद्र की मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) की शुरूआत की गई थी और उसका दायरा भी सरकार द्वारा बढ़ाया जा रहा है, लेकिन इस योजना के तहत किसानों को उनकी फसल के नुकसान का क्लेम नहीं मिल पाता। इसका मतलब बीमा कंपनियों ने किसानों से फसल बीमा के नाम पर अपनी तिजोरियां भरने के लिए पैसा लेना शुरू कर दिया है। हालांकि पीएमएफबीवाई के तहत किसानों को कुल प्रीमियम की 1.5 से 5 फीसदी रकम ही चुकानी पड़ती है, जबकि शेष राशि सरकार जमा करने की बात सरकार ने कही है। केंद्र की मोदी सरकार का दावा है कि कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार 2024 में अपना खजाना खोलने की  योजना बनाई है, लेकिन कौन जाने कि ये चुनावी जुमला ही हो और किसानों को सिर्फ दिलासा देने के लिए हो। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

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मोदी सरकार कह चुकी है कि किसानों को किसान सम्मान निधि 6 हजार सालाना की जगह 9 हजार सालाना राशि देगी और फसल बीमा का दायरा भी बढ़ाएगी। लेकिन मैं ये कहना चाहता हूं कि किसानों को ये सब देने से बेहतर है कि उनकी फसलों के उचित दाम उन्हें मिलें, जिससे उन्हें सरकारी मदद की जरूरत न पड़े और न ही किसी से कर्जा लेने की कभी जरूरत महसूस हो। बहरहाल कहा तो रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार साल 2024-25 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए करीब 2 लाख करोड़ रुपए का आवंटन कर सकती है, जो कि 2023-24 के लिए जारी किए गए 1.44 लाख करोड़ रुपए से करीब 39 फीसदी ज्‍यादा होगा। ये अच्छी बात है, लेकिन ये अनुभव हम सभी का होगा कि विकास के नाम पर जो पैसा सरकार अपने सालाना बजट में पास करती है, उसकी बंदरबांट केंदीय मंत्रालयों से ही शुरू होकर प्रदेश, जिले और किसानों के खेतों तक पहुंच जाती है। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

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इतना ही नहीं इस बजट से विकास करने की अंतिम पंक्ति में खड़ा ठेकेदार और बीमा कंपनी का कर्मचारी तक भ्रष्टाचार करता है और जिन्हें उस पैसे से 100 फीसदी लाभ मिलना चाहिए, उन्हें 10 से 20 फीसदी लाभ बमुश्किल मिल पाता है। दरअसल किसानों को संगठित होकर ये सूरत भी बदलनी होगी और दिखाना होगा कि उनके साथ अगर ईमानदारी से सही बर्ताव नहीं किया गया यानि उनका पूरा-पूरा हक उन्हें नहीं मिला, तो वो जातिवाद और क्षेत्रवाद को भूल कर सरकार से वोट की चोट से अपना हक़ लेने के लिए किसी भी सियासी दल की सरकारें हो उसे उतारकर फेंक देंगे। Farmers Remain Deprived Of Crop Insurance Claims

(लेखक ‘दैनिक भास्कर’ के राजनीतिक संपादक हैं)

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