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Electro Bond A Fraud On Public : इलेक्ट्रॉल बांड के बहाने हो रहा जनता से धोखा, राजनितिक दलों का चंदा इकट्ठा करने का नया है इलेक्ट्रॉल बांड

Electro Bond A Fraud On Public : इलेक्ट्रॉल बांड के बहाने हो रहा जनता से धोखा, राजनितिक दलों का चंदा इकट्ठा करने का नया है इलेक्ट्रॉल बांड

Published By Roshan Lal Saini

Electro Bond A Fraud On Public : इलेक्टोरल बॉन्ड यानि चुनावी बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों की चांदी बनाने का जरिया बन चुका है। ये बॉन्ड राजनीति पार्टियों को चंदा देने का एक ऐसा नया तरीका है, जिसका खेल आम लोगों की समझ से बाहर है। अब इसकी कुछ-कुछ जानकारियां छन-छनकर बाहर आ रही हैं, जिसे लेकर एक पढ़ा-लिखा वर्ग इस चंदे की गोपनीयता को सार्वजनिक करने की मांग कर रहा है, जो कि राजनीतिक पार्टियों को खटक रहा है। हालांकि कुछ पार्टियां, जिन्हें इस बॉन्ड से बड़ा फायदा नहीं मिल रहा है, वो भी इसे सार्वजनिक करवाना चाहती हैं, ताकि चुनावी बॉन्ड का बेजा फायदा उठाने वाली पार्टियों की पोल खुल सके।

Electro Bond A Fraud On Public

दरअसल इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1 हजार रुपए से लेकर 1 करोड़ रुपए तक के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते हैं, जिनकी अवधि 15 दिनों की होती है। इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल सिर्फ़ पंजीकृत और उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को दान देने के लिए किया जा सकता है, जिन्होंने पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में पड़े कुल वोटों में से कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किए हों। इलेक्टोरल बॉन्ड को सरकार लोकसभा चुनाव के वर्ष में अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी कर सकती है। Electro Bond A Fraud On Public

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बहरहाल, आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच साल पहले इलेक्टोरल बॉन्ड लॉन्च किया गया था। यानि ये चुनावी बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी की केंद्र की मोदी सरकार ने शुरू कराया और हैरत वाली बात है कि आज भारतीय को देश की बाकी करीब 59 मान्यता प्राप्त सक्रिय राजनीतिक पार्टियों से ज्यादा चंदा मिला है। यानि इन पांच सालों में अकेले भाजपा को आधे से ज्यादा चुनावी चंदा मिला है। लेकिन कोई भी पार्टी ये बताने को तैयार नहीं है कि उसे इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कब, कितना चुनावी चंदा मिला? इसी के चलते इलेक्टोरल बॉन्ड की वैद्यता को लेकर अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है, जो कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की जनहित याचिका के तहत दायर किया है। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायाधीश जेबी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की पीठ कर रही है। Electro Bond A Fraud On Public

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को लेकर हुई सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि हकीकत में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना कॉर्पोरेट घरानों से रिश्वत लेने का एक तरीका है, जो कि राजनीतिक पार्टियों के बारे में जानकारी के नागरिकों के मौलिक अधिकार का सीधा-सीधा उल्लंघन है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला दिया और कहा कि अगर नागरिकों को उम्मीदवारों के बारे में जानने का अधिकार है, तो उन्हें निश्चित रूप से यह भी जानने का अधिकार है कि राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले लोग कौन हैं? प्रशांत भूषण ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड एक अपारदर्शी योजना है, जिसकी वजह से सिर्फ सरकार को ही पता होता है कि किस पार्टी को कितना इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा मिला, बाकी कोई पार्टी भी नहीं जान सकती कि इस बॉन्ड के जरिए किस पार्टी को कितना पैसा चंदे के रूप में मिला है? पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि जिन पार्टियों को किसी कंपनी या पूंजीपति के द्वारा चंदा दिया गया है, मौजूदा मोदी सरकार ने उन पार्टी नेताओं के साथ-साथ चंदा देने वाली कंपनियों और पूंजीपतियों के खिलाफ भी कार्रवाही की कोशिश की है। Electro Bond A Fraud On Public

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दरअसल, हिंदुस्तान में गुप्त चंदे का मामला तो बहुत पहले से उठता रहा है, लेकिन उसमें तब भी मोटा-मोटी पता चल जाता था कि किस पार्टी के पास कितना चंदा आया या पार्टी की आमदनी कितनी है, उसके पास पैसा कितना है, लेकिन जबसे इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पार्टियों को चंदा मिलने लगा है, तबसे ये गोपनीयता और ज्यादा बढ़ गई है। आज तक केंद्र की मोदी सरकार ने नहीं बताया कि भाजपा को अब तक कितना चंदा मिला है? चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते पांच वर्षों में देश की राजनीतिक पार्टियों को करीब 9 हजार 208 करोड़ 23 लाख रुपए का चंदा मिला है। Electro Bond A Fraud On Public

हालांकि मेरे ख्याल से ये जानकारी पुख्ता नहीं है और जहां तक चंदे का सवाल है ये इससे भी कई गुना ज्यादा हो सकता है। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2016 से साल 2022 के बीच के पांच सालों में कुल 6 राष्ट्रीय पार्टियों पार्टियों और करीब 24 क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए करीब 9 हजार 208 करोड़ 23 लाख रुपए चंदे के रूप में मिले। इस चंदे में से अकेले भाजपा को करीब 5 हजार 271 करोड़ 97 लाख रुपए का चंदा मिला है, जबकि कांग्रेस को 952 करोड़ 9 लाख रुपए से ज्यादा और बाकी करीब 2 हजार 983 करोड़ 36 लाख रुपए का चंदा बाकी की करीब 28 राजनीतिक पार्टियों को मिला है। ये हैरत की बात है कि इतने पर भी केंद्र की मोदी सरकार दूसरी पार्टियों के नेताओं के यहां छापेमारी कराने पर आमादा है और खुद कई बड़े और जरूरी सवालों के जवाब देने से भी साफ इंकार कर देती है, जिसमें कि पीएम केयर्स फंड की जानकारी नहीं देना भी शामिल है। Electro Bond A Fraud On Public

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बहरहाल, इलेक्टोरल बॉन्ड मामले पर इसी साल 31 अक्टूबर से सुनवाई शुरू हुई थी। हालांकि इससे एक दिन पहले ही अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह योजना राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चंदे को व्हाइट मनी के रूप में इस्तेमाल करने को बढ़ावा देती है और नागरिकों को उचित प्रतिबंधों के अधीन हुए बिना कुछ भी जानने का सामान्य अधिकार नहीं होना चाहिए। हालांकि ये बात समझ से परे है कि जो पार्टियां चुनावों में अनाप-शनाप काला धन उड़ाती हैं और जो राजनीति में आने से लेकर सत्ता में आने पर भी अपने खर्च और चंदे का हिसाब-किताब गड़बड़ रखती हैं, वो किस प्रकार से काले धन को सफेद धन में बदलेंगी? क्योंकि अभी तक जितनी भी पार्टियों की सरकारें केंद्र या राज्यों में बनी है, हमने देखा है कि सत्ता में आने वाली पार्टियां तो मजबूत हुई ही हैं, साथ ही उनके नेता, सांसद, विधायक और मंत्री सभी धन-संपत्ति में दिन दूने और रात चौगुने मजबूत हुए हैं। फिर ये किस आधार पर कहा जा रहा है कि पार्टियां चंदे के रूप में कालाधन लेकर उसे व्हाइट यानि सफेद कर रही हैं? Electro Bond A Fraud On Public

लेकिन अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी के ब्यान से साफ़ है कि केंद्र की मोदी सरकार किसी भी हाल में इस पक्ष में नहीं है कि कोई भी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिले चंदे या कहें कि कालेधन के बारे में जाने और सरकार भी ये नहीं चाहती कि इस लाभ की योजना में कोई बदलाव किया जाए। हालांकि एक महत्वपूर्ण बात अर्टानी जनरल आर, वेंकटरमणी ने साफ कर दी कि राजनीतिक पार्टियों के पास जो चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए आता है, वो कालाधन है या कहें कि एक नंबर का पैसा नहीं है। इसका मतलब ये भी हुआ कि सरकार को पता है कि किसके पास काला धन है और वो ऐसे लोगों को चंदा लेकर बख्श देती है और उनके खिलाफ कोई जांच नहीं करवाती। बल्कि उन्हें उल्टा लाभ पहुंचाती है। चुनावों में हर पार्टी कहती है कि वो कालेधन पर रोक लगाएगी। Electro Bond A Fraud On Public

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केंद्र में आने से पहले भाजपा की तरफ से भी ऐसे ही वादे किए गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो 2014 में सत्ता में आने से पहले ये तक कहा था कि उनकी सरकार केंद्र में बनते ही वो विदेशों में जमा कालाधन वापस लाएंगे। उन्होंने देश के हर नागरिक को 15-15 लाख देने का जुमला भी दिया था और ये कहा था कि उनके पास कालेधन वालों की लिस्ट है। लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि उनके सत्ता में आने से पहले जितना कालाधन स्विस बैंकों का था, उससे करीब तीन गुना कालाधन उनके करीब साढ़े नौ साल के कार्यकाल में हो चुका है और अब वो कालेधन का नाम तक नहीं लेते। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द करने की मांग करते हुए इस मामले में वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि आप (सरकार) उस जानकारी को पब्लिक डोमेन में न डालकर भ्रष्ट लेन-देन को संरक्षण दे रहे हैं। मैं एफआईआर दर्ज नहीं करा सकता, क्योंकि मुझ पर मानहानि का मुकदमा हो जाएगा। मैं अदालत नहीं जा सकता, क्योंकि मेरे पास कोई डेटा नहीं होगा। तो हम किस अदालती आदेश की बात कर रहे हैं? Electro Bond A Fraud On Public

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में इसकी क़ानूनी वैधता को लेकर सुनवाई चल रही है और इस बारे में अब आम लोग भी जानना चाहते हैं कि आखिर क्या इस तरह से राजनीतिक पार्टियों को कितना पैसा मिल रहा है? इसे पैसे से राजनीतिक पार्टियों को क्या फायदा हो रहा है और उन्हें केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक कितना फायदा पहुंचाती हैं, जिनसे उन्हें गुप्त रूप से चंदा मिलता है? जाहिर सी बात है कि बिना फायदे या लालच के कोई भी पूंजीपति या कंपनी किसी पार्टी को चंदा नहीं दे सकती। Electro Bond A Fraud On Public

सवाल ये भी है कि आज जब इलेक्टोरल बॉन्ड का मामला इतना उछल चुका है, तब क्या साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर इसका कोई उलट असर पड़ेगा? क्योंकि भाजपा ने तो साफ कर दिया है कि जी जो पैसा पार्टी के खाते में आया या नकदी के रूप में उसके पास आया, वो तो हमें खुद नहीं पता कि आया कहां से, तो हम इसके बारे में कैसे बताएं। ये तो वाहक बॉन्ड हैं। इस तरह से सैकड़ों करोड़ रुपए का गमन राजनीतिक पार्टियां साल भर में इलेक्टोरल चंदे या पार्टी चंदे के रूप में लेकर गमन कर जाती हैं और चुनावों में महंगे प्रचार से लेकर वोट खरीदने और सरकारें तोड़ने में इसका बेजा इस्तेमाल करती हैं। Electro Bond A Fraud On Public

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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