Budget 2024-25

Budget 2024-25 : बजट में किसानों पर करम करें केंद्र सरकार, उम्मीद लगाए बैठा है किसान

बजट 2024-25 : केंद्र की मोदी सरकार संसद में आगामी 23 जुलाई को वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपना बजट पेश करने जा रही है। जाहिर है कि वित्त मंत्री वही पुरानी होंगी, निर्मला सीतारमण, और बजट नए वित्त वर्ष के लिए कुछ नया होगा। क्या कुछ नया होगा? इस बजट में लोगों के हाथ कुछ लगेगा या नहीं? किसे खुशी मिलेगी और किसे गम? किस सेक्टर के लिए कितना बजट देश के विकास के लिए पेश किया जाएगा? इन सब सवालों के जवाब तो अभी किसी के पास नहीं है, लेकिन पिछले कई बजटों में देश के ज्यादातर तबकों को जिस तरह मायूसी ही हाथ लगती रही है।

इस बार उम्मीद की जा रही है कि वोट की चोट खाकर जैसे-तैसे

केंद्र की सत्ता में आई केंद्र की मोदी सरकार लोगों को राहत देगी।

इसी आशा के साथ इस बार फिर से पूरे देश की नजर इस बार

के बजट सत्र पर होगी। लेकिन इस बजट सत्र में सबसे ज्यादा

नजर देश के किसानों, गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों की होगी,

क्योंकि ये वो वर्ग हैं, जो केंद्र सरकार से महंगाई पर राहत

और रोजगार की आस लगाए बैठे हैं।

Budget 2024-25

वहीं किसानों की अगर हम बात करें, तो किसानों ने अपनी मांगें सरकार के आगे पहले ही रख दी हैं, जिनमें से ज्यादातर को पूरा करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछली बार साल 2022 में आंदोलन रोकने के लिए किसानों से ही वायदा कर चुके हैं, और अभी तक किसानों से किए गए वो वायदे उन्होंने पूरे नहीं किए हैं। इसके लिए किसान आज भी आस लगाए बैठे हैं और उन्हें इस बजट से बेरोजगार युवाओं की तरह ही उम्मीद है। दरअसल, किसानों की माग कुल मिलाकर करीब दो दर्जन हैं, जिन्हें सरकार को पूरा करना चाहिए, क्योंकि किसानों की आर्थिक हालत सुधारने का मतलब है कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार, जो कि आज भी हिंदुस्तान का सबसे बड़ा रोजगार का जरिया है और सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला माध्यम भी।

लेकिन हैरत होती है कि हमारे कृषि प्रधान देश में न सिर्फ कृषि व्यवस्था को चौपट करने की कोशिशें लगातार पिछले 5-6 दशकों से हुई हैं, बल्कि किसानों को भी उसी तरह से ट्रीट किया जाता रहा है. जिस तरह से उन पर जमींदारी के समय में गरीबी और लाचारी की खाई में धकेलने के लगातार प्रयास किए जाते थे। मेरे ख्याल से अगर हम किसानों की मांगों को भी एक बार को दरकिनार रखें, और सिर्फ इस बार के बजट की बात करें, तो भी केंद्र की मोदी सरकार की किसानों के लिए इस बजट में 7-8 अहम कदम उठाने चाहिए। इनमें से सबसे पहला तो यही है कि केंद्र की मोदी सरकार को अब देरी ना करते हुए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू कर देनी चाहिए, जिसके तहत किसानों को सी2+50 फीसदी के हिसाब से न्यूनतम सर्मथन मूल्य यानि एमएसपी दी जानी चाहिए।

जिस तरह से उन पर जमींदारी के समय में गरीबी और

लाचारी की खाई में धकेलने के लगातार प्रयास किए जाते थे।

मेरे ख्याल से अगर हम किसानों की मांगों को भी

एक बार को दरकिनार रखें, और सिर्फ इस बार के

बजट की बात करें, तो भी केंद्र की मोदी सरकार को 

किसानों के लिए इस बजट में 7-8 अहम कदम उठाने चाहिए।

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी गुणेंद्र सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार को इस बार कृषि बजट बढ़ाना चाहिए और इसे बढ़ाकर कम से कम 7.5 से 8 फीसदी कर देना चाहिए। इसके अलावा किसानों को दी जाने वाली किसान निधि, जो कि पांच सालों से सिर्फ 5 सौ रुपए महीने यानि सालाना 6 हजार रुपए ही है, महंगाई के हिसाब से कम से कम दुगुनी यानि 12 हजार रुपए सलाना होनी चाहिए। इसी प्रकार से फसल बीमा योजना में अभी दो नियम अच्छे नहीं हैं, पहला ये कि उसकी प्रीमियम का कुछ हिस्सा किसानों को भी चुकाना पड़ता है, जबकि कुछ हिस्सा राज्य सरकार को और कुछ हिस्सा केंद्र सरकार भर्ती है, अगर एक तरफ से भी प्रीमियम रुक जाए, तो किसान को आपदा में हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मिलता। इसलिए इस प्रीमियम को केंद्र और राज्य सरकार की ओर से हर हाल में भरा जाना चाहिए और कहीं से अगर प्रीमियम रुकता है, तो आपदा आने पर उरा सरकार को मुआवजे की भरपाई करनी चाहिए।

इसके अलावा किसानों का प्रीमियम माफ होना चाहिए, क्योकि हिंदुस्तान के ज्यादातर किसान कभी फसल खराब होने पर, कभी देरी से फसलों का भुगतान होने पर और कभी फसल के सही भाव न मिलने पर प्रीमियम भरने में असमर्थ रहते हैं। दूसरी इस योजना की कमी है ज्यादातर मामलों में खराब हुई फसल का मुआवजा न मिलना, जिसमें एक शर्त तो यही है कि अगर किसान की फसल 60 फीसदी से ऊपर खराब होगी, तभी मुआवजा मिलेगा, उसके बाद जो फसल खराब होने का सर्वे करने आते हैं, उनके कई नखरे रहते हैं। इस प्रकार किसानों को मुआवजा या तो मिल ही नहीं पाता या फिर उचित नहीं मिलता। इसलिए इस मामले में मुआवजा मिलना ही चाहिए, चाहे किसान की फसल कितनी भी खराब हुई हो और उसमें बीमा कंपनी को कोई बहाना बनाने का मौका नहीं होना चाहिए।

इसके अलावा इस बजट सत्र में पांचवां एक नियम ये भी पास होना चाहिए कि किसान परिवार के सभी सदस्यों का मुफ्त वीमा होना चाहिए, जिसके तहत अगर किसी सदस्य की किसी दुर्घटना में या किसी बच्चे या जवान की असमय मौत हो जाती है, तो उसे बीमा की उचित राशि मिलनी चाहिए, जिससे वो परिवार कमाऊ व्यक्ति के गुजर जाने से आर्थिक तंगी से ना गुजरे। इसी तरह से छठा निवम इस वार के बजट में ये होना चाहिए कि आवारा पशुओं की रोकथाम का इंतजाम सरकार के द्वारा किया जाना चाहिए, जिससे किसानों की जान को खतरा भी कम हो और उनकी फसलें भी बची रहें। बहरहाल, केंद्र की मोदी सरकार इस बार का बजट किस प्रकार का बनाएगी, ये तो नहीं पता, लेकिन मेरा मानना है कि उसे इस बजट को किसानों से लेकर देश के हर वर्ग के लिए लाभकारी और रोजगार देने वाला बजट पास करना चाहिए, जिससे किसी भी वर्ग को सरकार से शिकायत न रहे।

मनरेगा, पीएमएवाई और पीएम ग्रामीण सड़क योजना जैसी योजनाओं के लिए ज्यादा पैसा देने से बड़ी तादाद में ऐसे परिवारों को मदद मिल सकती है, जो खेती-बाड़ी से जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए ऐसे कदम उठाने होंगे, जिनसे खेती-बाड़ी को मौसम की मार से बचाया जा सके और उन क्षेत्रों को बढ़ावा देना होगा, जिनसे आने वाले समय में ज्यादा रोजगार पैदा हो सके। वैसे तो केंद्र की मोदी सरकार को देश की जनता ने अब गहले की तरह पसंद करना कम कर दिया है, जिसकी वजह न सिर्फ अच्छा बजट पेश नहीं होना है, बल्कि महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी और दूसरे कई मुद्दे हैं। इन दिनों महंगाई किसी से छुपी नहीं है और सरकार को इस तरह की चीजों से निपटने के लिए बजट तैयार करना चाहिए, ताकि देश का हर वर्ग इस बार के बजट से संतुष्ट हो सके।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

 

 

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