Importance of Relationships in Modernity
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Importance of Relationships in Modernity : आधुनिक युग में क्यों टूट रहे रिश्ते, जरूरतों की भाग दौड़ भरी जिंदगी में अपने हो रहे बेगाने 

Importance of Relationships in Modernity : बड़े बुजुर्गों के मुंह से बचपन से सुनते थे कि समय के साथ चलो समय निकल गया, तो फिर पछताने के अलावा कुछ और नहीं बचेगा। बड़ों और विद्वानों की ये सीख मेरे जैसे ज्यादातर लोगों को जिंदगी भर बेचैन करती रहती है और कई बार सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि आखिर समय के साथ चला कैसे जाए? कई बार तो ऐसा लगता है कि समय हमसे बहुत आगे निकल गया और हम कहीं पीछे छूट गए। और इसी उधेड़बुन में कई बार ये भी लगा कि समय के साथ चलने के चक्कर में हम अपनी जिंदगी को खुलकर अच्छी तरह जी भी नहीं सके। लेकिन सवाल ये है कि जो लोग वाकई समय के साथ चलकर दुनिया जीतने या दुनिया में कुछ बड़ा करने की कसम लेकर चले, क्या वो वाकई समय के साथ चल सके?

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दरअसल, मैंने और आपने भी न जाने कितने ही ऐसे लोगों को देखा, सुना और समझा होगा, जो समय के साथ चलने की कोशिशों में बहुत कुछ खोकर इस दुनिया से चले गए। उनका संघर्ष उन्हें बड़ी-बड़ी उंचाईयों पर भले ही ले गया हो, लेकिन उनके हाथों से बहुत कुछ छीनकर भी ले गया या ये कहें कि उनके हाथों से बहुत कुछ छिन गया या छूट गया। हालांकि ऐसा कहकर मैं किसी को कमजोर नहीं करना चाहता हालांकि मैं अपने अनुभव से यह जरूर कहना चाहता हूं कि संघर्ष से बहुत कुछ हासिल होता है। लेकिन इस संघर्ष में कई चीजें जो आज की युवा पीढी छोड़ती जा रही है, वो अगर ये युवा पीढ़ी साथ लेकर चले, तो वो उसे न सिर्फ और मजबूत बना सकती हैं, बल्कि उसे मंजिल मिलने पर उसकी खुशी को दोगुना कर सकती हैं। Importance of Relationships in Modernity

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इन चीजों में सबसे महत्वपूर्ण हैं संस्कार और रिश्ते, जिन्हें आजकल की युवा पीढ़ी समय के साथ चलने और कैरियर बनाने के चक्कर में गंवाती जा रही है। और जिन रिश्तों का उनके कैरियर में भी बड़ा योगदान होता है, उन्हीं रिश्तों को वो खत्म करके आगे बढ़ रही है। ऐसे युवाओं को कुछ ऐसे लोगों से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने अपनी जिंदगी में बड़ी शोहरत और दौलत तो हासिल की लेकिन आखिरी समय में वो इस बात के लिए तरसे कि काश उनके साथ कोई ऐसा रिश्ता होता, जो उनका अकेलापन दूर करके उन्हें ये एहसास दिला सके कि उनका भी कोई अपना इस दुनिया में है। ऐसे कई उदाहरण दुनियाभर में भरे पड़े हैं, जिन्होंने बड़ी शोहरत और दौलत हासिल तो कर ली, लेकिन बाद में उनके साथ कोई नहीं दिखा। पिछले साल दुनिया के सबसे रईस व्यक्ति बिल गेट्स का तलाक हुआ, तो उनकी दौलत किसी काम नहीं आई, सिर्फ इसके कि वो अपनी तलाक मांगने वाली बीबी को उसकी मुंह मांगी दौलत दे सकें।

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कई हस्तियां तो ऐसी रही हैं, जिनकी मौत भी अकेलेपन में हुई है। उनकी दौलत पड़ी रही और उन्हें देखने वाला, उनका हाल पूछने वाला कोई नहीं था। कई हस्तियां ऐसी भी हुई हैं, जिनकी दौलत भी आखिर में बर्बाद हो गई। इस प्रकार से उनके पास न रिश्ते बचे और न दौलत और वो अपने आखिर का समय समय को पकड़ने के चक्कर में बहुत बुरी तरह गुमनामी, गरीबी में गुजारकर दुनिया से गए। मैं दिल्ली के लुटियंस जोन में रहने वाले ऐसे कई व्यापारियों और नेताओं को जानता हूं जिनकी अपने समय में तूति बोलती थी, लेकिन जीवन के अंतिम समय में उनके साथ कोई नहीं था। मैं यहां किसी का नाम नहीं लेना चाहूंगा, लेकिन जिन लोगों ने अपनी जन्मभूमि, अपने रिश्तों या खासतौर पर मां-बाप को तब छोड़ा, जब उनके बूढ़े कंधों को उनकी जरूरत थी, तो ऐसे लोगों का भी अंत बुरा ही हुआ है। ऐसे कई उदाहरण न सिर्फ शहरों में, बल्कि गांवों में भी देखने को मिल रहे हैं।

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इसलिए आजकल की युवा पीढ़ी को मैं सिर्फ़ यही कहूंगा कि वो खूब आगे बढ़ें और तरक्की करें, माना कि जिंदगी में पैसा भी बहुत जरूरी है और बिना पैसे के जिंदगी नरक हो जाती है, लेकिन पैसे कमाने के साथ-साथ रिश्तों का भी ख्याल रखे, और खासतौर पर अपने मां-बाप को कभी न ठुकराएं, उनका दिल ना दुखाएं और उनसे कभी दुर्व्यवहार ना करें। इसी प्रकार से मां-बाप को भी मेरा यह सुझाव है कि वे अपने बच्चों को बचपन से ही रिश्तों की अहमियत समझाएं, उन्हें प्यार दें, उनकी जरूरतों को पूरा करें, लेकिन उनकी जिदों पर रोकें-टोंकें, उन्हें रिश्तों और दुनिया की अहमियत समझाएं और साथ ही साथ उन्हें इतने विश्वास में लें कि वो अपने हर काम से मां-बाप को वाकिफ कराएं। उन्हें आजादी दें, लेकिन उन्हें ऐसी भी आजादी न दें कि वो जिंदगी का रास्ता ही भटक जाएं और कुछ गलत कर बैठें। उन्हें जिंदगी जीना सिखाएं, न कि काटना। इसी प्रकार से उन्हें कैरियर बनाने के लिए प्रेरित तो करें, लेकिन उन पर जबरदस्ती का बोझ न डालें। Importance of Relationships in Modernity

क्योंकि इस जबरदस्ती के बोझ और ज्यादा लाड़ प्यार के चलते वो कई बार इतने भटक जाते हैं कि वो थोड़े से तनाव, गुस्सा या फिर दबाव में आकर कई बार आत्महत्या जैसा दुखद कदम तक उठा लेते हैं। ऐसे में मां-बाप और बच्चों, दोनों के ही हाथों से समय इस तरह निकल जाता है, जिस तरह से समय कभी उनका था ही नहीं और फिर लोग समय को ही कोसने लगते हैं। समय सबके लिए है और सबको समय का सही उपयोग भी करना चाहिए, लेकिन समय के साथ चलने के चक्कर में समय को खराब न करें, क्योंकि समय तो रेलगाड़ी से भी तेज चलने वाला होता है और हम अगर उसमें सवार हो गए, तब तो ठीक है, वर्ना अगर उसे भागकर पकड़ने की कोशिश करेंगे, तो फिर उसका अंजाम बहुत अच्छा होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। क्योंकि समय के साथ चलना आसान नहीं है। Importance of Relationships in Modernity

 

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