एएमआर वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती – राज्यपाल

चंडीगढ़, 18 मार्च। हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने प्रमुख दवा कंपनियों से आहवान करते हुए कहा कि उन्हें ‘‘एंटीमैक्रोबियल रेजिस्टेंस’’ (एएमआर) के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए विशेष रूप से एंटीबायोटिक दवाओं के नए वर्गों और वैक्सीन विकास के वैकल्पिक तरीकों से नई दवाओं की खोज करनी होगी क्योंकि रोगाणुरोधी प्रतिरोध/एएमआर वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती है तथा वर्तमान एंटीबायोटिक्स अब बेअसर हो रही हैं।
राज्यपाल नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में ‘‘एंटीमैक्रोबियल रेजिस्टेंस, नोवल ड्रग डिस्कवरी एंड वैक्सीन डेवलपमेंट: चैलेंजेज एंड ओपरचूनिटिस’’ (‘‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध, नवीन औषधि खोज और वैक्सीन विकास चुनौतियां और अवसर’’) विषय पर एसआरएम विश्वविद्यालय, दिल्ली-एनसीआर, सोनीपत द्वारा आयोजित तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित वैज्ञानिकों व साइंस जगत के लोगों को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एएमआर को वैश्विक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण खतरों में से एक के रूप में चिन्हित किया गया है। राज्यपाल ने चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि अनुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया भर में लगभग दस मिलियन मौतें एएमआर के कारण हो सकती हैं। अगर हमने इसके विरूद्ध समय रहते  कोई कार्रवाई नहीं की तो यह कोविड-19 महामारी से भी बदतर हो सकती है। हालाँकि, इस प्रयास में वैज्ञानिक बाधाओं से लेकर नियामक बाधाओं और आर्थिक विचारों तक कई चुनौतियां हैं।

दत्तात्रेय ने कहा कि एक नई दवा को बाजार में लाने पर लगभग एक अरब डॉलर का खर्च आता है और नए रोगाणुरोधी एजेंटों को विकसित करने के लिए नए यौगिकों की खोज, जीनोमिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग जैसी उन्नत तकनीकों और अंतःविषय सहयोग को बढ़ावा देने जैसे नवीन दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि एएमआर ने प्रतिरोधी रोगजनकों से निपटने के लिए नवीन दवा खोज और वैक्सीन विकास की तत्काल आवश्यकता को प्रेरित किया है। उन्होंने सभी वैज्ञानिकों से चर्चा, जानकारी सांझा और विचार-विमर्श करने और चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक सफल योजना के साथ कार्य करने का आग्रह भी किया। उन्होंने मनुष्यों में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग और कृषि तथा पशुधन में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को सीमित करने के लिए व्यवहार परिवर्तन पर भी जोर दिया और कहा कि नए रोगाणुरोधकों के अनुसंधान और विकास में निवेश के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी समय की मांग है।

 उन्होंने बताया कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके लिए  एंटीबायोटिक उपयोग को अनुकूलित करते हुए  रोगाणुरोधी प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने, प्रतिरोधी रोगजनकों के प्रसार को कम करने के लिए संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण उपायों को लागू करने तथा विश्व स्तर पर रोगाणुरोधी प्रतिरोध रुझानों को ट्रैक करने के लिए निगरानी प्रणालियों में निवेश करना आवश्यक है। श्री दत्तात्रेय ने बल देते हुए कहा कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध को रोकने के लिए जिम्मेदार रोगाणुरोधी उपयोग के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों, नीति निर्माताओं तथा आम जनता को शिक्षित करना अति महत्वपूर्ण है।

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