Loksabha Election

Loksabha Election : आन्दोलनों और विरोधी आवाज़ों को कुचलकर सत्ता में वापसी के सपने देख रही भाजपा ?

Loksabha Election : आन्दोलनों और विरोधी आवाज़ों को कुचलकर सत्ता में वापसी के सपने देख रही भाजपा ?

Published By Special Desk News14Today..

Loksabha Election : इस बार लोकसभा चुनावों के लिए पहले चरण की वोटिंग अप्रैल को होनी है और केंद्र की मोदी सरकार समेत पूरी भाजपा लॉबी 400 से ज़्यादा सीटें जीतने की उधेड़बुन में लगी है। लेकिन ऐसा लगता है कि ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा देकर भाजपा इतनी सीटों को जीतना नहीं, बल्कि छीनना चाहती है। वर्ना पूरे हिन्दुस्तान अलग-अलग तबक्ने के लोगों के इतने विरोध पर कोई भी सरकार न सिर्फ़ घबरा जाती, बल्कि नाराज़ लोगों को मनाने की कोशिश करती और उनकी जायज़ माँगों को भी मान लेती।

लेकिन पूरे देश में तमाम मुद्दों पर ख़िलाफ़त के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं, बल्कि भाजपा का एक कार्यकर्ता तक झुकने को तैयार नहीं है। इतना ही नहीं, केंद्र की मोदी सरकार हर विरोध-प्रदर्शन को, हर आन्दोलन को और उसकी नीतियों की ख़िलाफ़त करने वाले आदमी को किसी मद में डूबे हुए हाथी की कुचलते हुए तीसरी बार केंद्र की सत्ता में आने के लिए लालायित है। Loksabha Election

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दरअसल अगर हम केंद्र की मोदी सरकार के पिछले करीब 10 साल के दोनों कार्यकालों पर नज़र डालें, तो पता चलता है कि उसने किसी भी आन्दोलन को, किसी भी विरोध-प्रदर्शन को और किसी भी मुखालिफ़त को कुचलने से परहेज़ नहीं किया है। चाहे वो वन रैंक वन पेंशन की माँग को लेकर पूर्व सैनिकों द्वारा किया गया आन्दोलन हो, चाहे किसानों का आन्दोलन हो, चाहे देश की बेटियों और महिला पहलवानों का आन्दोलन हो, चाहे बेरोज़गार युवाओं द्वारा नौकरी की माँग को लेकर किया गया कोई प्रदर्शन हो, चाहे आँगनबाड़ी केंद्रों की महिला कर्मचारियों का आन्दोलन हो, चाहे ईवीएम के खिलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हो, या फिर चाहे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से लेकर पूर्वोत्तर के 19 राज्यों के आन्दोलन हों। इस प्रकार से केंद्र की मोदी सरकार के बीते 10 वर्षों के कार्यकाल में देखें, तो क़रीब बीसियों तरह के आन्दोलन जगह-जगह हुए; लेकिन ज़्यादातर आन्दोलनों को लोकतंत्र को कुचलने वाली इस सरकार ने या तो बुरी तरह कुचल दिया या उनको इतना समेट दिया कि उनकी आवाज़ देश-विदेश में न पहुँच सके। Loksabha Election

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इन आन्दोलनों को ख़त्म करने में बाक्ली का काम मीडिया के एक ख़ास तबक्ने और उन लोगों ने कर दिया, जिनको ऊल- जलूल कामों की देश में ठेकेदारी मिली हुई है। बहरहाल अगर हम देश में चल रहे पिछले 10-12 वर्षों के आन्दोलनों पर नज़र डालें, तो सबसे पहले हमें अन्ना आन्दोलन और निर्भया कांड के विरोध में देश भर में हुए प्रदर्शनों पर नज़र डालनी होगी, जिनके चलते यूपीए की केंद्र की सरकार चली गयी। हालाँकि उस समय की यूपीए की केंद्र सरकार ने भी इन दोनों प्रकार के आन्दोलनों को कुचलने की कोशिश की थी; लेकिन इस क़दर नहीं, जिस क़दर केंद्र की मोदी सरकार ने तमाम आन्दोलनों को कुचलने के लिए की है। Loksabha Election

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अगर हम केंद्र की सत्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद की बात करें, तो गुजरात का पटेल आन्दोलन, महाराष्ट्र का मराठा आन्दोलन, महाराष्ट्र का किसान आन्दोलन, तमिलनाडु का किसान आन्दोलन, आँगनवाड़ी आन्दोलन, अलग-अलग राज्यों में हुए शिक्षकों के आन्दोलन, बेरोज़गार युवाओं के आन्दोलन और महिला पहलवानों के आन्दोलन के अलावा देश भर में चले तमाम किसान आन्दोलन और साल 2020 में शुरू हुए किसान आन्दोलन, सबको केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों ने कुचला है। उनकी माँगों और समस्याओं को नज़रअंदाज़ किया है। और आन्दोलनकारियों, प्रदर्शनकारियों पर लाठियाँ चलवायी हैं, पानी की बौछारें करवायी हैं। Loksabha Election

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तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ हुए पहली बार के किसान आन्दोलन में बैठे किसानों पर तो हर तरह दबाव डालकर आन्दोलन खत्म करने की कोशिश की गयी और इस बार जब दोबारा केंद्र सरकार द्वारा अपने वादे पूरे न करने पर जब किसानों ने दिल्ली कूच का मन बनाया, तो उन पर हमला और तेज़ कर दिया गया। उन्हें हर तरह से नुक़सान पहुँचाने की कोशिश की गयी, जिससे दोबारा 16 किसानों की शहादत भी हो गयी। अभी भी किसानों के दिल्ली आने पर ऐसे रोक लगी हुई है, जैसे किसान अन्नदाता नहीं, बल्कि आतंकवादी हों। दिल्ली में पिछले दिनों किसानों को रोकने के लिए महीने भर से ज़्यादा समय तक धारा-144 लगाकर रखी और आज भी दिल्ली के कुछ प्रदर्शन वाली जगहों पर धारा-144 लागू है। मसलन, जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों के विरोध-प्रदर्शन को कुचलने के बाद से धारा 144 अभी तक लागू है और वहाँ पर कोई भी पीड़ित बैठकर अपनी आवाज़ नहीं उठा सकता। Loksabha Election

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हाल ही में किसान आन्दोलन को कुचलने को लेकर राजस्थान के जाट नेता हनुमान प्रसाद बेनीवाल ने ट्वीटर हैंडल एक्स पर लिखा ‘@narendramodi जी, सत्ता अहंकार में जिस तरह भारत सरकार के आन्दोलन को कुचलने का हैं, वो लोकतांत्रिक व्यवस्था के नहीं है! मैं आपको याद दिलाना प्रयास कर रही लिए शोभनीय चाहूँगा कि पूर्व में हुए किसान आन्दोलन के दौरान साथ किये गये वादे पर आपकी सरकार खरी नहीं उतरी। इसलिए पुनः किसानों को और अधिकारों के लिए मजबूरन करने का क़दम उठाना पड़ा। एक तरफ आप कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी! लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। दूसरी तरफ आपकी सरकार के इशारे पर ही किसानों पर के गोले बरसाये जा रहे हैं, जो उचित नहीं है। Loksabha Election

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पश्चिमी यूपी के किसानों की लड़ाई लड़ने वाले राष्ट्रीय लोक दल के भाजपा के साथ आने के बाद अभी जो स्थिति है, उसको ध्यान में रखते हुए आपका यह परम दायित्व है कि आप ख़ुद संज्ञान लेकर किसानों की माँगों पर सहमति व्यक्त करें !’ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लोगों की आवाज़ दबाए जाने को लेकर कई बार बोल चुके हैं। निडर और निष्पक्ष पत्रकार और इसी प्रवृत्ति के बुद्धिजीवी भी सरकार के इस रवैये से ख़फ़ा हैं। ग्रामीण परिपेक्ष से ताल्लुक्क़ रखने वाले विशेषज्ञ और विद्वान भी लगातार सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं। लेकिन सरकार को इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। Loksabha Election

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बल्कि अब तो पुलिस भी किसी भी धरना-प्रदर्शन पर बैठे लोगों को उठाकर जेल में डाल देती है, चाहे फिर धरना-प्रदर्शन करने वाले लोग कितने भी गणमान्य हों। चाहे वे जन प्रतिनिधि हों या चाहे चुने हुए मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद हों; पुलिस यह नहीं देखती कि वह किसके गिरेबान पर हाथ डाल रही है। उसे बस ऊपर से आदेश होना चाहिए। फिर वो किसी को भी किसी भी तरह घसीट और पीट सकती है और थाने में बंद कर सकती है। और ईडी, सीबीआई, आईटी का तो कहना ही क्या, उन्हें तो इशारा मिल जाए फिर किसी के भी ख़िलाफ़ कोई भी मामला दर्ज करके नोटिस भेजने में देर नहीं लगती। भले ही बाद में मामला कुछ न निकले। Loksabha Election

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हाल ही में हुए इलेक्टोरल बॉन्ड में तथाकथित घोटाले के खुलासे के बाद अब नोटबंदी और दवाओं में भी घोटाले के आरोप लग रहे हैं। लेकिन ईडी, सीबीआई या फिर आईटी विभागों में से किसी की हिम्मत नहीं है कि वो इन मामलों की जाँच कर सकें। कहने को ये सभी स्वतंत्र संस्थाएँ हैं; लेकिन ऐसा लगता है कि इनकी बागडोर जैसे केंद्र की मोदी सरकार के हाथ में किसी कठपुतली की तरह हो और वो इन्हें अपनी मर्जी से नचा रही है। तक़रीबन एक साल से मणिपुर, जहाँ भाजपा की ही सरकार है, सुलग रहा है। मणिपुर में भड़की हिंसा का इतना बुरा असर राज्य के लोगों की ज़िन्दगी और वहाँ की अर्थ-व्यवस्था पर पड़ा है कि मणिपुर में दोबारा पहले जैसे हालात आसानी से पैदा नहीं किये जा सकेंगे। Loksabha Election

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अब वहाँ की जनता चुनाव में अपनी मज़बूत वोटिंग से बदलाव की उम्मीद लिये बैठी है, जिसे लेकर वहाँ के लोगों, ख़ासकर युवाओं और हिंसा के चलते राज्य छोड़ चुके लोगों ने सरकार से माँग की है कि ‘या तो उनके साथ बाहरी लोगों जैसा व्यवहार न किया जाए और उन्हें वोटिंग करने दी जाए या फिर चुनावों को स्थगित किया जाए।’ हैरत की बात यह है कि मणिपुर में इतना सब कुछ होने के बावजूद वहाँ के भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार और मणिपुर के क़ानून मंत्री थौनाओजाम बसंत कुमार सिंह ने हाल ही में बड़े विश्वास से कहा है कि भाजपा मणिपुर में चुनाव जीत रही है। बहरहाल इससे यह पता चलता है कि केंद्र सरकार अब ‘मैं चाहे ये करूँ, मैं चाहे वो करूँ, मेरी मर्जी’ वाली सोच से काम कर रही है। क्योंकि पिछले 10 वर्षों के केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल में देखा गया है कि उसने अपनी ग़लतियों पर पर्दा डालने और विपक्षी दलों, विरोधियों को अपनी आलोचना करने पर डराने-धमकाने का ही काम किया है। Loksabha Election

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इस दोहरी नीति से मोदी सरकार की तथाकथित निष्पक्ष छवि सिर्फ और सिर्फ़ एक छलावा नज़र आती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान पर हँसी आती है, जिसमें वो कहते थे कि न खाऊँगा और न खाने दूँगा। पिछले 10 वर्षों में जितने भी दूसरी पार्टियों के भ्रष्टाचारी भाजपा में आने को राज़ी हुए, उनके ख़िलाफ़ केंद्र की मोदी सरकार की नर्मी और जाँच एजेंसियों का यू- टर्न साफ़ दिखाता है कि सरकार की भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कोई नीति नहीं है। उसका एक ही संदेश है कि अगर भ्रष्टाचार करो, तो हमारे साथ मिलकर करो। वर्ना जेल भेज दिये जाओगे। भले ही भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध हो या न हो। संविधान के अनुच्छेद-19 (1) के तहत देश के हर नागरिक को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की न सिर्फ़ आज़ादी है, बल्कि यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार भी है। लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र की मोदी सरकार देश के नागरिकों से यह अधिकार छीन लेना चाहती है। और यह लोकतंत्र का सरेआम चीरहरण है। Loksabha Election

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं )

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