Haryana Election

Haryana Election : हरियाणा में भाजपा का जातिवादी पैंतरा, जाट लैंड में कैसे खिलेगा कमल ?

हरियाणा चुनाव : आज़ देश में जातिवाद और धर्मवाद का भेदभाव जिस प्रकार से फैला है इसके चलते आज एक नफरत की दीवार सी खड़ी हुई है, उसके पीछे सबसे ज्यादा हाथ सियासत का ही है। कुछ जाति विशेष के लोगों की वजह से भी जातिवाद और धर्मवाद की दीवार आज हर शहर और हर गांव में भी पहुंच चुकी है। ये एक प्रकार से मानव समाज में फूट है, जिसका फायदा कुछ राजनीतिक लोग ही उठाते आए हैं और आज भी उठा रहे हैँ।

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पिछले करीब एक दशक से तो इसका लाभ उठाने की मानों होड़ सी लग गई है। अब भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी इस जातिवादी रणनीति का पूरा लाभ लेना चाहती है। एक तरफ पिछले कई महीनों से कांग्रेस नेता और संसद में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जाति जनगणना पर जोर दे रहे हैं और इसके पीछे उनका मकसद जितनी जिसकी हिस्सेदारी, उतनी उसकी भागीदारी के हिसाब से सबको हक दिलाने का है, जिसका कि वो दावा करते हैं? क्या हुआ वास्तव में इनका इनका हक दिलाना चाहते हैं या वह भी अपनी सियासी रोटियां जाति जनगणना के तवे पर सेकना चाहते हैं? क्योंकि विरोधियों का यह भी कहना है कि लंबे समय तक कांग्रेस की ही सरकार थी तो तब कांग्रेस ने जातीय जनगणना क्यों नहीं कराई? Haryana Election

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दरअसल, जातीय जनगणना और आरक्षण का ये मुद्दा कुछ राज्यों में लोकसभा चुनाव से पहले और कुछ राज्यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि के विधानसभा चुनाव में जाति जनगणना का बिगुल इंडिया गठबंधन ने तब फूंका था, जब नीतिश कुमार भी इंडिया गठबंधन में थे। लेकिन भाजपा तो बिना जाति जनगणना का बिगुल फूंके ही जातिवाद और धर्मवाद को हर चुनाव में मुद्दा बनाती रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2014 का हरियाणा का विधानसभा चुनाव है जहां भाजपा ने 35 एक का जातीय फार्मूला चलाया था। Haryana Election

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अब एक बार फिर हरियाणा में विधानसभा चुनाव के चलते भाजपा और संघ ने जीत का कोई चारा न देखते हुए, और भाजपा में मची भगदड़ के मद्देनजर रणनीति बनाई है कि हरियाणा में एक बार फिर जातीय समीकरणों को बिगाड़ कर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को जातिवाद के चक्रव्यूह में उलझाकर अपनी पार्टी को किसी भी तरह से जीत दिलाई जाए, ज़ाहिर है कि हरियाणा में हुए पिछले दोनो चुनावों में भाजपा ने इसी जातिवाद के कार्ड को खेलकर आसानी से चुनाव जीते थे। Haryana Election

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साल 2014 में और साल 2019 में भाजपा ने सबसे बड़ी आबादी वाले जाट समाज को अन्य जातियों से अलग करने का काम बखूबी किया था। अब भाजपा फिर से वही पैंतरा दोबारा चलकर जीत हासिल करना चाहती है। इसी के मद्देनजर भाजपा ने अपने और संघ के कार्यकर्ताओं को इस काम पर लगाया है कि वो लोगों के बारे में पता करें कि उनकी भाजपा के प्रति क्या राय है और उनमें जातिवाद का जहर कितना है और कितना ज्यादा से ज्यादा भरा जा सकता है। Haryana Election

सूत्र बताते हैं कि जिले और तहसीलों में इस तरह की बैठकें लगातार चल रही हैं, जिनमें रणनीति बनाई जा रही है। जातिवाद का खेल खेलकर जीत हासिल करने के लिए भाजपा और संघ के कार्यकर्ता घर-घर जा रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि लोग किसी भी तरह भाजपा को वोट करें।

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