Growing Hypocrisy In Rural Society

Growing Hypocrisy In Rural Society : ग्रामीण समाज में तेजी के साथ बढ़ता रहा पाखंडवाद, खतरे में युवाओं का भविष्य

Growing Hypocrisy In Rural Society : ग्रामीण समाज में तेजी के साथ बढ़ता रहा पाखंडवाद, खतरे में युवाओं का भविष्य

Published By Anil Katariya

Growing Hypocrisy In Rural Society : हिंदुस्तान में ग्रामीण परिवेश बहुत तेजी बदलता जा रहा है। नई ग्रामीण पीढ़ी में शहरीकरण और पाखंडवाद का असर तेजी से हो रहा है। पिछले आठ-नौ सालों में जिस प्रकार से ग्रामीण समाज, खास तौर पर ग्रामीण युवा पीढ़ी के जहन से खेती-किसानी का रंग उतरता और भगवा रंग का खुमार चढ़ता जा रहा है, उससे इस ग्रामीण युवा पीढ़ी का भविष्य खतरे में नजर आ रहा है।

दरअसल, ग्रामीण युवा पीढ़ी इतनी तेजी से पाखंडवाद के रास्ते पर जा रही है कि उसके संस्कारों और शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। उसे अब सब कुछ इतना आसान लगने लगा है कि वो मेहनत करने से कतराने लगा है। इसकी कई वजहें हैं, जिनमें से एक प्रमुख वजह है उसके हाथ में एंड्रायड फोन और दूसरी वजह है राजनीति और पाखंडी बाबाओं का धर्म के नाम पर बढ़ता पाखंडवाद। मैं इसमें राजनीति और पाखंडवाद को जिम्मेदार इसलिए मानता हूं, क्योंकि आज की तारीख में अगर युवाओं को मोबाइल से भी ज्यादा कोई बर्बाद कर रहा है, तो वो आज की देशद्रोह के रास्ते पर चलने वाली राजनीति और अधर्म के रास्ते पर चलने वाला पाखंडवाद ही हैं। ये दोनों ही पेशे आजकल इतने धनवर्षा वाले हैं कि हमारे ज्यादातर युवा इन्हीं पेशों से प्रभावित हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

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देशभक्ति और ईश्वरभक्ति के नाम पर हमारी युवा पीढ़ी को भटकाने वाले ये दो पेशों से जुड़े चालाक लोग हमारे युवाओं का दुरुपयोग हिंसक और नारे लगाने वाली भीड़ के रूप में कर रहे हैं। और इन सब चक्करों में फंसने वाले युवाओं में सबसे ज्यादा ग्रामीण युवा हैं, जो कि किसान पुत्र हैं। इस ग्रामीण युवा पीढ़ी का बाकी समय मोबाइल पर जाता है, जहां इन युवाओं को बर्बाद करने के लिए कई ऐप मौजूद हैं, जिन पर वो कुछ लिखकर, मीम्स डालकर और वीडियोग्राफी करके रातोंरात अमीर होने का सपना मन में पाले बैठे हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

मुझे ये देखकर दुख होता है कि युवा अपने संस्कार, अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं। और दुख सिर्फ इसी बात का नहीं है, बल्कि इस बात का और भी ज्यादा है कि वो संस्कारों के नाम पर जहां गालियां देना, अभद्रता करना, बदतमीजी करना, बड़ों की बेइज्जती करना सीखकर खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने की गलती कर रहे हैं। अपनी संस्कृति के बारे में उन्हें कुछ अता-पता नहीं है। अपने धर्म और परंपराओं के नाम पर वो सिर्फ और सिर्फ भोंडापन, पागलपन, पाखंडवाद और हुड़दंग करने लगे हैं। उन पर पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा कुसंगति और बुरे कर्मों का असर पड़ रहा है। वो कम उम्र में ही नशे में उतर रहे हैं। अपने चरित्र का पतन कर रहे हैं। रातोंरात अमीर होने के चक्कर में कुछ भी करने पर आमादा हैं। अगर कोई उन्हें समझाने की कोशिश करे, तो उनका गुस्सा चौथे आसमान पर होता है। Growing Hypocrisy In Rural Society

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दरअसल, हमें और हमारे समाज के हर तबके की अगुवाई करने वाले लोगों को समझने की जरूरत है कि आखिर चूक कहां हो रही है? हमारे बच्चों में ये बुराइयां क्यों आ रही हैं और उनका समाधान क्या है? लेकिन मेरा मानना है कि अपने बच्चों को सुधारने के लिए उनकी गलतियां देखने से पहले हमें अपनी गलतियां सुधारनी होंगी। जब तक हम अपनी गलतियां नहीं सुधारेंगे, तब तक हम बच्चों की गलतियां करने से रोकने में सफल नहीं हो सकेंगे। आजकल हम देखते हैं कि राजनीतिक लोगों की भाषा, व्यवहार निचले स्तर के हो चुके हैं। जिन नेताओं से देश के लाखों-करोड़ों युवा प्रभावित हैं, वही नेता मंचों से लेकर संसद तक में अपनी भाषा की मर्यादा को भुलाकर गली के गुंडों की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। युवाओं का उचित मार्गदर्शन करने की बजाय उन्हें गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

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उन्हें झूठे और दिखावे के राष्ट्रवाद, नकली राष्ट्रभक्ति और आडंबर भरी धर्मांधता के कुएं में धकेल रहे हैं। और ये सब वो सिर्फ और सिर्फ अपनी सत्ता बचाने के लिए कर रहे हैं। सत्ता बचाने के लिए यही नेता अपनी रैलियों और जनसभाओं में शराब और मांस आदि परोसने से परहेज नहीं करते। युवाओं को रैलियों में ले जाने के लिए अपने कुछ पाले हुए गुंडों की शह लेते हैं और युवाओं को हजार-पांच सौ रुपए का लालच देकर उन्हें हुड़दंग करवाते हैं। नारे लगवाते हैं और रात को उन्हें शराब आदि परोसवाकर उनके अश्लील मनोरंजन का इंतजाम कराते हैं। लेकिन जब सत्ता में आते हैं और युवाओं को पेट की भूख सताती है और रोजगार की जरूरत महसूस होती है, तब उनके काम नहीं आते। और जब वो रोजगार की मांग करते हैं, तो उन पर लाठियां बरसवाते हैं और पिटने वालों में सबसे ज्यादा ग्रामीण युवा ही होते हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

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इसी प्रकार से तमाम धर्मों के बाबा, फकीर और पंडे-पुजारियों से लेकर मौलवी और पादरी आदि सब हैं, जो कि लोगों को धर्म का सही पाठ पढ़ाने की बजाय उन्हें अंधविश्वास, आडंबर, पाखंड और तरह-तरह की मूढ़ताओं में धकेलते जा रहे हैं। आजकल तो एक से एक नए-नए बाबाओं के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। अब तो ऐसे बाबाओं की एक लंबी फेहरिस्त है, जो बिना किसी कानून के डर के लगातार भोले-भाले ग्रामीणों को दिन-रात बेवकूफ बनाकर पैसा ऐंठ रहे हैं। ऐसे बाबाओं पर अब कोई प्रतिबंध भी नहीं लगाता और न ही उनकी करोड़ों की कमाई पर कोई टैक्स आदि लगता है। Growing Hypocrisy In Rural Society

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परिणाम ये होता है कि एक सड़कछाप अनपढ़ और धर्म के बारे में कुछ भी न जानने वाला भी अगर बाबा बनकर एक-दो साल प्रवचन देने का काम करने लगता है, तो अगले-दो तीन साल में उसके पास आलीशान बंगला, आलीशान लग्जरी कारें और दस-बीस चेले चपाटे, सिक्योरिटी सब कुछ होता है। जैसे ही ऐसे बाबाओं के पास चार-छह हजार भक्त पहुंचा शुरू हो जाते हैं, उनके आगे नेता भी माथा टेंकने लगते हैं और उनकी सिक्योरिटी को और टाइट करने का हुक्म पुलिस को देकर उसे अलग परेशान करते हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

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दरअसल जिस पुलिस का गठन समाज की व्यवस्था सुधारने के लिए किया गया है, उस पुलिस के जवान बड़ी संख्या में ऐसे बाबाओं और अपराधियों की सुरक्षा में लगा दिए जाते हैं। और धर्म को धंधा बनाने वाले ये लोग पूरी जिंदगी ऐश करते हैं। कई तो धर्म की आड़ में अपराध भी करते हैं। कई पकड़े भी गए हैं। लेकिन इन्हें पकड़ना आसान नहीं होता। क्योंकि जिस प्रकार से गलत नेताओं की सुरक्षा गुप्त तरीके से कुछ गुंडे करते हैं, उसी प्रकार से ऐसे बाबाओं की सुरक्षा भी गुप्त तरीके से कुछ गुंडे ही करते हैं। और उन उन गुंडों की सुरक्षा नेता और बाबा करते हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

इस प्रकार से ये तीन गलत लोग एक-दूसरे की सुरक्षा करते हैं और समाज को न सिर्फ भटकाते हैं, बल्कि डरा-धमकाकर उसे कमजोर भी बनाए रखते हैं। कोई कानून से डराता है, कोई धर्म और भगवानों से डराता है, तो कोई खतरनाक हथियारों से डराता है। इसलिए बहुत चालाक लोग, जो कि न कभी ठीक से पढ़ते-लिखते हैं और न ही किसी काम के लायक होते हैं, ऐसे लोग तीन ही प्रकार के धंधों में उतरते हैं। पहला धंधा राजनीति है, दूसरा धर्म का धंधा और तीसरा बदमाशी। ग्रामीण युवाओं को भटकाने में इन तीनों का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि वो इनसे सीख रहे हैं। आज जिस प्रकार का आरचण समाज को आइना दिखाने वाले ये लोग कर रहे हैं, लोग, खास तौर पर युवा उसी प्रकार का आचरण कर रहे हैं। जिन लोगों को समाज को बचाने का काम करना चाहिए और युवाओं को रास्ता दिखाना चाहिए, वो उन्हें भटका रहे हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

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बहरहाल, हमारे युवाओं के भटकने से समाज तेजी से पिछड रहा है और गर्त में जा रहा है। हमारी युवा पीढ़ी भ्रमित है और अपने गौरवपूर्ण इतिहास को भूल बैठी है। आज समाज के सियासी दलों के नुमाइंदों ने गांवों, कस्बों में मेले बंद करवाकर नौटंकियां शुरू करवा दी हैं। गौशालाओं, मंदिरों, धार्मिक ट्रस्टो में बढ़-चढ़कर अथाह दान के रूप में सोने के अंडे रखने और रखवाने शुरू किया है। हिंदू धर्म के नाम पर गांव-गांव में भजन, कीर्तन और कथावाचन के नाम पर पाखंडवाद किया जा रहा है। Growing Hypocrisy In Rural Society

समाज के युवाओं को कावड़ लाने और अन्य धार्मिक आयोजनों की ओर आकर्षित करने का एक अभियान सा चलाया जा रहा है। धार्मिक आयोजनो और कथावाचकों को लाखों-लाख रुपए दान दिया जा रहा है, “एक रात गोमाता के नाम” जैसे शीर्षक पर नगदी, जमीन और सोना दिया जा रहा है। अयोध्या में बन रहे राममंदिर के लिए भी सबसे ज्यादा दान इसी वर्ग ने दिया है। तमाम सियासी पार्टियां अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए 80 बनाम 20 और 35 बनाम 1 का जबरदस्त नारा बुलंद करके ग्रामीण इलाकों में सियासत करते हैं, जिसमें मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। छिपी हुई सियासी पार्टियों की राजनीतिक आईटी शैल की भी मूल भूमिका रहती है। गांव के किसान और कामगार वर्ग में जातिय एकता की कमी इसका सबसे बड़ा मूल कारण है। Growing Hypocrisy In Rural Society

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जबकि दूसरी ओर गांव में शिक्षण संस्थानों, स्वास्थ्य सेवाओं और इस आधुनिक युग में कंप्यूटर और दूसरे संस्थानों का टोटा साफ दिखाई देता है, जिस पर न किसी राजनीतिक दल का ध्यान है और न ही किसी सामाजिक ठेकेदार का। ग्रामीण समाज के युवा इन सब चीजों की कमी होने के चलते गरीबी, बेरोजगारी, नशाखोरी और आपराधिक गतिविधियों की तरफ तेजी से अग्रसर हो रहे हैं, जिसका लाभ सियासी दलों के प्रतिनिधि अपने चुनाव जीतने के समय बखूबी लेते रहते हैं। Growing Hypocrisy In Rural Society

दरअसल, पहले गांव-समाज के सभी जातियों के बड़े बूढ़े और मुखिया अपने छोटे-मोटे झगडे, फसाद आपसी मतभेद आदि आपस में ही पंचायत में बैठकर सुलझा लिए जाया करते थे, इसीलिए गांव-देहात में पंचायतों का ख़ास महत्व होता था, जो धीरे-धीरे समाप्त होता दिखाई दे रहा है। आजकल गांव समाज के किसी भी सामाजिक संगठन, खाप या किसान संघ का मुखिया हमेशा राजनीतिक दलीय व्यक्ति होता है। जबकि जाति संगठन या खाप का मुखिया गैर राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत और शक्तिशाली होना चाहिए, जो सभी राजनीतिक प्रतिनिधित्व के नेताओ को एक मंच पर ला सके। गांव देहात में आ रही परेशानियों का निराकरण करवा सके। Growing Hypocrisy In Rural Society

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं)

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